Home विषयजाति धर्मईश्वर भक्ति भगवान शिव को ही रुद्र कहा जाता है।

भगवान शिव को ही रुद्र कहा जाता है।

Akanksha Ojha.

by Akansha Ojha
166 views
रुद्र जब व्यथित होकर घोर तपस्या पर बैठे, तो उनके नेत्रों से पृथ्वी पर कुछ अश्रुकण गिरे, जिनसे एक फल की उत्पत्ति हुई। उनके अश्रुकणों से उत्पन्न होने के कारण ही इसे रुद्राक्ष की संज्ञा दी गई।
दुलर्भ ग्रंथ ‘निघण्टु भूषण’ में बटादि वर्गः खंड में वर्णित श्लोक में रुद्राक्ष के नाम तथा गुण धर्म बताए गए है।
रुद्राक्षं च षिवाक्षं च शर्वाक्षं भूतनाषनम्।
पावनं नीलकंठाक्षं हराक्षं च षिवप्रियम।।
रुद्राक्ष, षिवाक्ष, शिर्वाक्ष, भूतनाषन, पावन , नीलकठाक्ष, हराक्ष, षिवप्रिय, आदि रुद्राक्ष के नाम हैं। रुद्राक्ष के आयुर्वेदिक तथा धार्मिक गुण-धर्म भी उक्त शास्त्र मे वर्णित हैं। इसके अनुसार रुद्राक्ष अम्ल, उष्ण, वातनाषक, रूप निवारक, सिर की पीड़ा को दूर करने वाला तथा भूतबाधा और ग्रहबाधा को हरने वाला है।
शिवमहापुराण के प्रथम विद्येश्वरसंहिता के साध्यसाधनखण्ड में रुद्राक्षमाहात्म्यवर्णन में सूतजी, शिवरूप शौनक ऋषि से संक्षेप से रुद्राक्ष का माहात्म्य बताते हैं
शौनकर्षे महाप्राज्ञ शिवरूपमहापते
शृणु रुद्रा क्षमाहात्म्यं समासात्कथयाम्यहम् ।।
शिवप्रियतमो ज्ञेयो रुद्रा क्षः परपावनः
दर्शनात्स्पर्शनाज्जाप्यात्सर्वपापहरः स्मृतः
रुद्राक्ष शिव को बहुत ही प्रिय है। इसे परम पावन समझना चाहिये। रुद्राक्ष के दर्शन से, स्पर्श से तथा उसपर जप करने से वह समस्त पापों का अपहरण करनेवाला माना गया है।
पुरा रुद्रा क्षमहिमा देव्यग्रे कथितो मुने
लोकोपकरणार्थाय शिवेन परमात्मना
हे मुने ! पूर्वकाल में परमात्मा शिव ने समस्त लोकों का उपकार करने के लिये देवी पार्वती के सामने रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन किया था।
शिव उवाच
शृणु देविमहेशानि रुद्रा क्षमहिमा शिवे
कथयामि तवप्रीत्या भक्तानां हितकाम्यया
शिवजी बोले — हे महेश्वरि ! हे शिवे ! मैं आपके प्रेमवश भक्तों के हित की कामना से रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन करता हूँ, सुनिये
दिव्यवर्षसहस्राणि महेशानि पुनः पुरा
तपः प्रकुर्वतस्त्रस्तं मनः संयम्य वै मम
हे महेशानि ! पूर्वकाल की बात है, मैं मन को संयम में रखकर हजारों दिव्य वर्षों तक घोर तपस्या में लगा रहा।
स्वतंत्रेण परेशेन लोकोपकृतिकारिणा
लीलया परमेशानि चक्षुरुन्मीलितं मया।।
हे परमेश्वरि ! मैं सम्पूर्ण लोकों का उपकार करनेवाला स्वतन्त्र परमेश्वर हूँ । एक दिन सहसा मेरा मन क्षुब्ध हो उठा। अतः उस समय मैंने लीलावश ही अपने दोनों नेत्र खोले
पुटाभ्यां चारुचक्षुर्भ्यां पतिता जलबिंदवः
तत्राश्रुबिन्दवो जाता वृक्षा रुद्रा क्षसंज्ञकाः
नेत्र खोलते ही मेरे मनोहर नेत्रपुटों से कुछ जल की बूंदें गिरीं । आँसू की उन बूंदों से वहाँ रुद्राक्ष नामक वृक्ष पैदा हो गये॥
स्थावरत्वमनुप्राप्य भक्तानुग्रहकारणात्
ते दत्ता विष्णुभक्तेभ्यश्चतुर्वर्णेभ्य एव च
भक्तों पर अनुग्रह करने के लिये वे अश्रुबिन्दु स्थावरभाव को प्राप्त हो गये । वे रुद्राक्ष मैंने विष्णुभक्तों को तथा चारों वर्णों के लोगों को बाँट दिये ॥
भूमौ गौडोद्भवांश्चक्रे रुद्रा क्षाञ्छिववल्लभान्
मथुरायामयोध्यायां लंकायां मलये तथा
सह्याद्रौ च तथा काश्यां दशेष्वन्येषु वा तथा
परानसह्यपापौघभेदनाञ्छ्रुतिनोदनात्
भूतल पर अपने प्रिय रुद्राक्ष को मैंने गौड़ देश में उत्पन्न किया । मथुरा, अयोध्या, लंका, मलयाचल, सह्यगिरि, काशी तथा अन्य देशों में भी उनके अंकुर उगाये । वे उत्तम रुद्राक्ष असह्य पापसमूहों का भेदन करनेवाले तथा श्रुतियों के भी प्रेरक हैं॥
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्रा जाता ममाज्ञया
रुद्रा क्षास्ते पृथिव्यां तु तज्जातीयाः शुभाक्षकाः
मेरी आज्ञा से वे रुद्राक्ष ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र जाति के भेद से इस भूतल पर प्रकट हुए । रुद्राक्षों की ही जाति के शुभाक्ष भी हैं।
श्वेतरक्ताः पीतकृष्णा वर्णाज्ञेयाः क्रमाद्बुधैः
स्वजातीयं नृभिर्धार्यं रुद्रा क्षं वर्णतः क्रमात्
उन ब्राह्मणादि जातिवाले रुद्राक्षों के वर्ण श्वेत, रक्त, पीत तथा कृष्ण जानने चाहिये । मनुष्यों को चाहिये कि वे क्रमशः वर्ण के अनुसार अपनी जाति का ही रुद्राक्ष धारण करें॥
वर्णैस्तु तत्फलं धार्यं भुक्तिमुक्तिफलेप्सुभिः
शिवभक्तैर्विशेषेण शिवयोः प्रीतये सदा
भोग और मोक्ष की इच्छा रखनेवाले चारों वर्णों के लोगों और विशेषतः शिवभक्तों को शिव-पार्वती की प्रसन्नता के लिये रुद्राक्ष के फलों को अवश्य धारण करना चाहिये ॥
रुद्रा क्षधारणं प्रोक्तं पापनाशनहेतवे
तस्माच्च धारणी यो वै सर्वार्थसाधनो ध्रुवम्
पापों का नाश करने के लिये रुद्राक्षधारण आवश्यक बताया गया है । वह निश्चय ही सम्पूर्ण अभीष्ट मनोरथों का साधक है, अतः उसे अवश्य ही धारण करना चाहिये॥
यथा च दृश्यते लोके रुद्रा क्षफलदः शुभः
न तथा दृश्यतेऽन्या च मालिका परमेश्वरि
हे परमेश्वरि ! लोक में मंगलमय रुद्राक्ष जैसा फल देनेवाला देखा जाता है, वैसी फलदायिनी दूसरी कोई माला नहीं दिखायी देती॥
रुद्रा क्षधारणं प्राप्तं महापातकनाशनम्
रुद्र संख्याशतं धृत्वा रुद्र रूपो भवेन्नरः
रुद्राक्षधारण बड़े-बड़े पातकों का नाश करनेवाला बताया गया है। ग्यारह सौ रुद्राक्षों को धारण करनेवाला मनुष्य रुद्रस्वरूप ही हो जाता है ॥
एकादशशतानीह धृत्वा यत्फलमाप्यते
तत्फलं शक्यते नैव वक्तुं वर्षशतैरपि
इस जगत् में ग्यारह सौ रुद्राक्ष धारण करके मनुष्य जिस फल को पाता है, उसका वर्णन सैकड़ों वर्षों में भी नहीं किया जा सकता ॥
शिखायां च त्रयं प्रोक्तं रुद्र क्षाणां महेश्वरि
कर्णयोः षट् च षट्चैव वामदक्षिणयोस्तथा
शतमेकोत्तरं कंठे बाह्वोर्वै रुद्र संख्यया
कूर्परद्वारयोस्तत्र मणिबंधे तथा पुनः
उपवीते त्रयं धार्यं शिवभक्तिरतैर्नरैः
शेषानुर्वरितान्पंच सम्मितान्धारयेत्कटौ
एतत्संख्या धृता येन रुद्रा क्षाः परमेश्वरि
तद्रू पं तु प्रणम्यं हि स्तुत्यं सर्वैर्महेशवत्
हे महेश्वरि ! शिवभक्त मनुष्यों को शिखा में तीन, दाहिने और बाँयें दोनों कानों में क्रमशः छः-छः, कण्ठ में एक सौ एक, भुजाओं में ग्यारह-ग्यारह, दोनों कुहनियों और दोनों मणिबन्धों में पुनः ग्यारह-ग्यारह, यज्ञोपवीत में तीन तथा कटिप्रदेश में गुप्त रूप से पाँच रुद्राक्ष धारण करना चाहिये ।
हे परमेश्वरि ! उपर्युक्त कही गयी इस संख्या के अनुसार जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करता है, उसका स्वरूप भगवान् शंकर के समान सभी लोगों के लिये प्रणम्य और स्तुत्य हो जाता है॥
एवंभूतं स्थितं ध्याने यदा कृत्वासनैर्जनम्
शिवेति व्याहरंश्चैव दृष्ट्वा पापैः प्रमुच्यते
इस प्रकार रुद्राक्ष से युक्त होकर मनुष्य जब आसन लगाकर ध्यानपूर्वक शिव का नाम जपने लगता है, तो उसको देखकर पाप स्वतः छोड़कर भाग जाते हैं ॥
वलक्षं रुद्रा क्षं द्विजतनुभिरेवेह विहितं
सुरक्तं क्षत्त्राणां प्रमुदितमुमे पीतमसकृत्
छिन्नं खंडितं भिन्नं विदीर्ण
ततो वैश्यैर्धार्यं प्रतिदिवसभावश्यकमहो
तथा कृष्णं शूद्रैः! श्रुतिगदितमार्गोयमगजे
हे गिरिराजनन्दिनी उमे ! श्वेत रुद्राक्ष केवल ब्राह्मणों को ही धारण करना चाहिये । गहरे लाल रंग का रुद्राक्ष क्षत्रियों के लिये हितकर बताया गया है । वैश्यों के लिये प्रतिदिन बार-बार पीले रुद्राक्ष को धारण करना आवश्यक है और शूद्रों को काले रंग का रुद्राक्ष धारण करना चाहिये — यह वेदोक्त मार्ग है ॥
वर्णी वनी गृहयतीर्नियमेन दध्यादेतद्र हस्यपरमो न हि जातु तिष्ठेत्
रुद्रा क्षधारणमिदं सुकृतैश्च लभ्यं त्यक्त्वेदमेतदखिलान्नरकान्प्रयांति
ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ, गृहस्थ और संन्यासी — सबको नियमपूर्वक रुद्राक्ष धारण करना उचित है । इसे धारण किये बिना न रहे, यह परम रहस्य है। इसे धारण करने का सौभाग्य बड़े पुण्य से प्राप्त होता है। इसको त्यागनेवाला व्यक्ति नरक को जाता है ॥
सर्वाश्रमाणां वर्णानां स्त्रीशूद्रा णां शिवाज्ञया
धार्याः सदैव रुद्रा क्षा यतीनां प्रणवेन हि
सभी आश्रमों, समस्त वर्णों, स्त्रियों और शूद्रों को भी भगवान् शिव की आज्ञा के अनुसार सदैव रुद्राक्ष धारण करना चाहिये। यतियों के लिये प्रणव के उच्चारणपूर्वक रुद्राक्ष धारण करने का विधान है ॥
यस्याण्गे नास्ति रुद्रा क्षस्त्रिपुण्ड्रं भालपट्टके
मुखे पंचाक्षरं नास्ति तमानय यमालयम्
ज्ञात्वा ज्ञात्वा तत्प्रभावं भस्मरुद्रा क्षधारिणः
ते पूज्याः सर्वदास्माकं नो नेतव्याः कदाचन
यम अपने गणों को आदेश करते हैं कि जिसके शरीर पर रुद्राक्ष नहीं है, मस्तक पर त्रिपुण्ड्र नहीं है और मुख में ‘ॐ नमः शिवाय’ यह पंचाक्षर मन्त्र नहीं है, उसको यमलोक लाया जाये।
भस्म एवं रुद्राक्ष के उस प्रभाव को जानकर या न जानकर जो भस्म और रुद्राक्ष को धारण करनेवाले हैं, वे सर्वदा हमारे लिये पूज्य हैं; उन्हें यमलोक नहीं लाना चाहिये।
एवमाज्ञापयामास कालोपि निजकिण्करान्
तथेति मत्त्वा ते सर्वे तूष्णीमासन्सुविस्मिताः ५३
काल ने भी इस प्रकार से अपने गणों को आदेश दिया, तब वैसा ही होगा’ — ऐसा कहकर आश्चर्यचकित सभी गण चुप हो गये ॥
अत एव महादेवि रुद्रा क्षोत्यघनाशनः
तद्धरो मत्प्रियः शुद्धोऽत्यघवानपि पार्वति
इसलिये हे महादेवि ! रुद्राक्ष भी पापों का नाशक है । हे पार्वति ! उसको धारण करनेवाला मनुष्य पापी होने पर भी मेरे लिये प्रिय है और शुद्ध है।
हस्ते बाहौ तथा मूर्ध्नि रुद्रा क्षं धारयेत्तु यः
अवध्यः सर्वभूतानां रुद्र रूपी चरेद्भुवि
हाथ में, भुजाओं में और सिर पर जो रुद्राक्ष धारण करता है, वह समस्त प्राणियों से अवध्य है और पृथ्वी पर रुद्ररूप होकर विचरण करता है ॥
सुरासुराणां सर्वेषां वंदनीयः सदा स वै
पूजनीयो हि दृष्टस्य पापहा च यथा शिवः
सभी देवों और असुरों के लिये वह सदैव वन्दनीय एवं पूजनीय है। वह दर्शन करनेवाले प्राणी के पापों का शिव के समान ही नाश करनेवाला है॥
ध्यानज्ञानावमुक्तोपि रुद्रा क्षं धारयेत्तु यः
सर्वपापविनिर्मुक्तः स याति परमां गतिम्
ध्यान और ज्ञान से रहित होने पर भी जो रुद्राक्ष धारण करता है, वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर परमगति को प्राप्त होता है॥

Related Articles

Leave a Comment