दिल्ली मे इतने विरोध के बावजूद केजरीवाल की वापसी कैसे हुई? इस सवाल पर आप यदि काम करेंगे तो पाएंगे कि केजरीवाल ने अपने जेजे कॉलोनी से लेकर बसंत कुंज तक रहने वाले कार्यकर्ताओं के रोजगार पर काम किया। वह मोहल्ला क्लिनिक के नाम पर अपने कार्यकर्ताओं के घरों को अधिक रकम देकर किराए पर लेने का मामला हो। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सिविल डिफेंस के तौर पर भर्ती कराने का मामला हो। बसोे में मार्शल रखने का मामला हो।
घर—घर राशन पहुंचाने की बात बन जाती तो 1000—1500 लोगों को और रोजगार मिल जाता। केजरीवाल ने तैयारी तो कर ही रखी थी। शराब को निजी हाथों में देने की पूरी कवायद इसलिए दिल्ली में हुई क्योंकि पार्टी जिन कार्यकर्ताओं को चाहे उन्हें ठेका दे सके। शराब को घर—घर पहुंचाने की बात इसलिए हो रही है क्योंंकि इसी बहाने 1000—1200 कार्यकर्ताओं को और काम मिल जाए। इस तरह केजरीवाल ने दिल्ली में अपने 15—20 हजार कार्यकर्ताओं को काम पर लगाया है। जो पूरे समय सड़क पर रहते हैं। लोगों के बीच रहते हैं और वे कभी नहीं चाहेंगे कि केजरीवाल की सरकार जाए।
हाल में ही आम आदमी पार्टी ने अपने सभी जिलाध्यक्षों से दस—दस नाम मांगे हैं। किसी नई योजना में इन सभी को रोजगार देना है उन्हें।
हम इस मुद्दे पर नैतिक और अनैतिक के सवाल पर लंबी बहस कर सकते हैं। एक सोचने—विचारने वाले व्यक्ति के नाते आम आदमी पार्टी के इस कदम से सहमत नहीं हो सकता लेकिन इन सारी बहसों के बावजूद जब किसी भी पार्टी का कार्यकर्ता पूरे दिन अपनी पार्टी के लिए बहस करके, पार्टी के पक्ष में नारे लगाकर घर जाता है तो उसे रोटी ही खानी होती है। रोटी खाने के लिए रोजगार चाहिए।
सत्ता में जो पार्टी नहीं है, वह अधिक कुछ नहीं कर सकती लेकिन जो पार्टी सत्ता में है वह यदि इस पर अधिक नहीं सोच पाती तो उस पार्टी के कार्यकर्ताओं की चिन्ता वाजिब ही मानी जाएगी। केजरीवाल मॉडल देश भर की पार्टियों के सामने एक चुनौती है। यह सच है कि यह मॉडल अनैतिक है लेकिन इसका कोई नैतिक विकल्प क्या हो सकता है, जिसमें किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ताओं के रोजगार की चिन्ता सही—सही एड्रेस हो।