Home चलचित्र चड्ढी के बहाने

हिंदी फिल्मों के नाबदान की उस एक्ट्रेस का नाम तो इतना सुंदर है कि क्या ही कहा जाए, लेकिन उसने गलवान पर जो कहा, उसके बाद जनता काफी उबाल में है। उस जनता के नाम चंद लफ्ज पेश हैं…

आप चड्ढा पर बहुत नाराज हैं, होना भी चाहिए। पर रुकिए, इस देश में चड्ढी नहीं होगी, तो और होगा कौन…। आप और मैं कितना जानते हैं, अपने देश, उसकी सीमाओं या सेना के बारे में ही। इस देश में कांग्रेसी नामुरादों ने कितने पाकिस्तान काटे, कितने नरक बना रखे, उसके बारे में आप कितना जानते हैं? आइए, सामान्य ज्ञान जाँचते हैं।

हरचरणजीतसिंह पनाग को जानते हैं आप? फिलहाल ये जनाब डिफेंस एक्सपर्ट हैं और मोदी सरकार की धज्जियाँ उड़ाए रहते हैं- पठानकोट से पुलवामा तक, सब पर इनकी राय है। ये सरकार की रक्षा नीति भी अक्सर (नॉट)-इंडियन एक्सप्रेस में तय करते पाए जाते हैं। चीन को लेकर ये अक्सर सरकार को घेरते हैं। 1962 और 1986 में चीन को सप्रेम दी गयी जमीन को लेकर अभी की सरकार से सवाल करते हैं।

अरे हाँ, साब खुद भी सैन्य अधिकारी रह चुके हैं, परम विशिष्ट सेवा पदक से लैस हैं, एक्ट्रेस गुल पनाग इनकी लख्तेजिगर हैं।
इनके बारे में गूगल कर लीजिए, इनके आलेख पढ़ लीजिए। चड्ढी आपको अप्सरा लगेगी इनके मुकाबले।

जनरल वी एन शर्मा को जानते हैं? आपके पहले ऐसे सैन्य अध्यक्ष (COAS) थे, जिन्होंने कांग्रेस के राज वाले भारत में अपना करियर शुरू किया था। फिलहाल 90 साल के हैं। इन्होंने 2020 में वामपंथी प्रोपैगैंडा पोर्टल कैरेवान को एक इंटरव्यू दिया था, जिसमें 1986-87 में वांगडुंग से भारतीय सेना के हटने और चीनी कब्जे के बारे में पूरा अंडबंड कहा था।

जनरल वी एन शर्मा के इंटरव्यू को अंडबंड इसलिए कहा, क्योंकि उस इंटरव्यू के प्रकाशित होने के 10-15 दिनों बाद यानी अक्टूबर 2020 में एक सैन्य अधिकारी ने उसके फैक्ट्स को लेकर बिंदुवार परखचे उड़ाए थे। आप कर्नल जयचंद्रन को भी नहीं जानते हैं। जनरल शर्मा ने जितने भी तथ्य गोलमाल वाले बताए थे, कर्नल जयचंद्रन ने उनका एक-एक कर जवाब दिया था, लेकिन धन्य है आपकी 56 इंची सरकार और उसका प्रचार तंत्र। अपना जवाब तक ये नहीं बता पाते। सनद रहे, हमारे गृहमंत्री इतिहास लेखन को लेकर भी उद्बोधन मात्र देते हैं, सरकारी जिम्मेदारी कहीं और सरका देते हैं

बाय द वे यानी रास्ते के साथ, ये वांगडुंग क्या था या है? यह अरुणाचल प्रदेश की एक पोस्ट थी, जिसे और लद्दाख-कश्मीर को लेकर चचा नेहरू के परनाती राहुल गाँधी जब-तब जज्बाती हो जाया करते हैं। तो साहबान, 1986-87 में वांगडुंग पर चीन घुसा था, जिसे लेकर जनरल शर्मा की कुछ और तान है, तो कर्नल जयचंद्रन की कुछ और। वैसे, श्रीमान पनाग और राहुल जैसों को जब-तब अपनी बेसुरी छेड़ने का मौका मिल जाता है।

वांगडुंग के बारे में जब गूगल कीजिएगा तो लगे हाथों थगला रिज भी देख लीजिएगा। 1962 में चीन ने यहीं से युद्ध की शुरुआत की थी। आजतक अंतरराष्ट्रीयतावादी कौमनष्ट और कांग्रेसी अपने आर्टिकल्स में इस तरह की बातें लिखा करते हैं। मुजाहिरे के लिए कैरेवान की ये पंक्तियाँ देखें- …the Indian Army’s occupation of the ridge was the precipitating factor of the first Sino-Indian conflict in 1962- इसका हिंदी अनुवाद करना और समझना बहुत कठिन नहीं है।

साहबान, कहने का मतलब ये है कि हमें अपने पीछे का तो पता नहीं रहता, लेकिन राहुल जैसे बकलेंहड़ और पनाग जैसे बकलोल की बात को ब्रह्मवाक्य जरूर मानते हैं। अरुणाचल के हालात क्या हैं, वह एक इंटेलिजंस ऑफिसर के शब्दों में सुनिए,

“देखिए गुरु, अव्वल तो आइबी और रॉ जितने इनपुट देते हैं, अगर ये निकम्मे आइएएस-आइपीएस काम कर लें, तो देश कतई सुरक्षित हो जाएगा। और हाँ, आपने पूछा न कि पहले और अब की सरकारों में कुछ बदला है कि नहीं…तो ये जान लीजिए कि पहले अगर चीन के साथ स्टैंडऑफ होता था, तो हमें ऊपर से आदेश आते थे कि पीछे हट जाओ। अब आगे बढ़कर पेल देने का हुकुम आता है…बस्स, यही अंतर है। बाकी, सरकारें एक ही होती हैं और नौकरशाही तो खैर…पूरा देश डुबा दे, तब भी उसे घंटा न फर्क पड़ता है..।”

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