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पंचतंत्र, हम हिन्दू, एक झूठा Deja vu – देजा वू – पूर्वानुभव की भावना और हमारा लंबा और बड़ा नुकसान।

सब से पहले एक प्रश्न – क्या आप ने पूरे पंचतंत्र को वाकई संस्कृत में या एक पूरे सत्यनिष्ठ अनुवाद के साथ पढ़ा है ? अगर आप ने उसे बचपन में प्यारे प्यारे दिखते पशुओं के चित्रों के साथ पढ़ा होगा तो मेरे प्रश्न का उत्तर है – नहीं, आप ने नहीं पढ़ा।
असल में, पंचतंत्र को ऐसी बच्चों की प्यारी प्यारी कहानियाँ बनाना, मैं वामपंथियों की एक बड़ी जीत मानता हूँ। समझिए कैसे। यहाँ Déjà vu – देजा वू आता है। इस शब्द का शब्दश: अर्थ है – वह विचित्र अनुभूति कि जो घटना घट रही है उसका अनुभव पहले भी हो चुका है – यहाँ इसे यूं समझिए कि आप को लगता है कि ये कहानियाँ तो हम बचपन में पढ़ चुके हैं, इन्हें युवावस्था या उसके बाद भी पढ़ना हमें दूसरों की नजर में गिरा देगा कि ये व्यक्ति तो अभीतक बच्चा ही है, बड़ा नहीं हुआ। क्योंकि आप जो भी संस्करण पाएंगे, सब में पशु पक्षियों के प्यारे प्यारे चित्र ही मिलेंगे। सिंह भले ही क्रूर और हिंसक होगा, चित्र में प्यारा प्यारा दिखाया जाएगा गोल गोल रेखाओं से। बच्चों के लिए चित्र बनाने की यह विशेष तकनीक है, जिससे बच्चे उसे अपना मानते हैं ऐसी मान्यता है। क्योंकि बच्चे भी उस तरह से चित्र बना सकते हैं, सिंह का वास्तविक चित्र बनाना एक बच्चे के लिए आसान नहीं।
हो न हो, ऐसे चित्रों को बच्चों के लिए ही योग्य माना जाता है और बड़े होते ही युवा ऐसे चित्रों को बचपन की निशानी मानते हैं और खुद की गिनती बच्चों में करवाना नहीं चाहते। बच्चों को बचपन से ही बड़े होने की चाहत होती है, वो बात अलग है कि बुढ़ापे में बचपन को याद करते रहते हैं।
सारांश यह है कि जो भी बचपन के साथ जुड़ा है उसे बचकाना माना जाता है और यह भी माना जाता है कि यह तो हम बचपन में पढ़ चुके; लेकिन अब हम बड़े हो गए हैं। अब हमें कुछ और पढ़ना चाहिए।
शायद इसीलिए आप को पंचतंत्र पर जो भी गंभीरता से किया गया काम है वो इंग्लिश या अन्य भाषाओं में मिलेगा। संस्कृत को वे पढ़ते हैं, हमारे लिए संस्कृत हमारी भाषा न रहकर महज एक scoring सब्जेक्ट बन गई है SSC में मार्क बढ़ाने के लिए। मानों वो रॉकेट का बूस्टर इंजिन है जिसे ऊंचाई गाँठने पर त्याग दिया जाता है, उसके बाद उसका कोई काम नहीं, वह महज एक भार है। जब शिक्षक ही संस्कृत को इस अंदाज में सिखाए तो शायद ही कोई विद्यार्थी इससे रुचि और प्रेम रखेगा।
वैसे बता दूँ कि मेरी डिग्री साइंस की है, आर्ट्स की भी नहीं है; और संस्कृत में कोई पदवी मेरे पास नहीं है। है तो केवल प्रेम, जो माँ सरस्वती का आशीर्वाद है। अस्तु, मूल विषय पर आते हैं जो है पंचतंत्र।
पंचतंत्र का सही सत्यनिष्ठ अनुवाद अगर आप पढ़ेंगे तो पाएंगे कि ये कहानियाँ बच्चों के लिए हैं ही नहीं। कई कहानियाँ तो बच्चोंवाली versions में नहीं मिलेंगी क्योंकि वो बच्चों को समझाई नहीं जा सकती, उम्र थोड़ी बड़ी चाहिए, समझ थोड़ी विकसित चाहिए।
लेकिन जब आप बड़े होंगे तो आप को यह सब कभी पता था ही नहीं तो आप खोजकर पूरा पंचतंत्र पढ़ने से रहे। हो सकता है आप का हाथ इंग्लिश में तंग हो तो इंग्लिश में इसपर जो सीरीअस काम किया गया है उससे आप अपरिचित रहेंगे। आप को मिलेंगे तो सभी प्यारे प्यारे दिखते पशु पक्षियों के चित्रोंवाले बच्चों के लिए संस्करण और उन्हें तो आप पढ़ चुके हैं। लेकिन यही कारण है, एक झूठा पूर्वानुभव का आभास कि आप सम्पूर्ण पंचतंत्र खोजकर पढ़ेंगे ही नहीं।
इससे भी बुरी बात – कोई उससे दृष्टांत दे तो आप उसका मज़ाक भी उड़ाएंगे कि यार तेरा बचपन अभी भी खत्म नहीं हुआ क्या, कब तक बच्चा रहेगा, बड़े भी हो जाओ !
पंडित ज्वालाप्रसाद मिश्र का किया हुआ अनुवाद (1910) आप को इस लिंक पर मिल जाएगा। स्कैन है, आउट ऑफ प्रिन्ट एडीशन है। हिन्दी भी उस जमाने की है और फॉन्ट भी। 44 एमबी की फ़ाइल है और डेस्कटॉप या लैपटॉप पर ही पढ़ने योग्य है, मोबाइलपर पढ़ने का प्रयास भी न करें।
वैसे भी, बच्चों का काम तो है नहीं।
आप को शुभेच्छा। जयतु भारत।

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