Home अमित सिंघल प्रधानमंत्री मोदी: जो राजनीतिक दल किसान हितैषी सुधारों का विरोध कर रहे हैं, ……. 3

प्रधानमंत्री मोदी: जो राजनीतिक दल किसान हितैषी सुधारों का विरोध कर रहे हैं, ……. 3

अमित सिंघल

by अमित सिंघल
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प्रधानमंत्री मोदी: जो राजनीतिक दल किसान हितैषी सुधारों का विरोध कर रहे हैं, उनमें आपको बौद्धिक बेईमानी और राजनीतिक धोखाधड़ी का असली चेहरा दिखाई देगा।

 

प्रधानमंत्री मोदी से पूछा गया कि आलोचक आरोप लगाते है कि वे फ्री मार्केट अर्थव्यवस्था या उदारवाद के हिमायती है या फिर वे आरएसएस-समर्थित उच्च-जाति रूढ़िवादिता का समर्थन करते है। प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तर दिया कि आपके प्रश्न से ऐसा लगता है कि पिछली शताब्दी के पुराने सिद्धांत जैसे निजी क्षेत्र बनाम सार्वजनिक क्षेत्र, सरकार बनाम जनता, अमीर बनाम गरीब, शहरी बनाम ग्रामीण अभी भी आपके दिमाग में हैं और आप इसमें सब कुछ फिट करना चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि सरकार उनके लिए होनी चाहिए जिनके लिए कोई नहीं है। सरकार का पूरा फोकस उनकी मदद करने पर होना चाहिए। स्मार्ट जिलों के कार्यक्रम का उदाहरण लें जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत में कोई क्षेत्र पीछे न छूटे। हमने स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाया, संसाधन जुटाए, नागरिकों में विश्वास जगाया। यहां तक कि जो जिले कई मानकों में पिछड़ रहे थे, वे भी ऊपर आ गए हैं और उनमें काफी सुधार हुआ है। एक सफलता हासिल हुई है और आपको भविष्य में अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे।
उन्होंने कहा कि हमारे देश की राजनीति ऐसी है कि अब तक हमने एक ही मॉडल देखा है जिसमें सरकार बनाने के लिए सरकार चलायी जाती थी। मेरी मौलिक सोच अलग है। मेरा मानना है कि हमें देश बनाने के लिए सरकार चलानी होगी। पूर्व में पार्टी को जिताने के लिए सरकार चलाने की परंपरा रही है, लेकिन मेरा उद्देश्य देश को जिताने के लिए सरकार चलाना है।
निर्णय लेते समय अगर मुझे थोड़ा सा भी निहित स्वार्थ दिखाई देता है, तो मैं रुक जाता हूँ । निर्णय शुद्ध और प्रामाणिक होना चाहिए और यदि निर्णय इन सभी मानकों पे पास हो जाता है, तो मैं इस तरह के निर्णय को लागू करने के लिए दृढ़ता से आगे बढ़ता हूं। भारत की जनता जिन को सुविधाओं का अधिकार हैं, जो लाभ उन्हें दशकों पहले मिलना चाहिए था, वह अब तक उन तक नहीं पहुंचा है। भारत को ऐसी स्थिति में नहीं रखा जाना चाहिए जहां उसे उन चीजों के लिए और इंतजार करना पड़े जो इस देश और उसके नागरिकों का अधिकार हैं, हमें उन्हें देना चाहिए। और इसके लिए बड़े फैसले लेने चाहिए और जरूरत पड़ने पर कड़े फैसले भी लेने चाहिए।
भारत जैसे बड़े देश में क्या ऐसे निर्णय लिए जा सकते है जो 100 प्रतिशत लोगों को स्वीकार्य हो? यदि निर्णय वृहद हित में है, तो इस तरह के निर्णय को लागू करना सरकार की जिम्मेदारी है। प्रधानमंत्री महोदय ने कहा कि ऐसे राजनीतिक दल हैं जो चुनाव से पहले बड़े-बड़े वादे करते हैं, यहां तक कि उन्हें अपने घोषणापत्र में भी डालते हैं। फिर भी, जब उन्हीं वादों को पूरा करने का समय आता है, तो ये वही पार्टियां और लोग पूरी तरह से यू-टर्न लेते हैं और इससे भी बदतर, अपने द्वारा किए गए वादों पर दुर्भावनापूर्ण प्रकार की गलत सूचना फैलाते हैं। ऐसा व्यवहार विशेष रूप से अवांछनीय है, राजनीतिक दलों के कुछ वर्गों में घृणित लक्षण है। यह एक बौद्धिक बेईमानी और राजनीतिक धोखेबाजी की विशेषता है।
उदाहरण के लिए, आज जो राजनीतिक दल किसान हितैषी सुधारों का विरोध कर रहे हैं उन पर नजर डालें तो आपको बौद्धिक बेईमानी और राजनीतिक धोखाधड़ी का असली चेहरा दिखाई देगा। ये वही लोग थे जिन्होंने पत्र लिखकर उन्हीं सुधारो को लागू करने को कहा था जो हमारी सरकार ने अब किया है। ये वही लोग थे जिन्होंने अपने घोषणापत्र में लिखा था कि हम जो सुधार लाए हैं, वही सुधार लाएंगे। केवल इसलिए कि भाजपा, लोगों के बहुमत से इन सुधारों को लागू कर रही हैं, उन्होंने पूरी तरह से यू-टर्न ले लिया और बौद्धिक बेईमानी के अन्तर्गत, केवल अपने राजनीतिक लाभ के लिए उन सुधारो का विरोध कर रहे है जिनसे किसानों को लाभ होगा।
इस संबंध में सरकार के साथ कई बैठकें भी हो चुकी हैं लेकिन अभी तक किसी ने भी इन सुधारो को लेकर कोई खास असहमति नहीं जताई है कि वे इसे बदलना चाहते हैं। जब आधार, जीएसटी, कृषि कानूनों और यहां तक कि हमारे सुरक्षा बलों को हथियार देने जैसे महत्वपूर्ण मामलों की बात आती है तो आप वही राजनीतिक धोखाधड़ी देख सकते हैं। कुछ भी वादा करो और उसके लिए तर्क दो लेकिन बाद में बिना किसी नैतिक आधार के अपनी ही बातो का विरोध करो।
क्या आपको नहीं लगता कि राजनीतिक दल खुद का मजाक उड़ा रहे थे जब उनके सदस्यों ने नई संसद की आवश्यकता के बारे में बात की, पिछले (लोक सभा) स्पीकर्स ने कहा कि एक नई संसद की जरूरत है? लेकिन अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो कोई न कोई बहाना बनाकर उसका विरोध करता है।  इस तरह के विवाद पैदा करने वालो के लिए मुद्दा यह नहीं है कि हमारे फैसलों से लोगों को फायदा होगा या नहीं, बल्कि उनके लिए मुद्दा यह है कि अगर इस तरह के फैसले लिए गए है तो मोदी की सफलता को कोई नहीं रोक पाएगा। मैं सभी से आग्रह करना चाहता हूं कि मुद्दा यह नहीं है कि मोदी सफल होते हैं या विफल, बल्कि यह होना चाहिए कि हमारा देश सफल होता है या नहीं। ऐसे निर्णय राजनीति से परे होने चाहिए।

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