1947 से पहले की बात है, उस समय फिल्मिस्तान स्टुडियो के तत्कालीन मालिक और प्रख्यात फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी की एक फिल्म का संगीत उस दौर के प्रसिद्ध संगीतकार गुलाम हैदर तैयार कर रहे थे। फिल्म के गानों के लिए एक 16-17 वर्षीय गायिका को चयनित कर उस गायिका को वो शशधर मुखर्जी के पास फिल्मिस्तान स्टुडियो लेकर गए थे। मुखर्जी साहब ने गायिका की आवाज को बहुत महीन और फिल्मी गीतों के लिए अनुपयुक्त बता कर उस गायिका से गीत गवाने की अनुमति गुलाम हैदर को नहीं दी थी। इस पर गुलाम हैदर ने मुखर्जी साहब से कहा था कि मालिक आप हो और आपकी इच्छा नहीं है इसलिए मैं गीत किसी और गायिका से गवा लूंगा, लेकिन मेरी एक बात नोट कर लीजिए कि जिस लड़की को आज आप रिजेक्ट कर रहे हो एक दिन इसी लड़की के लिए यही फिल्मी दुनिया घुटनों के बल चल कर इसके दरवाजे जाएगी, लाल कालीन बिछा कर इसका स्वागत करेगी। इतना कह कर शशधर मुखर्जी के कमरे से बाहर निकले गुलाम हैदर बाहर खड़ी उस गायिका को साथ लेकर लोकल ट्रेन पकड़ने के लिए गोरेगांव स्टेशन की तरफ पैदल ही चल दिये थे और रास्ते में उस गायिका का मनोबल बढ़ाते हुए, उसको समझाते हुए उन्होंने कहा था कि निराश मत हो तुमको सुनने के बाद लोग नूरजहां और शमशाद बेगम को भूल जाएंगे। इसके बाद गुलाम हैदर ने उस दौर के कुछ और संगीतकारों से उस गायिका का परिचय कराया था। 1947 में हुए विभाजन के दौरान गुलाम हैदर पाकिस्तान चले गए थे क्योंकि उनका पैतृक घर लाहौर में ही था। वहां जाने के 2 वर्ष बाद एक दिन उन्होंने पाकिस्तान से उस गायिका को फोन किया था और याद दिलाते हुए बोले थे कि… याद है मैंने क्या कहा था कि… “लोग नूरजहां और शमशाद बेगम को भूल जाएंगे।”
दरअसल गुलाम हैदर ने वह फोन किया ही इसलिए था क्योंकि 1949 में रिलीज हुई एक फिल्म में उस गायिका की आवाज से सजे गानों ने देश में ऎसी धूम मचाई थी जिसकी धमक आज 73 वर्ष बाद भी सुनायी देती है। उस फिल्म का नाम था बरसात और वह गायिका थीं स्वरकोकिला भारतरत्न लता मंगेशकर जी।
गुलाम हैदर जी ने उस दिन शशधर मुखर्जी से गलत नहीं कहा था। पिछले 73 वर्षों के दौरान स्वर सम्राज्ञी के रूप में लता जी ने देश के दिल पर एकछत्र राज किया। पूरी दुनिया ने देखा कि उनके स्वागत के लिए लाल कालीन बिछा कर फिल्मी दुनिया घुटनों के बल चल कर ही उनके दरवाजे पर कतारबद्ध होती रही।
वही स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर जी आज हमसे विदा हो गईं। पिछले 6-7 दशकों से अपने आचार व्यवहार, विचार और संस्कार से भारतीय सभ्यता संस्कृति की वैश्विक राजदूत की महती भूमिका का निर्वाह कर रहीं लता जी भारतीय संगीत प्रेमियों को मां सरस्वती द्वारा प्रदान किया गया अप्रतिम उपहार थीं। लता जी की गायकी, उनके गीतों के विपुल संसार पर कुछ भी लिखना “सूर्य को दीप” दिखाने के समान ही होगा। उनपर वाग्देवी की कितनी महान कृपा थी इसका अनुमान इस एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2014 में 85 वर्ष की आयु में उनके द्वारा रिकॉर्ड कराए गए “राम रक्षा स्त्रोत” को सुनकर आप भक्ति रस से सराबोर तो होते ही हैं साथ ही साथ यह सोचकर विस्मित हो जाते हैं कि 85 वर्ष की वृद्धावस्था में क्या किसी का स्वर इतना सधा हुआ, इतना मधुर हो सकता है। विशेष ईश्वर कृपा के बिना ऐसा होना असम्भव है।
भारत और भारतीयता की अमूल्य धरोहर रहीं स्वरकोकिला भारतरत्न लता मंगेशकर जी को प्रभु श्रीराम अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान करें।🙏🏻
वाग्देवी का वरदान आज भारत से विदा हो गया।
हम तुम्हें भुला ना पाएंगे दीदी...
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