एक व्यक्ति लेखा अधिकारी की पोस्ट पर थे , शादी के एक हफ्ते बाद उनकी पत्नी तलाक की मांग करने लगी। समयावधि आने पर नोटिस भी भेज दिया गया,
अब निर्धारित समय बीतने वाला था तभी लड़की की ही तरफ के किसी ने लड़की से पूछा कि तलाक़ लेने का असली कारण क्या है , बताओ तो जरा..?
लडक़ी ने कहा कि जब से हमारी शादी हुई है हम पति पत्नी की तरह नहीं रहे हैं ।
यह बात लड़के के मामा के जरिये लड़के से पूछवाई गयी , लड़के के मामा ने पूछा ; क्या समस्या है जो तुमने पति धर्म का पालन नहीं किया ..?
लड़का बोला : मैं तो धर्म ही निभा रहा था पर वो ही उसका मर्म नहीं समझ पाई ।
लड़के के मामा बोले ; कौन सा धर्म निभा रहा था , बता तो जरा
लड़का बोला ; ओशो कहते हैं कि जिस लडकी से तुम कभी मिले नहीं ,जिस लड़की को न तुमसे प्रेम है और न ही तुम्हें उससे।
बस पंडित पुरोहितों के कहने पर सात फेरे ले लिए तो क्या तुम्हारा नियोजित विवाह और उससे होने वाली संतान वैध हो गए ..? नहीं …!!! बिना पूर्व प्रेम के होने वाली हर संतान अवैध है ..!!!! तो मैं चाह रहा था कि पहले हम दोनों के बीच प्रेम पनपे फिर हम पति पत्नी की तरह रहें….
लड़का अपने मामा से यह बात बता ही रहा था कि तभी लड़के के पिता जी जूता उतारकर दनादन लगे पीटने, बाहर खड़े सभी लोगों ने मामला शांत करवाया फिर लडकी को समझाबुझाकर केस वापस करवाया गया। सोचिये बन्दा लेखाधिकारी था…!!
अतः ज्ञानियों से मिला ज्ञान धारदार चाकू के समान होता है जो भी इसको व्यावहारिकता के तराजू में बिना तौले थोथे आदर्शवाद में फंसता है , वह अपना जीवन तबाह कर लेता है ।
जो भी मर्म न समझ कर शब्दशः लागू करने की कोशिश करता है वह आग में हाथ डालता है।