योग की बात की जाए तो आध्यात्मिक या धार्मिक या योग या प्राकृतिक-चिकित्सा इत्यादि के नाम पर हजारों/लाखों की संख्या में संस्थाएं/संस्थान/व्यापार/दुकानें चल रही हैं या चलाई जा रही हैं। इनमें योग के नाम पर मुख्यतः दो तत्व होते हैं — सांस को अंदर-बाहर खींचना तथा शारीरिक आसन। शारीरिक आसन हो या सांस का अंदर-बाहर खींचना, सभी सामान्य शारीरिक व्यायाम हैं, लेकिन इनको जादुई, दैवीय-ईश्वरीय, महानता, विशिष्ट-अद्वितीयता व दिव्यता के रूप में प्रायोजित व प्रतिष्ठित किया गया है। लोग अपने नाम के आगे योगी इत्यादि लगाकर लोगों के सामने खुद को विशिष्ट, दिव्य, महान, विशेषज्ञ इत्यादि के रूप में प्रतिष्ठित करने का दंभ भी करते हैं।
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यदि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण व ऑब्जेक्टिविटी के द्वारा योग को देखना शुरू करें तो हम बहुत मिथकों भ्रांतियों से बाहर आ सकते हैं। सांस व शारीरिक आसनों इत्यादि का बेहतर लाभ उठा सकते हैं। आगे की बात इसी संदर्भ में है।
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मस्तिष्क की मांसपेशियों व कोशिकाओं को भी व्यायाम की जरूरत होती है। योगासन से शरीर के विभिन्न मांसपेशियों व हड्डियों इत्यादि का प्रचलन होता है, प्रचलन के लिए मस्तिष्क की कोशिकाओं इत्यादि को काम करना पड़ता है, यही उनका व्यायाम है। इसलिए शारीरिक आसन करने के बाद अच्छा महसूस होता है, ताजगी महसूस होती है, तरोताजा लगता है।
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चूंकि योगासन करते हुए हृदय-गति की तीव्रता नहीं बढ़ती है, इसलिए इसको लंबे समय तक करते रह पाने के लिए सरलता से अभ्यस्त हुआ जा सकता है। शारीरिक आसन मांसपेशियों व हड्डियों की स्ट्रेचिंग है। आप चाहें तो योगासन द्वारा स्ट्रेचिंग कर लें या किसी और पद्धति से, बात एक ही है, लाभ वही होते हैं।
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योगासन में शारीरिक व सांस के व्यायाम किए जाते हैं, वे तीव्रता लिए हुए नहीं होते हैं, बहुत कम कैलोरी खर्च होती है। हृदय-गति नहीं बढ़ती है, इसलिए लंबे समय तक किए जा सकते हैं। चूंकि हृदय-गति नहीं बढ़ती है इसलिए कई विशिष्ट-हारमोनों का एक्टिवेशन नहीं हो पाता है, इन हारमोनों के लाभ से वंचित रह जाते हैं।
योगासन करते हुए चूंकि हृदय-गति इस सीमा तक नहीं पहुंचती है कि सांस को धौकनी की तरह चलना पड़े, मतलब शरीर को ऊर्जा के लिए चर्बी की बजाय सुगर का प्रयोग करना पड़े, प्रोटीन को तोड़कर सुगर में परिवर्तित करके प्रयोग करना पड़े। योगासन में चूंकि शरीर को ऊर्जा के लिए सुगर का प्रयोग नहीं करना पड़ता है, तो इंसुलिन ट्रिगर नहीं होता है। यदि आप किशोरावस्था या इससे भी पहले से योगासन करते आ रहे हैं तो आपके शरीर में इंसुलिन-रेसिस्टेंस, प्रि-डायबिटीज, डायबिटीज इत्यादि की स्थितियां बनने की संभावनाएं लगभग शून्य रहती हैं यदि खानपान फूहड़ नहीं है। यही लाभ नियमित स्ट्रेचिंग करने से भी होता है।
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योगासन करते हुए चूंकि कैलोरी बहुत कम खर्च होती है। इसलिए यदि आपने मोटापा पाने के बाद, डायबिटीज पाने के बाद, इंसुलिन-रेसिस्टेंस पाने के बाद आसनों को शुरू किया है और यदि उपवास नहीं करते हैं, डायटिंग नहीं करते हैं, फल सब्जी अनाज खाते हुए उनमें कितनी कैलोरी है कितनी सुगर है इत्यादि का विशेष ध्यान नहीं रखते हैं, तो आप योगासन कितना भी करते रहिए, कितना भी सांस अंदर-बाहर खींचते रहिए, आपके मोटापे डाय़बिटीज इंसुलिन-रेसिस्टेंस इत्यादि जैसी स्थितियों पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा। यदि आप उपवास नहीं करते हैं, डाय़टिंग नहीं करते हैं, कल्प नहीं करते हैं तो केवल, योग कहे जाने वाले शारीरिक आसनों को सालों तक करते रहने के बावजूद भी शायद ही आपको अपने वजन पर अंतर दिखाई पड़े
लोग 10-10 साल, 15-15 साल, 20-20 साल से योगासन कर रहे होते हैं, लेकिन इंसुलिन-रेसिस्टेंस डायबिटीज इत्यादि से ग्रस्त रहते हैं। लेकिन बताते नहीं अघाते हैं कि चार गोलियां खाते थे अब तीन या दो गोलियां खाते हैं, जबकि कैलोरी की गणना करके भोजन ले रहे होते हैं, आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान के ऊपर निर्भर होते हैं।
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यदि ये लोग योग को दैवीय विशिष्ट सिद्धि व जादुई इत्यादि महिमामंडित करने की बजाय वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ शारीरिक आसनों को एक सहयोगी तत्व के रूप में प्रयोग करें तो कुछ सालों में ही डायबिटीज जैसी व्याधियों से मुक्ति पा सकते हैं, वह भी बिना कैलोरी की गणना किए सामान्य खानपान करते हुए।
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कैलोरी व सुगर की गणना करते हुए खानपान करते रहने से तो कोई भी चार गोलियों से तीन या दो गोलियों में आ सकता है, लेकिन जब भी बिना गणना के खानपान शुरू करेंगे तब शरीर कुछ समय बाद पुनः अपनी पुरानी कंडीशनिंग पर वापस पहुंचने लगेगा।
योग के संदर्भ में मिथकों, भ्रांतियों व प्रोपागंडाओं इत्यादि से बाहर निकलने की जरूरत है। जैसे आयुर्वेद दुनिया के अनेक समाजों के पास रहा है, वैसे ही योग भी दुनिया के अनेक समाजों के पास रहा है। हमने नाम रख दिए, दूसरे अनेक समाजों ने नाम नहीं दिया केवल जीवनचर्या में समाहित कर लिया। योग हो आयुर्वेद इसको समाज की विशिष्टता, दैवीयता, महानता, अद्वितीयता से जोड़ने की कुंठा में रहने की जरूरत नहीं है। इसको समाज का सहज ज्ञान मानकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ सदुपयोग करने की जरूरत है ताकि समाज के लोग मानसिक शारीरिक स्वस्थ रह पाने की ओर बढ़ सकें।
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रोज योगासन करने वाले एक से बढ़कर एक धूर्त, भ्रष्ट, हिंसक व नीच लोगों से मिला हूं। रोज योगासन करेंगे लेकिन संपत्तियों के प्रति भयंकर लोभ रखेंगे, अत्यधिक स्वार्थी होंगे, दूसरे धर्म व जाति के लोगों के प्रति नफरत रखेंगे। योग को जादुई दैवीय ईश्वरीय विशिष्ट अद्वितीय माने बिना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हुए शरीर को समझते हुए विभिन्न प्रयोग कीजिए, योगासन का भी प्रयोग कीजिए। अपने शरीर के स्वास्थ्य व व्यवस्था को बेहतर कर पाइएगा।
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