Home राजनीति भजप्पा की लड़खड़ाहट और ‘अभी तो उन्हें और जलील होना है’…..

भजप्पा की लड़खड़ाहट और ‘अभी तो उन्हें और जलील होना है’…..

Swami Vyalok

by Swami Vyalok
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भूमिका: भजप्पा की राष्ट्रीय-कार्यकारिणी की बैठक अभी हैदराबाद सॉरी भाग्यनगर में हुई। उसमें उदयपुर के बलिदानी कन्हैयालाल को श्रद्धांजलि दी गयी, लेकिन साथ में खालिस्तानी मूसेवाला को भी। साथ ही और भी कई लोगों के साथ, जिनकी मृत्यु हुई थी। एक अदद अकेला शोक-संदेश तक इस कद्दावर पार्टी से न बांचा गया।
मजे की बात तो यह रही कि ये न्यूज भी सभी जगहों से गायब रही। जब इसकी पुष्टि के लिए कुछ लोगों से बात की गयी तो कहा गया कि समाचार तो पुष्ट है, लेकिन हमारा नाम लेकर कुछ न लिखिएगा।
पॉलिटिकल करेक्टनेस का इतना डर!
सबसे बड़ी और दबंग पार्टी का ये लिजलिजापन!
पॉलिटिकल करेक्टनेस की जिद आपको बर्बाद कर देती है। जनसंघ जो मधोक की थी, यज्ञदत्त शर्मा की थी, जगन्नाथराव जोशी की थी, उसे अटल-आडवाणी युति की पॉलिटिकल करेक्टनेस ने खत्म किया। (संदर्भ के लिए तब के अखबारों की कतरनें देख लें, गूगल कर लें और बलराज मधोक का लिखा हुआ देखें)
मधोक ताउम्र जनसंघ का दीपक अकेले जलाते रहे। अटल की कविता और व्यावहारिकता ने उन्हें ‘गलत पार्टी में सही आदमी’ की ख्याति दिलाई, तो आडवाणी की उद्दाम महत्वाकांक्षा उनको जिन्ना की मजार तक खींच ले गई। आडवाणी का पतन उसी दिन शुरू हुआ और फिर मोदी नाम के बगटूट घोड़े ने राजनाथ-जेटली के ‘पॉलिटिकल करेक्टनेस’ के सहारे अश्वमेध जीत लिया।
भाजपा या कहें संघ के विचार-परिवार की गलतियां हालांकि कम न हुईं। सत्ता मिली, पर राज करना नहीं आया। ताकत मिली, पर हनक नहीं। दंड मिला, पर प्रयोग करना न सीख सके। केवल 40 सांसदों और एक बुद्धिहीन, झूठे, कापुरुष, बददिमाग चिराधेड़ के सहारे कांग्रेस इनको समय-समय पर दिखाती है कि सत्ता का सूत्र-संचालन कैसे होता है? आप पांच दिन ED की पूछताछ करवाते रहे, वह उसको शहादत में बदल गया। 8 वर्षों से सत्ता से बाहर रहकर भी वह अपने कहे के लिए एक न्यूज चैनल से माफी मंगवा लेता है, आपकी पूरी सरकार के ऊपर पिछले 8 वर्षों से फेक न्यूज का कीचड़ लगातार फेंका जा रहा है।
संघ की विचार-सरणी ही भ्रमित है। तभी भागवत कभी आरक्षण पर, कभी मुस्लिमों पर ऊलजलूल बयान देते हैं, तो कभी इंद्रेश मुस्लिम मंच बनाते हैं। कश्मीर को साधते हुए आप साख भी गंवा देते हैं और प्रदेश भी। राम मंदिर बनने के बाद भी ज्ञानवापी पर मौलाना बेहूदगी से भरे बयान देते हैं और आप कुछ नहीं कर पाते।
यह लीला न तो पुरानी है, न ही अंतिम। जनेवि में विद्यार्थी परिषद के महासचिव को तब निकालने की पूरी तैयारी कर ली गयी थी, जब उसने हवन आयोजित किया था। वजह- वही पॉलिटिकल करेक्टनेस। कहा गया था कि वह महासचिव कुछ अधिक ही सैद्धांतिक है, नैष्ठिक है। कमाल है न–एक छात्र संगठन के सिद्धांतों को पूर्णतया मानना ‘कमी’ है। आज 2022 में नूपुर शर्मा के साथ जो भजप्पा ने किया, उसकी भी वही वजह- पॉलिटिकल करेक्टनेस। कहीं कुछ नहीं बदला है।
दो अभागों ने जो कुछ भी न्याय की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठकर बका, वह असंवैधानिक, असंसदीय और अभद्र है। वह ईशनिंदा कानून की तैयारी है, सर कलम करने का फतवा है और शरिया थोपने की भूमिका है।
आपको इन पर महाभियोग लाना था, लेकिन आपको तो अभी और जलील होना है।
उनमें से एक 2025 में CJI भी बनेंगे।
फिर, तेरा क्या होगा कालिया?
डिस्क्लेमर: आपको लगता है कि योगी ही राइट चॉइस हैं। सत्ता की चाकी बहुत महीन पीसती है, बाबू। वे भी ठीक वही होंगे, जो तमाम भजप्पाई हैं।

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