आप किनसे तर्क करेंगे?
–औरंगजेब तक को जिंदा फकीर बताने वाले लोग इसी भारत में है। आप फतवा-ए-आलमगीरी या मसीर-ए-आलमगीरी का रेफरेंस देते रहिए, वे दैनिक जागरण की कटिंग लगा देंगे कि औरंगजेब ने काशी के मंदिर नहीं तोड़ने का फरमान दिया था।
— ये इतने दुर्मुख, इतने धूर्त और इतने लबाड़ हैं कि आंखों से दिखते मंदिर को नकार देंगे, पूरी बहस फव्वारा या शिवलिंग- की बना देंगे।
— एक कदम आगे बढ़कर ये भी बता देंगे कि मस्जिद तो अकबर ने बनाई थी और वह जिल्लेइलाही तो महान थे ही। दीन-ए-इलाही चलाया था। इतने महान थे अकबर कि उन्होंने केवल ज्ञानवापी की पश्चिमी दीवार पर कमल और स्वास्तिक बनवा दिए।
बात इतनी सी है कि सहज-सरल सत्य को साबित नहीं करना पड़ता। काशी, मथुरा और अयोध्या– हिंदू स्वाभिमान, आन और बान के प्रतीक हैं। हमारे त्रिदेव का स्थान हैं, इसलिए इनका ढाहा जाना इस्लामिक परम कर्तव्य है। इस्लामी शासन ने इन तीनों ही जगहों को बार-बार ढाहा, बारहां धूल में मिलाया। हरेक बार यह अपनी राख से उठ खड़ा हुआ है।
यह इतनी छोटी सी बात है। इसमें तर्क कहां है…
आपके पास ताकत है, तो अपनी जमीन लीजिए।
जब तक ताकत नहीं है, तब तक खून के आंसू घोंटिए।
बाकी, वाग्विलास और मुकदमे तो हैं ही। चलते ही रहेंगे।