Home विषयकहानिया एक छद्म नारीवादी दीदी मेरी

एक छद्म नारीवादी दीदी मेरी

229 views
अभी एक छद्म नारीवादी दीदी मेरी “असंतुष्टि” मीम्स वाली पोस्ट देखकर भड़क गई और बोली कि “बहुत खलिहार हो” पितृ सत्ता की गुलाम हो..!
ऐसा है न दीदी हम लोग पितृ सत्ता में ही पली बढ़ी हैं , उस पितृ सत्ता में जहां पुरुष यदि मेहनत बाहर करता है तो स्त्रियाँ हाथ बटाने के लिए घर में काम करती हैं बिना किसी शिकायत के
उस पितृ सत्ता में हम पली बढ़ी हैं जहां पिता के पास यदि धन आ जाता है तो वह सबसे पहले अपनी पत्नी और अपने बच्चों के विषय में सोचता है।
उसके कपड़े कितने भी पुराने हो जाएं लेकिन पत्नी और बच्चों को पहले दिलाता है। जहाँ माँ जब तक शॉपिंग के लिए झगड़ न लें तब तक पिता का मन ही मन खुशी से भोजन नहीं पचता है।
जहां पिता आर्थिक स्थिति से मजबूत होकर भी अक्सर अपने बच्चों को मना कर देता है ताकि उसके बच्चे उससे जिद करके उस वस्तु को मांगे जिससे उसे आत्मसुख प्राप्त हो।
उस पितृ सत्ता की है हम लोग जहां आर्थिक स्थिति ठीक होने पर पिता अपने बच्चों को किचन में नहीं भेजना चाहता तुरंत नौकर चाकर लगाने लगता है।
हम सब उस पितृ सत्ता की हैं जहां पिता खेत में तपती धूप में काम करके आता है तो माँ उसी कच्ची रसोई में फैले हुए धुएँ के कारण निकल रहे आसुंओं को पोंछते हुए रोटी बनाती है और कभी कभी थोड़ा लड़ झगड़कर कभी प्रेम से खाना खाती हैं और खिलाती है।
आपने पितृ सत्ता में करन अर्जुन फ़िल्म के सिर्फ अमरीश पुरी को देखा है , हमने तो बुलंदी का ” गजराज ठाकुर” देखा है तो हम आपकी असंतुष्टि के लिए अपने सुख को क्यों त्याग दें…?
मोहतरमा, जब मैं थोड़ी बड़ी हुई तो हर बात में पापा सलाह लेने लगे, पति बिना पूछे कुछ करता ही नहीं। कमाता खुद है लेकिन सारे पैसे मेरे हाथ में देता है, कहाँ खर्च करना है कहाँ नहीं सब कुछ मुझसे पूछता है..!
तो आपकी असंतुष्टि के लिए हम क्यों क्रांति करें भई, आप करो न , विकल्प आप तलाशो।
हम अपने पति से संतुष्ट हैं , आप असंतुष्ट हो तो आप अपना देखो..!
और ईश्वर ने हमें खलिहर रहने का भाग्य दिया है तभी हूँ ।
पुण्य भी कोई चीज़ होती है।

Related Articles

Leave a Comment