Home चलचित्र अपनी कुर्सी की पेटी बाँध लीजिये मौसम बिगड़ने वाला है – बेशरम रंग विवाद

अपनी कुर्सी की पेटी बाँध लीजिये मौसम बिगड़ने वाला है – बेशरम रंग विवाद

Sharad Kumar Verma

by Praarabdh Desk
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कुछ दिन पहले रिलीज़ पठान फिल्म का गाना बेशरम रंग को लेकर काफी विवाद मचा हुआ है आजकल भारत का हाल एक मुहावरे के जैसा हो गया है वो मुहावरा है की घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने , देश कर्ज के तले दबा जा रहा है , जीडीपी लगातार घट रही है डॉलर आज 80 रुपये के पार हो चुका है पर यह बायकाट वाले अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे है , इनकी दशा आजकल छुईमुई की पौधे की जैसी हो गयी है जिसे जरा सा छू लो तो वो मुरझा जाता है इनको कोई फर्क नहीं पड़ता की उस फिल्म में कितनी लागत लगी है या किसने कितनी मेहनत की है बस इनको तो हर फिल्म में ऊँगली करने की आदत हो गयी है दरअसल ये गाने में बेशरम रंग लफ्ज़ से नहीं चिड़े है बल्कि इनको इस बात से प्रॉब्लम है की इस फिल्म में खान है जी हां शाहरुख खान अब इनको कोई मुद्दा नहीं मिलता तो यह आ जाते है है संस्कृति तहजीब की बातो को लेकर अगर व्यक्तिगत बात कहे तो इनमें से किसी भी पर्सन का इनकम ऑफ सोर्स रोक दिया जाए तो इनके मुँह से बायकाट नहीं पैसा दो पैसा दो निकलने लगेगा हर बात की अति अच्छी नहीं पहले लाल सिंह चड्ढा , फिर बह्रमास्त्र , फिर आदिपुरुष फिर पठान मतलब अब बॉलीवुड में कोई भी मुस्लिम एक्टर काम नहीं करेगा अगर करेगा तो फिल्म को जातिवाद , धर्म या किसी और मामले से जोड़कर देखा जायेगा यह सब तब कहाँ होते है जब देश में किसी बहु , बेटी की इज्जत लूटी जाती है या उसके टुकड़े किये जाते है , बड़ी ही गिरी हुई मानसिकता के शिकार है ये बायकाट वाले

अब देश में फिल्म बस देश की पार्टी के हिसाब से बनेगी नहीं तो बायकाट कर दिया जायेगा कोई मुस्लिम अभिनेता अभिनय नहीं करेगा न कोई ऐसा अभिनेता अभिनय करेगा जो नॉनवेज खाता होगा अब यह लोग किसी भी अभिनेता का अभिनय उसके खाने पीने से और जाती से जज करेंगे अच्छा यह जो बायकाट वाले है इनको रील्स से कोई फर्क नहीं पड़ता इनको अगर एक डायलॉग बोलने को कहे दे कैमरे के सामने तो उनकी गा** फट जाएगी पर नेट पर गंध मचाने से बाज नहीं आएंगे क्या ये वही भारत है जिसे हम आज़ाद कहते थे

आपने उर्फी जावेद का नाम तो सुना होगा इस मोहतरमा को कौन नहीं जानता होगा ये मोहतरमा पब्लिक में नग्न अवस्था में रहती है इनको फैशन के नाम पर कभी बोरी कभी तार कभी सब्जिया तो पहनते देखा होगा तब ये बायकाट वाले उर्फी जावेद पर ऊँगली क्यों नहीं उठाते क्या ये लड़की समाज में सही सन्देश देती है तो अभिनेत्री दीपिका पादुकोड़ पर जोक्स मेमस और आपत्तिजनक बातें क्यों की जा रही है अब भगवा कलर से कुछ लोगो को बड़ी दिक्कत है की फिल्म में अभिनेत्री ने भगवा रंग के कपडे पहने है तो उससे भगवा रंग का अपमान हो गया फिर उन साधु महात्माओ को और बायकाट करने वालो को और उन सभी लोगो को सिर्फ ये बात बतानी होगी की क्या भगवा रंग किसी के बाप की जागीर है क्या और भगवा रंग ही क्यों अभिनेत्री ने तो कई और भी तरह के कपडे पहने है जिनके अलग अलग रंग है उनसे कोई प्रॉब्लम क्यों नहीं है यह टुच्ची मानसिकता सुधार लो साधुगणो और बायकाट के भंगियों और अगर सही में देश हित की बात करते हो तो उन बातो का बहिष्कार करो जिनसे देश विकास हो सकेगा न की जातिवाद के मुद्दे को लेकर बाते करो

चलो आज बताते है इस बात से परेशान होकर महानायक अमिताभ बच्चन ने क्या कहा ये वही महानायक है जिन्होंने साल 2013 से किसी भी ऐसे मुद्दे में नहीं बोला जो सामाजिक चीजों से जुड़ा है पर शायद उनको भी लगा की अब ज्यादा चुप रहना ठीक नहीं –


मुझे यकीन है की मंच पर मेरे सहयोगी इस बात से सहमत होंगे की अब नागरिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सवाल उढ़ाये जा रहे है शुरूआती समय से लेकर अब तक के कंटेंट में काफी बदलाव आया है अब कई अलग तरह के सब्जेक्ट है पौराणिक फिल्मो से लेकर आर्ट हाउस एंग्री यंगमैन और काल्पनिक अंधराष्ट्रवाद और मोरल पुलसिंग में डूबे ऐतिहासिक और वर्तमान ब्रांड जैसे कई सब्जेक्ट है इन सब विषय पर दर्शक सिंगल स्क्रीन और के माध्यम से राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर विचार रखते रहते है

शाहरुख खान गुरुवार को कोलकाता इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में शामिल हुए। फिल्म फेस्टिवल में शाहरुख खान ने सोशल मीडिया पर भी अपनी राय रखी और इशारों-इशारों में पठान पर जारी विवाद पर भी निशाना साधा। फेस्टिवल में हजारों फैन्स के बीच शाहरुख ने पठान का प्रमोशन भी किया।

शाहरुख खान के स्टेज पर पहुंचते ही पूरा स्टेडियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। शाहरुख ने अपने स्पीच की शुरूआत बंगाली में की, जिसने दर्शकों में और जोश भर दिया। सोशल मीडिया पर बात रखते हुए शाहरुख खान ने कहा कि आज के वक्त में सोशल मीडिया द्वारा एक कलेक्टिव नरेटिव दिया जाता है। उन्होंने कहा कि मैंने कहीं पढ़ा था कि निगेटिविटी सोशल मीडिया के यूज को बढ़ाती है। साथ ही इससे कमर्शियल वैल्यू भी बढ़ती है। लेकिन इस तरह की कहानियां हमें भटकाने और बांटने का काम करती हैं। सिनेमा इंसान के बर्ताव को दिखाता है, जिससे भाईचारा और सहानुभूति आती है।

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