Home राजनीति सरकार के व्यय को समझने की आवश्यकता है।

सरकार के व्यय को समझने की आवश्यकता है।

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प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात में बताया कि भारत विदेशों से यूरिया मंगाता है उसमें यूरिया का 50 किलो का एक बैग 3500 रुपए का पड़ता है। गांव में किसान को वही यूरिया का बैग केवल 300 रुपए में दिया जाता है। यानि यूरिया के एक बैग पर 3200 रुपए का बोझ सरकार वहन कर रही है।
इसी प्रकार DAP (पोटाश और फॉस्फेट) के 50 किलो के बैग पर पूर्व की सरकार 500 रुपए का भार वहन करती थी। लेकिन मोदी सरकार DAP के 50 किलो के बैग पर 2500 रुपए वहन कर रही है। यानि 12 महीने के भीतर-भीतर हर बैग DAP पर 5 गुणा भार केंद्र सरकार ने अपने ऊपर लिया है।
किसान को दिक्कत ना हो इसके लिए पिछले साल 1 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपए की फर्टिलाइजर सब्सिडी केंद्र सरकार ने दी है। किसानों को मिलने वाली ये राहत इस साल लगभग 2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा होने वाली है।
आवश्यक है कि समझा जाए कि यह सब्सिडी किसानो को नहीं मिलती है।
एक तरह से यह सब्सिडी शहरी लोगो को मिलती है।
कारण यह है कि अगर किसान को सब्सिडी ना मिले, तो वह अपनी इनपुट कॉस्ट (फ़र्टिलाइज़र, कीटनाशक, बीज, बैल/ट्रेक्टर, लेबर, सिंचाई इत्यादि) को बाजार में सरका देगा। किसान अपने खाने-पीने की व्यवस्था करने के बाद ही बचा उत्पाद बाजार में बेचता है। गन्ना, गेंहू, धान, दलहन, तिलहन, तरकारी, फल, दुग्ध इत्यादि वाले किसान आपस में एक्सचेंज करके अपने भोजन की व्यवस्था कर लेंगे।
लेकिन शहरी लोगो को मंडी में ही यह सब उत्पाद उपलब्ध होंगे। और उसके लिए मुद्रा (रुपये) का प्रयोग किया जाएगा।
एक पल के लिए सोचिये। उद्योगपति इनपुट कॉस्ट (ईंधन, कच्चा माल, पैकेजिंग, लेबर, माल ढुलाई, पूँजी निवेश पर ब्याज, अकाउंटेंट-वकील, भ्रस्टाचार, इत्यादि) की कीमत बढ़ने पर फाइनल प्रोडक्ट का दाम बढ़ाकर आपसे वसूल लेता है। या फिर वह टूथपेस्ट, बिस्कुट का साइज़ छोटा कर देगा, AC, फ्रिज, टीवी, जूता, गाड़ी इत्यादि की क्वालिटी गिरा देगा; गारंटी की अवधी कम कर देगा। अब आप टीवी के अंदर घुसकर तो देखेंगे नहीं कि उसमे तांबे या अल्मुनियम का कितना मोटा तार लगा है, प्लास्टिक किस गुणवत्ता की लगी है।
यही मार्ग किसान भी चुनेगा। आखिरकार दुग्ध, शहद, फल, मांस-मछली उत्पादक अपनी इनपुट कॉस्ट बाजार में ट्रांसफर कर देता है।
लेकिन समस्या यह है कि किसान एवं उनके हितैषियों (अशोक गुलाटी इस विषय पर कई बार लिख चुके है) ने कभी भी इस सब्सिडी के बारे में गहराई से नहीं सोचा। एक तरह से इस सब्सिडी की कीमत किसानो से भी वसूली जाती है जब वे किसी अन्य उत्पाद पर GST भरते है, पेट्रोल-डीजल, शराब इत्यादि पर टैक्स देते है।
और यह सब्सिडी किसके लिए? उन्ही शहरियों के लिए, उस मध्यम वर्ग के लिए, जिनमे से कई को फ्री बस (दिल्ली), सस्ता एवं नियमित स्थानीय ट्रांसपोर्ट, राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय यात्रा, बिजली, नल से जल, टॉयलेट, सीवर, कूड़ा निकासी, बढ़िया स्कूल, स्वास्थ्य, इत्यादि किसी ना किसी प्रकार की सब्सिडी के बाद मिल रही है। वह सब्सिडी जो किसानो एवं निर्धनों के टैक्स से शहरी लोगो को मिलती है।
इसके बाद भी इस शहरी वर्ग को ट्रेन यात्रा में सब्सिडी चाहिए। लागत से कम कीमत पर इंफ्रास्ट्रक्चर, सड़क पर कौड़ियों के दाम पर पार्किंग सुविधा, सरकारी नौकरी के नाम पर रिटायरमेंट के बाद पुरानी पेंशन जिसमे उनका नगण्य योगदान है जबकि निजी क्षेत्र वाले कर्मियों को वही पेंशन मिलेगी जितना उन्होंने एवं उनके एम्प्लायर ने पेंशन फंड में डाला है।
नाम किसानो का, नाम निर्धनों का। फिर मुफ्तखोर कहके उनका उपहास भी उड़ाना।
मजा मध्यम वर्ग का। शिकायत भी मध्यम वर्ग की।

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