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लखनऊ के नवाब सआदत खां का जीवन परिचय

Mann Jee

by Mann Jee
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सैय्यद मुहम्मद अमी उर्फ सआदत खां बुर्हानुलमुल्क अवध के प्रथम नवाब थे। सन्‌ 1720 ई० में दिल्ली के मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने सैय्यद मुहम्मद अमी उर्फ नवाब सआदत खां प्रथम को आगरा का सूबेदार बना कर भेजा। इस प्रकार मुहम्मद अमी अवध के पहले नवाब हुए। मुहम्मद अमी निशापुर के ईरानी सौदागर थे। बादशाह मुहम्मद शाह से अच्छी दोस्ती होने के कारण दिल्‍ली दरबार में उनका काफी प्रभाव था। जिससे उन्हें आगरा की सूबेदारी का सौभाग्य मिला और फिर अवध की सूबेदारी। उन्हें नवाब वजीर का पद 1732 में हासिल हुआ। मुहम्मद अमी को बुर्हानुलमुल्क का खिताब बादशाह ही ने दिया था। मुहम्मद अमी ने सन्‌ 1739 में आत्महत्या कर ली और इस दुनियां से रूखसत हो गए।

नवाब सआदत खां बुर्हानुलमुल्क कौन थे

चार सौ वर्ष से अधिक हुये कि इराक देश के पवित्र नगर नजफ़ में एक मीर शमसुद्दीन नामक एक सदाचारी वृद्ध सैय्यद रहता था जो अपनी विद्वत्ता और भक्तिमयता के लिये समान रूप से प्रसिद्ध और अपने नगरवासियों के अपवाद रहित सम्मान और सत्कार का पात्र था। ईरान की गद्दी पर उसके समकालीन राजपुरुष शाह इस्माईल रुफ़वी ने ( 1499-1523 ई), जो अपनी वीरता और दयालुता के लिये विख्यात था, सैय्यद को नजफ़ ने आमन्त्रित किया और उसको खुरासान के प्रान्त में निशापुर का काजी नियुक्त किया। काजी स्थायी रूप से निशापुर में बस गया जहां पर उसके राजकीय आश्रयदाता ने उसे एक विस्तृत जागीर भेंट की। मीर शमसुद्दीन कुलीन प्रतिभावान सैय्यद परिवार का वंशज था। कहा जाता है कि मूसा काज़िम की वंश परम्परा में वह 21वां था जोअली के वंश का 7वाँ इमाम था।

मीर के कई पुत्रों में ज्येष्ठ सैयद मुहम्मद जाफर था। उसके दो पुत्र हुए– मीर मुहम्मद अमीन और सैय्यद मुहम्मद जिनके शाह अब्बास द्वितीय (1641-1666 ई• ) के शासन काल मे क्रमशः मीर मुहम्मद नसीर और मीर मुहम्मद यूसुफ उत्पन्न हुएं। कहा जाता है कि एक दिन जब शाह शिकार पर था एक शेर के अचानक हमला होने से राजकीय परिचरों में कुछ कौलाहल पैदा हो गया और राजा स्वयं घोड़े से गिर गया। ठीक उसी समय मीर मुहम्मद यूसुफ जो समीप ही खड़ा हुआ था, साहस पूर्वक आगे बढ़ा और उस शेर का अपनी तलवार के एक ही वार से अन्त कर दिया। नवयुवक के कृत्य पर प्रसन्न होकर शाह ने सैयद परिवार को सम्मानित करने का निश्चय किया और अपनी कन्या का मीर मुहम्मद नसीर से विवाह कर दिया। इस वैवाहिक सम्बन्ध से दो पुत्रियां और दो पुत्र हुये– मीर मुहम्मद बाकर और मीर मुहम्मद अमीन। यही दूसरा व्यक्ति अवध के राजवंश का संस्थापक भावी नवाब सआदत खां बुर्हानुलमुल्क था।

नवाब सआदत खां बुर्हानुलमुल्क का जन्म

किसी इतिहासकार, समकालीन या अपरकालीन ने मीर मुहम्मद अमीन उर्फ़ सआदत खां की निश्चित जन्म-तिथि या उसके प्रारम्भिक जीवन की किसी घटना को दिनकिंगत लेखबद करने की चिंता न की, परन्तु हम जानते हैं कि अपनी मृत्यु के समय, जो 9 जिलहिज्जा 1151 हिजरी तदनुसार 19 मार्च 1739 ईस्वी को हुई। वह लगभग 60 वर्ष की आयु का था। जिसके अनुसार अवध के प्रथम नवाब का जन्म 1679 के आसपास का माना जाता है। कहा जाता है कि मीर मुहम्मद नसीर और मीर मुहम्मद यूसुफ की मां एक थी परंतु पिता अलग अलग थे, अर्थात मीर मुहम्मद अमीन और सैय्यद मुहम्मद।

किशोर अवस्था और शिक्षा

अपने जीवन के प्रारम्भिक वर्ष उसने साहित्य के अध्ययन में लाभ पूर्वक व्यतीत किये। सामन्त होने के कुछ वर्ष पूर्व ही मीर मुहम्मद अमीन उर्फ़ सआदत खां ने सैनिक गुण सम्पन्न सुशिक्षित और सुशील सज्जन की ख्याति उपलब्ध कर ली थी। पुष्ठ शरीर, विशाल शारीरिक बल और निशंक वीरता प्रकृति ने उसको उपहार में दिये थे। भारत में और उसकी अपनी जन्म भूमि में दीर्घकाल तक भोगित विपत्तियों ने उसमें साहस आत्म-विश्वास और धैर्य के गुर्णो को जाग्रत ओर विकसित कर दिया था। इन प्राकृतिक उपहारों ने किसी न किसी प्रकार के सैनिक शिक्षण के साथ साथ उसको उत्तम योद्धा बना दिया था।

भारत की ओर प्रस्थान

17वीं शताब्दी के अंत के समीप ईरान का सफवी राजवंश लगभग डेढ़ सदी के गौरवशाली राज्य काल के पश्चात, अंतिम शाहों के चरित्र में कमशः ह्रास के परिणाम स्वरूप अवनत होने लगा था और उस समय अपने विलय के समीप पहुंच गया था। इस वंश के अन्तिम राजा शाह हुसैन (1694-1722 ई) के निर्जीव शासन काल में, जिसने प्राचीन सामन्त वर्ग को पूर्णतया विरुद्ध और अपमानित कर दिया था, सैय्यद शमसुद्दीन के वंशज, जो राजकीय छत्रछाया में साननन्‍द जीवन व्यतीत कर रहे थे, साघनहीनता और दरिद्रता की दशा को प्राप्त हो गये। अतः मीर मुहम्मद अमीन के पिता मीर मुहम्मद नसीर ने हिन्दुस्तान में भाग्य परीक्षा का निश्चय किया। उसके इस उद्योग के लिये समय बहुत अनुकूल प्रतीत होता या। वर्योवृद शाहशाह औरंगजेब जिसका जीवन शिया मत के भिन्न विश्वास को और हिन्दू मूर्ति पूजा को समान रूप से नष्ट करने का सतत्‌ प्रयत्न था, अपनी प्रजा के बहुत बड़े भाग के सौमाग्य से अपनी समाधि में विश्राम के लिये प्रवेश कर चुका था। उसका पुत्र और उत्तराधिकारी बहादुर शाह नम्र और अवगुण की सीमा तक दयालु था और शिया मत की ओर अधिक झुकाव रखने के लिये विदित था। वह रसूल का वंशज होने का भी दावा करता था और अपनी अन्य उपाधियों के साथ “सैय्यद” शब्द को जनसमक्ष धारण करता था। इन तथ्यों का ज्ञान ईरान से शिया पुरूषार्थियों को धारा प्रवाह इस देश की ओर आकर्षित करने के लिये पर्याप्त था।

अपने बड़े पुत्र मीर मुहम्मद बाकर को साथ लेकर मीर मुहम्मद नसीर ने, जो उस समय अपने जीवन की सायं बेला में था, अपने पैतृक निवास स्थान को 1707 ई० के अन्त के आस पास छोड़ दिया और आजीविका की खोज में भारत के लिये प्रस्थान किया।एक लम्बी और कष्ट साध्य भूमि यात्रा ने उनको अपने देश की दक्षिणी सीमा पर पहुंचा दिया। यहा किसी एक बन्दरगाह से पिता और पुत्र एक पोत में जो भारत आ रहा था, चल पड़े और बंगाल पहुंचे। बंगाल से वे बिहार गये और अन्त में पटना नगर में बस गये। यहां पर आदरणीय सैय्यद को बंगाल और बिहार के योग्य दीवान मुर्शिद कुली खाँ ने अपने जामाता शुजा खाँ के अनुरोध पर निर्वाह योग्य जीविका प्रदान की‌। शुजा खाँ के पूर्वज स्वयं ईरान से आये थे और वह असहाय विदेशियों विशेष कर ईरान से आने वालों के मित्र रूप में सर्व विदित था।

मीर मुहम्मद अमीन उर्फ़ सआदत खां, मीर मुहम्मद नसीर का दूसरा, परन्तु अधिक होनहार पुत्र अपने जन्म स्थान निशापुर ही में रह गया था। वह अपने चाचा भर श्वसुर मीर मुहम्मद यूसुफ के साथ रहता था। शायद यही कारण था कि वह अपने पिता और बड़े भाई के साथ भारत नहीं आया था। कहते हैं कि मीर मुहम्मद अमीन की पत्नी ने एक दिन उसे ताना दिया की वह घरजमाई बनकर उसके पिता का खाता है। मीर मुहम्मद अमीन में आत्मसम्मान था, उसको यह बात बहुत बुरी लगी। और वह क्रोध में अपनी पत्नी के घर को छोड़कर भारत के लिए चल दिया। मीर मुहम्मद अमीन अपने भाई और पिता के पास 1708-9 पटना आया। लेकिन उसके आने से कुछ महिने पहले ही उसके पिता की मृत्यु हो गई थी। सो दोनों भाई मीर मुहम्मद बाकर और मीर मुहम्मद अमीन उर्फ़ सआदत खां पटना में कुछ दिन ठहर कर नौकरी की खोज में दिल्ली की ओर चल पड़ें।

सआदत खां का बेरोजगारी से नवाबी तक का सफर

प्रारंभ एक वर्ष तक मीर मुहम्मद अमीन उर्फ़ सआदत खां ने एक अज्ञात आमिल की सेवा स्वीकार कर ली और अपना समय दुख और द्ररिद्रता से व्यतीत किया। कुछ दिनों पश्चात वह और उसका भाई सर बुलंद खां की सेवा में आ गए। जो इलाहाबाद के सूबे में मानिकपुर का फौजदार था। और उन्हीं की तरह ईरानी और सैय्यद भी था। उसने मीर मुहम्मद अमीन को अपना शिविराध्यक्ष नियुक्त किया। सर बुलंद खां के पास उसने दो साल तक नौकरी की उसके बाद वह फर्रुखसियार की सेवा में चला गया। वहां उसे मुहम्मद ज़फ़र की सहायता से दिल्ली के दरबार में हजारी का पद प्राप्त करने में सफलता मिल गई। इसी बीच शक्तिशाली सैय्यदो और कायर बादशाह का झगड़ अपनी चरम सिमा पर पहुंच गया। फर्रूखसियर गद्दी से उतार दिया गया। और उसे दंड देकर मार दिया गया। इसके बाद सैय्यदो ने राज गद्दी शहजादा रोशन अख्तर को दी जो जहांदार का पुत्र और बहादुर शाह प्रथम का पौत्र था। अब सैय्यद अपनी शक्ति की पराकाष्ठा को पहुंच गये थे। मीर मुहम्मद अमीन इस समय अकर्मण्य नहीं था। फर्रूखसियर की मृत्यु के पश्चात वह अपने संरक्षक के विरोधियों से जा मिला। सैय्यद और उनकी तरह शिक्षा होने के कारण उनकी आत्मीय मंडली में प्रवेश करने में उसे कोई कष्ट नहीं हुआ। उसके सुसंस्कृत स्वभाव, सुंदर चाल ढाल और जन्मजात सैनिक गुणों ने शीघ्र ही उसके लिए सैय्यद हुसैन अली खां संरक्षता प्राप्त कर ली। शाही बख्शी ने जो स्वामी भक्त और वीर योद्धाओं का मित्र था, मीर मुहम्मद अमीन के लिए हिंडवाना और बयाना के फौजदार की जगह प्राप्त कर ली। जो उस समय आगरा प्रांत का जिला था। 6 अक्टूबर 1719 को बादशाह मुहम्मद शाह के राज्यरोहण के कुछ समय बाद ही उसकी विधि पूर्वक नियुक्ति भी हो गई।

शाही शिविर से जो उस समय आगरा के पास था। मीर मुहम्मद अमीन अपने नए कार्यभार पर गया। हिंडवाना और बयाना जो राजस्थान के भरतपुर और जयपुर में आगरा से 50-60 मील दक्षिण पश्चिम में स्थित है। उस समय आगरा के सूबे के अत्यन्त महत्वाकांक्षी जिले थे। वहां उपद्रवियों ने बहुत आतंक मचा रखा था। जिसका मीर मुहम्मद अमीन ने सफलतापूर्वक दमन किया। जिससे खुश होकर बादशाह ने सआदत खां को 1720 में आगरा का राज्यपाल नियुक्त किया। इसके बाद वह 9 सितंबर 1722 को अवध का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया। और वहां की जागीर सौंप दी गई। जहां नवाब सआदत खां अपने अंतिम समय तक शासन किया।

परिवार

भारत में नवाब सआदत खां बुर्हानुलमुल्क ने तीन विवाह किये, जिनमें पहली पत्नी का विवाह के बाद जल्दी देहांत हो गया। वह दिल्ली के एक राजकीय पदाधिकारी की पुत्री थी। बाकी दो में से एक सैय्यद तालिब मुहम्मद खां की पुत्री थी और दूसरी नवाब मुहम्मद तकी खां की पुत्री थी। जो एक समय आगरा का राज्यपाल था। उसके केवल एक पुत्र था जिसका देहांत किशोर अवस्था में चेचक से हो गया था। नवाब सआदत खां बुर्हानुलमुल्क के पांच पुत्रियां थीं।

नवाब साहब का एक सच ये भी
लखनऊ के नवाब / सूबेदार सआदत खाँ की आत्महत्या के बाद अवध की सूबेदारी के दो दावेदार थे- सआदत खां का भतीजा शेरजंग और उसका भांजा/ दामाद- अबुल मंसूर। दोनों ने अपनी अपनी दावेदारी ठोकीं और मुग़ल बादशाह रंगीला के पास गुहार लगायी। दोनों ने अपनी सिफ़ारिश नादिर शाह से भी लगवायी जो उन दिनों दिल्ली लूटने आया था।
शेरजंग ने भतीजे होने के कारण हक़ जताया और अबुल मंसूर ने नादिर शाह को दो करोड़ रुपया और भेंट आदि भेजी। स्वाभाविक है लालची नादिर शाह ने अबुल मंसूर के नाम पर मोहर लगायी। रंगीला ने भी अबुल मंसूर को सफ़दरजंग का ख़िताब दिया और अवध का नवाब बना कर भेज दिया।
सफ़दरजंग ने मामा / ससुर के निवास वाली जगह “बंगला” का नया नाम रखा- फ़ैज़ाबाद और उसे अपनी राजधानी बनाया। फ़ैज़ाबाद का मतलब होता है लाभ या उपहार की आबादी। ससुर का माल – जो मुफ़्त में मिल जाये-लाभ ही कहलाएगा। आगे के सब लखनऊ के नवाब इन्ही सफ़दरजंग के वंशज हुए।
लुटेरे नादिर शाह को दो करोड़ रिश्वत खिलाने वाले लखनऊ के तहज़ीब वाले नवाबो की ख़िदमत में -आदाब अर्ज़ है!
सबसे कमाल की बात- सफ़दरजंग की बेगम जो सआदत खां की लड़की थी- उसकी अम्मी सआदत खाँ की कनीज थी। तो गोया सब नवाब लोगों का मूल एक कनीज है- जनाब!

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