कई लोगों ने कल इंग्लैंड में हो रहे हिन्दू विरोधी हिंसा में इस्लामी और ईसाई गठजोड़ की बात की. यहां स्थिति की स्पष्टता के लिए आवश्यक है कि इंग्लिश समाज में ईसाई जनसंख्या और उनके राजनीतिक अस्तित्व की चर्चा की जाए.
इंग्लैंड में ईसाई जनसंख्या माइनोरिटी में है. ईसाई से मेरा अर्थ चर्च जाने और ईसाइयत पर आस्था रखने वाले ईसाइयों से है. ज्यादातर लोग या तो खुद को नास्तिक कहते हैं, या फिर ईश्वर पर आस्था और चर्च और बाइबल पर शब्दशः विश्वास को अलग अलग रखते हैं. ओह माई गॉड, या ओह जीसस कहने वाला हर अंग्रेज ईसाई नहीं है. ईसाई जनता और चर्च को भी अलग अलग देखने की जरूरत है. एक औसत ईसाई भी जीसस क्राइस्ट को एक महान व्यक्तित्व तो मानता है, लेकिन उनके दैवीय वर्णन पर शब्दशः विश्वास नहीं करता.
जो आस्थावान चर्च जाने वाले ईसाई हैं, वे भी भारत के ईसाइयों की तरह चर्च की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के प्रभाव में नहीं हैं. चर्च जहां एशिया और अफ्रीका में एक औपनिवेशिक औजार बना है, यहां वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है. चर्च जाने वालों, और शादी ब्याह और फ्यूनरल के अलावा चर्च से मतलब रखने वालों की संख्या नगण्य है. आमतौर पर एक अंग्रेज मृत्यु शय्या पर भी किसी पादरी को नहीं खोजता, हालांकि हॉस्पिटल की ओर से हर शाखा के पादरी उपलब्ध हैं.
एक आस्थावान ईसाई, जो साथ ही राजनीतिक रूप से सजग भी हो, कम ही देखने मिलता है. जो बीबीसी और गार्डियन का एजेंडा बिना अपना दिमाग लगाए ढोते हैं, उनकी बात छोड़ दें तो सजग और सोचने समझने वाला रेयर अंग्रेज इस्लाम की हरकतों से उतना ही परेशान और सशंकित है जितना हम और आप. वह भी पॉलिटिकल करेक्टनेस के नीचे दबा कराह रहा है, जैसे और लोग. पॉलिटिकल करेक्टनेस का बोझ और उसे तोड़ने का कॉस्ट भी इंग्लैंड में भारत से कई गुना अधिक है. उसकी सीमाओं के अंदर जो अंग्रेज इंग्लैंड के भविष्य की चिन्ता से प्रेरित है, उसकी और एक सजग हिन्दू की दृष्टि में बहुत साम्य है, और यह यहां के हिंदुओं के कंजर्वेटिव पार्टी के साथ पोलराइजेशन से और स्पष्ट होता जा रहा है.
हां, यहां जिहादियों के पास एक महत्वपूर्ण और ताकतवर सहयोगी है… वह है यहां का वामी राजनीतिक और प्रचारतंत्र. बीबीसी जैसे संस्थान कहने भर को सरकारी हैं, पर वे हैं यहां की फैबियन सोशलिज्म की उपज. वे यहां के मेनस्ट्रीम वामपंथी हैं और खुल कर जिहादियों के साथ हैं, सरकार का चाहे जो भी स्टैंड हो. और यहां का औसत अंग्रेज बीबीसी और अन्य वामी प्रचार माध्यमों के घोर प्रभाव में है, लेकिन वह उसके ईसाई होने की वजह से नहीं है. बल्कि यहां के आस्थावान ईसाई पर उसका औसत से कम प्रभाव है.
अंग्रेज हमारे शत्रु हैं, उन्होंने हमें लूटा है, हमारा कोहिनूर लौटाओ टाइप के कम-दिमाग cliché किसी फेसबुक मठाधीश के लिए लाइक्स और फॉलोअर्स तो जुटा सकते हैं, लेकिन तत्कालीन या दीर्घकालीन हिन्दू हितों के पक्ष में नहीं हैं. सबको अपना शत्रु घोषित करना और स्वयं को ब्रम्हांड का अकेला हिन्दू घोषित करना इगो मस्टरबेशन के सिवा और कुछ नहीं हासिल करता. बल्कि जिहादी भी यही चाहते हैं कि वे हमें सबका शत्रु घोषित कर सकें.