Home लेखक और लेखसतीश चंद्र मिश्रा हमारी नींव के पत्थर यही हैं…

हमारी नींव के पत्थर यही हैं…

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स्नातक कक्षा में जिन गुरुजनों का मार्गदर्शन मिला उनमें से एक थे डॉक्टर सलिल चंद्रा। उनके पिता वरिष्ठ आईएएस अधिकारी थे। स्वंय डॉक्टर चंद्रा भी आईएएस में चयनित हुए थे लेकिन प्रोबेशन के दौरान ही आईएएस की उस नौकरी को छोड़कर उन्होंने डिग्री कॉलेज में लेक्चरर बनने को प्राथमिकता दी थी। सौभाग्य से मैं उनका सर्वाधिक प्रिय छात्र था, क्लासरूम के अतिरिक्त मैं उनके घर जाकर भी उनका मार्गदर्शन लेता रहता था।
अतः एक दिन मैंने उनसे पूछ लिया था कि सर आपने आईएएस की नौकरी के बजाए डिग्री कॉलेज में लेक्चरर बनने को प्राथमिकता क्यों दी.? इस पर उन्होंने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया था कि जो वेतन मुझे यहां मिलता है, लगभग उतना ही वेतन मुझे वहां मिल रहा था। बेईमानी, ऊपर की कमाई मेरी प्राथमिकता सूची में ही नहीं है। लेकिन मन और आत्मा को जो संतुष्टि यहां मिलती है उसका दशमांश भी उस आईएएस की नौकरी में प्राप्त नहीं होता था।
स्नातक तक शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात डॉक्टर सलिल चंद्रा जी के नियमित सान्निध्य का क्रम टूटे हुए 4 साल गुजर चुके थे। लेकिन कॉलेज से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित रेलवे कॉलोनी में मेरा आवास होने के कारण डॉक्टर चंद्रा से यदाकदा भेंट होती रहती थी।  जिस रेलवे कॉलोनी में मेरा आवास था उसके गेट पर ही अत्यन्त वाचाल चौरसिया बाबू की पान की दुकान थी। उस समय तक मैं चेन स्मोकर हो चुका था।
अतः चौरसिया बाबू की पान की दुकान का चक्कर दिन में कई बार लगता रहता था। इसी क्रम में एक दिन जब उस दुकान पर पहुंचा तो डॉक्टर सलिल चंद्रा कॉलेज के तीन अन्य गुरुजन साथियों के साथ वहां खड़े हुए थे। मैंने सबके पांव छुए। डॉक्टर चंद्रा ने मुझसे मेरा हालचाल पूछा था और मैंने उन्हें बताया था कि यहीं मेरा आवास है। इतनी संक्षिप्त बातचीत के बाद मैं वहां से चला गया था। यह बहुत सामान्य सा घटनाक्रम कितना विशेष था, कितना महत्वपूर्ण संदेश अपने में समाहित किए था इसका पता मुझे लगभग 2 महीने बाद तब चला था जब वाचाल चौरसिया बाबू ने एक दिन मुस्कुराते हुए मुझसे शिकायती लहजे में कहा था कि सतीश तुमने मेरे 4-5 नियमित ग्राहक हमेशा के लिए तोड़ दिए।
यह सुनकर मैं चौंका था और इसका कारण चौरसिया से पूछा था। तब चौरसिया बाबू ने बताया था कि जिस दिन उनकी दुकान के पास डॉक्टर चंद्रा से मेरी भेंट हुई थी उस दिन के बाद से डॉक्टर सलिल चंद्रा और उनके साथी शिक्षक चौरसिया बाबू की दुकान पर नहीं आये थे।
चौरसिया बाबू ने बताया कि कल उनकी भेंट डॉक्टर चंद्रा से हुई थी तो उन्होंने इसका कारण उनसे पूछा था। इसपर डॉक्टर चंद्रा ने उन्हें बताया था कि कॉलेज के सामने की सड़क पार स्थित दर्जन भर पान की दुकानों को छोड़कर वे और उनके साथी शिक्षक थोड़ी दूर पर स्थित चौरसिया बाबू की दुकान पर दिन में एकबार पान खाने इसलिए आते थे क्योंकि कॉलेज के छात्रों के सामने पान खाने को वह उचित नहीं मानते थे।
लेकिन उस दिन मुझसे हुई भेंट और यह ज्ञात होने के बाद कि मेरा आवास भी यहीं पास में है, डॉक्टर चंद्रा ने वहां आना भी इसलिए बंद कर दिया था क्योंकि डॉक्टर चंद्रा यह जानते थे कि उनके प्रति मेरा आदर भाव असीमित है।
छात्रों, विशेषकर स्नातक स्तर के वयस्क छात्रों के प्रति अपने दायित्व तथा अपनी छवि के प्रति इतने सजग सतर्क संवेदनशील शिक्षक ही उस नींव के पत्थर हैं, जिस पर देश और समाज का विराट विशाल भव्य ढांचा बनकर तैयार हुआ और मजबूती से खड़ा हुआ है।
हमारी नींव के ऐसे सम्मानीय पूजनीय सभी शिक्षकों को कोटि कोटि नमन, वंदन तथा शिक्षक दिवस की अशेष शुभकामनाएं।

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