Home चलचित्र अनेक मूवी रिव्यु – क्या भारतीय होने की पहचान भाषा से होती है?

अनेक मूवी रिव्यु – क्या भारतीय होने की पहचान भाषा से होती है?

by Sharad Kumar
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हम धर्म के लिए लड़ रहे है हम जाती के लिए लड़ रहे है पर भारत में कई जगह ऐसी है जो सिर्फ भारतीय होने के हक़ के लिए लड़ रहे है आपको यह बात पता भी नहीं होगी

 

आयुष्मान खुराना अभिनीत अनेक एक बेहद ही उम्दा फिल्म है एक कलकार का अच्छा अभिनय ही फिल्म को जीवित कर देता है यह कहना गलत नहीं होगा आयुष्मान खुराना के अभिनय को देख कर अभिनव सिन्हा द्वारा निर्मित अनेक फिल्म एक सत्य घटना पर आधारित सस्पेंस थ्रिलर मूवी है। फिल्म में आयुष्मान खुराना एक अंडरकवर एजेंट की भूमिका में है जो की जोशुआ पूर्वोतर भारत के एक मिशन पर है । देश की सरकार पूर्वोत्तर के सबसे बड़े अलगाववादी समूह और उसके विद्रोही नेता, टाइगर सांगा के साथ शांति समझौता करना चाहती है। लेकिन इस दौरान दूसरे अन्य समूह एक्टिव हो जाते हैं |

 

जोशुआ का मिशन इन्हीं समूहों को शांत कराना है। अपने मिशन के दौरान, जोशुआ अलगाववादी समूह जॉनसन के सदस्य की बेटी, आइडो से मित्रता करके उस समूह में घुसपैठ करने की कोशिश करता है। जोशुआ और अपने पिता के असलियत से अंजान आइडो मुक्केबाजी में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतने का सपना देखती है। भले ही उसे हर कदम पर नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ता है, लेकिन देश को गौरवान्वित करके एक भारतीय के रूप में स्वीकार किए जाने की उम्मीद में, आइडो राष्ट्रीय टीम में एक स्थान बनाने के लिए लड़ना जारी रखती है। क्या जोशुआ पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा खत्म कर शांति समझौता करवा पाने में सफल हो पाएगा? क्या आइडो अपनी काबिलियत साबित कर देश के सामने एक उदाहरण पेश कर पाएगी? अनेक कई कठोर सवाल करती है।

 

इंडियन कैसे होता है आदमी कैसे डिसाइड होता है’ फिल्म ‘अनेक’ का यह डायलॉग अपने आप में बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है। ‘अनेक’ आपको मेन स्ट्रीम इंडिया और अलगाव की अंतर्धाराओं के साथ आमने-सामने लाता है जो पूर्वोत्तर के विभिन्न हिस्सों में मौजूद है। फिल्मकार के रूप में अनुभव सिन्हा एक अरसे से अनछुए विषयों पर फिल्में बुनते है, जिनका सामाजिक सरोकार तो होता ही है, मगर उसमें कोई न कोई ऐसा मुद्दा जरूर होता है

 

इस बार सिन्हा नॉर्थ ईस्ट के उन तमाम राज्यों की और हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं, जो सालों से अलगाववादी राजनीति से प्रभावित रहे हैं। फिल्म में अनुभव हमें यहां के लोगों के साथ होने वाले भेदभाव, सरकार का रवैया और अलगाववादी ताकतों के चित्रण के साथ उस दुनिया में ले जाते हैं, जिसके बारे में हमारी जानकारी सीमित है।

 

अपनी दूसरी फिल्मो आर्टिकल , थप्पड़ के जैसे अनेक एक अच्छी फिल्म है जिसमे अभिनव सिन्हा ने नार्थ इंडिया में रह रहे लोगो की ज़िन्दगी को बयान करने की अच्छी कोशिश की है एक बार फिर आयुष्मान खुराना का अभिनय बहुत ही सराहनीये है पर लोगो को क्या पसंद आ रहा है यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा पर एक बार यह फिल्म देखने में कोई बुराई नहीं है क्यूंकि यह फिल्म हम भारतीयों के मन में कई अनसुलझे सवाल छोड़ जाती है जिसका जवाब शायद ही किसी को पता होगा की क्या वाकई में हम शांति चाहते है अगर भारत के नक़्शे से हम राज्यों के नाम मिटा दे तो क्या कोई भारतीय बता सकता है की वो किस राज्य में रहता है या वो अपने राज्य को पहचान पायेगा शायद नहीं

 

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