प्रत्येक राष्ट्र किसी ना किसी मनोभाव या सेंटीमेंट की स्थिति में रहता है। इसी मनोभाव को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में सामूहिक चेतना कहा था। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ वर्षो में इस सामूहिक चेतना का पुनर्जागरण हुआ है।
यह माना जाता है कि विभिन्न राष्ट्र समय-समय पर प्रसन्नता, आशा, साहस, अवसाद, निराशा, दया, क्रोध इत्यादि का अनुभव सामूहिक रूप से करते है जिसका प्रभाव उनकी नीतियों पर, उस राष्ट्र के नागरिको के व्यवहार में, दिखाई देता है।
सुदूर से मैं देख सकता हूँ कि भारत इस समय क्रोध का अनुभव कर रहा है। भारत क्रोधित है कि बुद्धिपिशाच वर्ग (अर्बन नक्सल गैंग) एवं हिंदी फिल्म के “स्टार” सर तन से जुदा वाले नारो एवं आतंकियों के विरोध में नहीं आये। भारत क्रोधित है कि यह बुद्धिपिशाच वर्ग एवं हिंदी फिल्म के “स्टार” सनातन धर्म, मूल्य एवं संस्कृति को अपमानित करते है।
भारत क्रोधित है कि इस बुद्धिपिशाच वर्ग एवं हिंदी फिल्म के “स्टारों” ने राम मंदिर बनाये जाने का विरोध किया। भारत क्रोधित है कि बुद्धिपिशाच वर्ग एवं हिंदी फिल्म के “स्टार” अनुच्छेद 370 हटाने एवं CAA लाने के विरोध में खड़ा था। भारत क्रोधित है कि यह बुद्धिपिशाच वर्ग एवं हिंदी फिल्म के “स्टार” कृषि सुधारो के विरोध में खड़ा था; उन सुधारो के विरोध में, जिसका कही बहुत विशाल जनता मौन समर्थन करती थी।
भारत क्रोधित है कि यह बुद्धिपिशाच वर्ग एवं हिंदी फिल्म के “स्टार” घुसपैठियों के समर्थन में खड़े है। इस मनोभाव का प्रभाव हाल ही में तीन हिंदी फिल्मो के बहिष्कार के रूप में देखा गया है। यह कहना असत्य है कि यह तीनो फिल्मे बोर थी; अतः फ्लॉप हो गयी। इनके फ्लॉप होने का एक ही कारण है – बहुसंख्यक भारतीयों द्वारा इनका बहिष्कार। यहाँ तक कि एक अर्बन नक्सल, दोयम स्तर की फिल्म स्टार ने दुखड़ा रोया कि जनविरोध के कारण उसे चार विज्ञापनों से बाहर कर दिया गया। सनातन विरोधी विज्ञापनों से उपजे जनाक्रोश के कारण कुछ कंपनियों की बिक्री पर भारी गिरावट देखी गयी।
मोदी जी प्रधानमंत्री होते हुए भी, वर्ष 2024 में जीत सुनिश्चित होने के बाद भी, जनता के मध्य सदैव विनम्रता से व्यवहार करते है। वोट मांगने की जगह आशीर्वाद मांगते है। अपने आप को प्रधान सेवक कहते है। कमर से 90 डिग्री के कोण पर झुककर, हाथ जोड़कर जनता का अभिवादन करते है। कृषि सुधारो को वापस लेते समय – गलत या सही – क्षमा मांगी।
इसके विपरीत बुद्धिपिशाच वर्ग एवं हिंदी फिल्म के “स्टार” क्या कर रहे है? जनता को ही दोषी ठहरा रहे है – उपहास कर रहे है कि वे चाहते है कि उनकी फिल्म का बहिष्कार करो। वह भी वे लोग जिनके लिए माना जाता है कि वे जनता के हाव-भाव एवं मनोदशा की सूक्ष्मता से अवलोकन करते है; उसे स्क्रीन पर उतारते है। आश्चर्य होता है कि यह वर्ग राष्ट्र हित एवं सनातन मूल्यों के प्रति जनता के प्रेम को समझने में कैसे चूक गया?
जो लोग अभी भी भारत के इस सामूहिक रोष को इग्नोर कर रहे है, उन्हें इस बात का भय होना चाहिए कि इनके विरोध में खड़ी क्रोधित जनता का अवसाद कहाँ और किस रूप में निकलेगा। जनता की “इस” सामूहिक चेतना के पुनर्जागरण का मान-सम्मान करना होगा। अपनी त्रुटियों के लिए क्षमा मांगनी होगी।
क्योकि जनता ही जनार्दन है – चाहे वह सत्ता पक्ष हो या विपक्ष !
या फिर बुद्धिपिशाच वर्ग हो या हिंदी फिल्म के “स्टार”!