बिहार में प्रत्येक साल लगभग एक करोड़ रुपए हर एक मुखिया को मिला अपने पंचायत में खर्च करने के लिए। पांच सालों में हुआ पांच करोड़। यदि पांच-पांच करोड़ रुपए प्रत्येक पंचायत में खर्च हो जाए फिर बिहार का कायाकल्प ना हो जाए।
मेरे एक परिचित ने बिहार में सभी पंचायतों के खर्च का पिछले पांच सालों का लेखा जोखा सूचना के अधिकार कानून से निकलवाया। सभी पंचायतों में जाकर देख पाना कठीन है कि कितना खर्च हुआ और कितना काम हुआ। लेकिन दुर्भाग्य की बात है – पूरे बिहार में कोई मुखिया अभी तक इस हैसियत में दिख नहीं रहा है जो कह सके कि जितना पैसा मिला। एक – एक पैसा मैने पंचायत के विकास पर खर्च किया है।
बिहार के गांवों से आने वाले मित्र बताएं कि क्या उनके गांव के मुखिया सामने आकर कह सकते हैं कि करा लो जांच जितना पैसा लिया है। एक-एक पैसा खर्च किया है। या आप ऐसे किसी भी मुखिया को जानते हैं जो सामने आकर कहे कि करा लो जांच।