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हिन्दू समाज के पुनरुत्थान : छठ पूजा

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हिन्दू समाज के पुनरुत्थान की संभावनाओं के किसी भी पैरामीटर पर देखूँ तो छठ महापर्व अद्वीतिय है. व्यक्तिगत स्तर पर आस्था का तो कहना ही क्या. छठ व्रती जिस श्रद्धा और निष्ठा से इस पर्व के क्रिया कलापों को करते हैं, वह व्यक्तिगत चरित्र निर्माण का एक बेहतरीन यंत्र है. कोई छठ व्रती आपको शॉर्टकट ढूँढता या कन्नी काटता नहीं नज़र आएगा. बिना किसी तीसरे व्यक्ति के इंटरवेंशन और मॉनिटरिंग के छठ व्रती जिस तरह इस पर्व की विधियों को पूर्ण शुद्धता से करते हैं, जरा सोचिए अगर वह प्रोफेशनल और सामाजिक जीवन में हमारी आदत बन जाये तो हमारा देश और समाज कैसे लोगों से बना होगा.
स्वच्छता और शुद्धता का जो आग्रह हम छठ पर दिखाते हैं, वह सामान्यतः हमारे सामाजिक जीवन से गायब होता है. पर्यावरण के प्रति जो सम्मान हम इस व्रत पर दिखाते हैं वह पूरे विश्व के लिए आदर्श स्थापित करता है. रास्तों से लेकर तालाबों, नदियों के घाट और सभी जल स्रोतों के रखरखाव और देखभाल का यह महत्वपूर्ण वार्षिक अवसर है.
वहीं, व्यक्तिगत से परे, सामुदायिक स्तर पर छठ पर्व पर समाज का व्यवहार क्या मानक स्थापित करता है. अनुशासन और परस्पर सहयोग का जो प्रदर्शन हम छठ घाट पर करते हैं, वह अगर सामान्य दिनों में रेलवे स्टेशन पर भी करते तो क्या बात थी. बिना किसी जाति-वर्ग और आर्थिक-सामाजिक हायरार्की के बोध के पूरा समाज एक सूत्र में बँध जाता है. दिखाई देता है कि हममें उच्चतम श्रेष्ठतम सभ्यतागत मूल्यों को वहन करने का पोटेंशियल है.
छठ का अपना एक अर्थतंत्र भी है. हमारे गांवों की परंपरागत शिल्पकला का यह बहुत बड़ा मार्केट है. बाँस की टोकरियाँ और सूप, मिट्टी के कलश और दिए का कोई व्यावसायिक मास प्रोडक्शन विकल्प नहीं विकसित हुआ है और उसकी स्वीकृति नहीं है. आप छठ के सूप दौरे अमेज़न से आर्डर नहीं कर सकते, ठेकुवे और प्रसाद पैकेटबंद अनाज से नहीं बनाते…कम से कम अबतक तो नहीं.
और देश विदेश के किसी भी कोने में बसे बिहारी के लिए यह अपनी मिट्टी से फिर से जुड़ने का सबसे महत्वपूर्ण अवसर है. चाहे अंग्रेज़ी गिटपिटाने वाली अमेरिका में रहने वाली डॉक्टरनी हों या मुम्बई में ऑटो चलाने या बोझा उठाने वाला कोई मजदूर…सबके अंदर का बिहारी उसे अपनी जड़ों से जोड़ता है, और इस जुड़ाव को सौभाग्य का अवसर गिनता है. आज के दिन कोई बिहारी अपनी पहचान को अंग्रेज़ी एक्सेंट या दिल्ली की “मेरे को-तेरेको” वाली भाषा में छुपाने का प्रयास करता नहीं दिखता.
सचमुच, छठ वह अवसर है जब हमारी सभ्यता अपने श्रेष्ठतम सभ्यतागत वस्त्र-आभूषण पहने, अपने बेस्ट-ड्रेस्ड बेस्ट-बेहैव्ड स्वरूप में हमारे सामने होती है.
सभी हिन्दुओं और छठ व्रतियों को छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.

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