Home हमारे लेखकनितिन त्रिपाठी भारत की राजनितिक पार्टिया

भारत की राजनितिक पार्टिया

by Nitin Tripathi
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इंदिरा गांधी ने देश में लम्बे समय राज किया. इसकी बड़ी वजह यह थी कि हर ज़िले के बाहु बली और सेठ के पास सीधे इंदिरा गांधी का नम्बर होता था. बिलकुल रूट लेवल तक इंदिरा गांधी का राज था.
राजीव जी जब प्रधान मंत्री बने तो ना उनके पास इतनी सूझ बूझ थी ना समय. तो उन्होंने इस नेक्सस का राजनीति करण कर दिया. पंचायती राज सिस्टम की स्थापना की. इस पंचायती राज सिस्टम का गठन ही इस लिए किया गया था कि ज़िले गाँव स्तर तक के बाहुबलियों का राजनीति में समायोजन हो जाए. यह सिस्टम में आ जाएँ तो इंडिविजूअल मॉनिटरिंग की ज़रूरत नहीं है. पार्टी को इनसे बाहुबल और इन्हें पार्टी से संरक्षण मिलता रहेगा. अब यह लोग स्वयं नेता बन गए.
मुलायम सिंह ने पंचायती राज सिस्टम पर हमला कर पहले इसे क़ब्ज़े में लिया. कांग्रेस पूरी तरह आप्रसंगिक हो गई क्योंकि अब प्रदेश में न इसके पास पैसा रहा, ना बाहुबल ना नेता. बोफ़ोर्स की दलाली से पैसा तो खाया जा सकता है लेकिन कुंजपुर में राज कुंज पुर का प्रधान ही करेगा कवात्रेचि नहीं. मुलायम का लम्बे समय राज रहा सहकारी, भूमि विकास बैंक और पंचायती राज सिस्टम में.
फिर काशीराम ने एंट्री मार काफ़ी हद तक प्रधानी लेवल पर बसपा की दख़लंदाज़ी कर दी. तो यह हो गया कि ग्रामीण स्तर पर प्रधान कोई भी बिना बसपा के समर्थन के न बनता था. इन दोनों पार्टियों की यही ताक़त रही.
भाजपा कभी कभार लहर के सहारे सत्ता में आ तो जाती थी, लेकिन ज़मीन पर उसने कभी पकड़ ना मज़बूत की. जनता एक बार लहर में वोट तो दे देती थी, लेकिन उसके अग़ल बग़ल के BDC, ब्लॉक प्रमुख, स्थानीय नेता, बाहु बली सब रहते सपा बसपा के ही थे तो अगले चुनाव में भाजपा का पत्ता साफ़ हो जाता था. बस शहरों की पार्टी मात्र बन रह गयी थी भाजपा.
वर्तमान भाजपा पहले से अलग है. इसने पूर्व की ग़लतियों से सबक़ सीखा है. पंचायती राज का चुनाव बाहुबल और पैसे के बल का चुनाव है. यदि हिचके तो समाज वादी पार्टी तो तैयार ही है. अभी भी जहाँ जहाँ भाजपा के नेता थोड़े सीधे पड़े, सपा वाले दबंग पड़े वहाँ सपा इक्का दुक्का सीटें जीत जा रही है. लेकिन यह भाजपा वह भाजपा है जो हर चुनाव को उसी चुनाव की भाँति युद्ध स्तर पर लेती है. जहाँ जनमत की ज़रूरत होती है वहाँ जनता साथ है ही. पर हाँ सहकारी समिति और सहकारी बैंकों में भी तीन दसकों बाद पहली बार सपा का ख़ात्मा हुआ है. भूमि विकास बैंक से सपा सफ़ा हो गई है. और ब्लॉक प्रमुखों के चुनाव में भी भाजपा ने सीख लिया है जीत कैसे हासिल करनी है. इन चुनावों में भाजपा इतनी बड़ी जीत हासिल करेगी जितनी कभी किसी की नही हुई होगी.
बाक़ी जैसा देश वैसा भेष. जिस चुनाव में वोटर पैसे और बाहुबल को वोट देते हैं वहाँ पैसा और बाहुबल ज़रूरी होता है. जिन चुनावों में जनता वोट देती है वहाँ जनता को पसंद आने वाला काम ज़रूरी होता है. राजनीति क्रूर और निर्मम होती है. काग़ज़ी मोरल हाईनेस से नैतिक जीत का ही ढोल पीटना पड़ता है.
वर्तमान भाजपा दो बार लोकसभा एक बार विधान सभा, ज़िला पंचायत भी जीती है और अब ब्लॉक प्रमुख में नब्बे प्रतिशत जीतेगी. 2022 का विधान सभा और 2024 की लोकसभा भी जीतेगी.

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