आप जिसका अनुसरण करते हैं,प्रशंसक होते हैं,भले आपमें उन व्यक्तित्व के गुणों के समान गुण न हो,पर समय के साथ पीछे चलते पाइयेगा कि आपको पता भी नहीं चला और उक्त के कई गुण आपमें आ गए।
इसलिए महापुरुषों ने कहा है कि किसी का अनुसरण बहुत सोच समझकर करना चाहिए।
किसी गम्बर का अनुसरण कर,उसे पूज आप पिशाच बन सकते हैं तो किसी सनातनी महापुरुष का अनुसरण कर,उसपर श्रद्धा भक्ति रख स्थिरबुद्धि सामर्थ्यवान धर्मपरायण देवतुल्य हो सकते हैं।
बचपन में एक प्रश्न हमारी उम्र के लगभग सभी बच्चों से पूछा जाता था- “बड़े होकर क्या बनोगे?”
और हमारा उत्तर गाँधीजी, नेहरूजी,सुभाष चन्द्र बोस,इन्दिरा गांधी,सरोजिनी नायडू,लक्ष्मीबाई आदि इत्यादि या फिर डॉक्टर इंजीनियर जज प्रोफेसर आदि होते थे।
ये उत्तर भी हमें हमारे अभिभावक परिजन या गुरुजी ही रटाते थे और इन बड़े लोगों की जीवनियाँ बताते पढ़ाते रटाते थकते न थे।
वैसे अभिभावकों गुरुजनों तक ये जीवनियाँ जिन्होंने लिखकर पहुँचायी थी, उन्हें आज हम दुष्ट हिन्दू और भ्रातद्रोही वामी बुद्धिजीवी के नाम से जानते हैं और उनकी तथा उन जीवनियों की सच्चाई भी बेहतर जानने लगे हैं।तो अब यदि कोई हमसे पूछे कि उस तालिका में से “बनने” के लिए कितने नाम चुनना चाहोगे,,,तो हाथ में गिनती के ही नाम रहेंगे।किन्तु यदि उससे बाहर के पिछले 100 वर्षों के इतिहास, राजनीति से नाम चुनने का विकल्प मिले तो अनगिनत नाम सम्मुख होंगे,,वस्तुतः चुनाव करना कठिन हो जाएगा।
किन्तु मुझसे यदि कोई पूछे तो मैं निर्द्वंद कह सकती हूँ कि मैं स्वयं में “मोदीजी” वाले गुण सोच रुचियाँ सूझ बूझ स्थिरता सामर्थ्य,चाणक्य सी राजनीतिक बुद्धि और सबसे बढ़कर “धैर्य” विकसित करना चाहूँगी।वय के बावन वर्ष पूर्ण कर जीवन में पहली बार ऐसा हुआ है कि अविश्वास से आरम्भ करके दृढ़ विश्वास वाली स्थिति में प्रत्येक बीतते दिन के साथ मैं पहुँचती जा रही हूँ।आज से दशक भर पहले मेरी कल्पना में भी नहीं था कि किसी राजनेता पर न केवल विश्वास अपितु मैं अपार श्रद्धा भाव भी रखने लगूँगी।
उनकी प्रशंसक बन जो मैंने सबसे बड़ी चीज पायी है वह है “धैर्य”…..
जिस समय किसी घटना से समाचार से विचार मंच तक पर कोहराम मचा होता है, यह धैर्य ही मुझे विचलन से बचाया करती है,, मैं आश्वस्त होती हूँ कि यदि मोदीजी हैं,तो देर सबेर सब मुमकिन,सही हो ही जायेगा।
हो सकता है अपने रहते भर में मोदीजी देश का,स्वयं का सोच हुआ 100% अचीव न कर पाएँ जो देश के लिए अतिआवश्यक है, किन्तु वे व्यवस्थाएँ ऐसी अवश्य कर के जायेंगे कि उनके चलाये अभियान को उनके द्वारा तैयार किये राष्ट्रसेवक, कुशल नेता और चैतन्य देशवासी आगे लेकर जायेंगे।योगी,विश्वशर्मा आदि के बाद अब शिंदे भी,,,कई तैयार हो रहे हैं,आगे भी होंगे।
मात्र एक दशक में यदि मैं घनघोर सेकुलड़ से हिन्दू हुई हूँ तो विश्वास है मुझे कि मेरी ही तरह कई कई होंगे।चैतन्य समाज ही अपना भी और अपने धर्म संस्कृति साहित्य इतिहास का भी संरक्षण कर सकता है।
खैर, आज महाराष्ट्र का उत्तर मिला है, जल्दी ही कई और उत्तर भी मिलेंगे जो प्रश्न अभी हम जैसे समर्थकों को चाबुक की तरह मारे जाते हैं।
आज तो यही कहूँगी कि महाराष्ट्र में जो हुआ, इससे उत्तम भी कुछ भला हो सकता था,,,देख गदगद हूँ।आभार नेतृत्व को।
एक बात हमें कभी भूलनी नहीं चाहिए कि राजनीति से असंपृक्त देश समाज मनुष्य जीवन में कुछ भी नहीं होता।राजनीति/सत्ता में यदि धर्म अवस्थित हो तो सबसे निचले कण तक धर्म, सुख, शान्ति,विकास प्रवाहित गतिमान होती है,अन्यथा कोई लाख आँख कान मूँद कर “आई हेट पॉलिटिक्स” कहते दावा करे कि वह राजनीति से मुक्त,उसका भुक्तभोगी नहीं,, स्वयं को ही ठग रहा है।अतः राजनीति पर दृष्टि रखना,हमारा प्राथमिक कर्तब्य होना ही चाहिए।