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महाबलीपुरम में महाभारत

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महाबलीपुरम जाइए … वहाँ महाभारत के नायकों और श्री कृष्ण लीला को चालुक्य और पल्लव साम्राज्य के शासकों ने कलाकारों से कहानियाँ उकेरी हुई हैं …. ये सब लगभग सन 682 की बनी हुई पत्थरों को तराश के बनाई हुई कहानियाँ हैं …
वहाँ आपको अर्जुन द्वारा १२ वर्ष के कठोर तपस्या की कहानी भी है …
पत्थरों पर अर्जुन की काया है जो हड्डियों का ढाँचा दिखाई देता है क्योंकि १२ वर्ष अन्न जल ग्रहण किए बिना शिव जी की तपस्या का दर्शन है …
महादेव प्रसन्न होकर अर्जुन को पशुपाष्त्र अष्त्र देते हैं और विजयी होने का आशीर्वाद देते हैं ….
अर्जुन के तपस्या रत रहते बाकी चार भाई और द्रौपदी 5 अलग अलग शयन कक्ष में रहते है और बारी बारी सुरक्षा करते हैं ….
और भी कहानियाँ यहाँ उकेरी मिलेंगी …. ये याद आ गया …
जिस दक्षिण भारत में महाभारत युद्ध का कोई असर नहीं था उस चालुक्य और पल्लव साम्राज्य के राजा न केवल महाभारत के इन नायकों पर गर्व करते थे अपितु उन्होंने उसको संसार को बताने के लिए ऐसा काम किया कि जो आज UNESCO द्वारा घोषित world heritage है ….
कहाँ किन गर्धबों के चक्कर में पड़े हो ….
गर्व करने के लिए गांधार से लेकर कटक …
अहोम से लेकर श्री लंका, कोमबोडिया, Indonesia, फिजी तक हमारे महापुरुषों और सम सामयिक नायकों की कहानियाँ भरी पड़ी हैं ….
दाम्भियों और मूर्खों को बातें नहीं समझ आती ….
ये स्वयं को महान चालुक्य और पल्लव राजाओं से अधिक महान मानते हैं …
मानने दो … ये लोग kuरान कंठस्थ करने और महाभारत को बी आर चोपड़ा के धारावाहिक से जानने वाले लोग हैं

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