एक कष्ट बना हुआ है। अधिकतर लोग जो सनातन धर्म के स्वयंघोषित पुरोधा है, समाचारो को मूल स्रोत से नहीं पढ़ना या देखना चाहते है।
उन लोगो से अधिक शिकायत है जो किसी वित्तीय संस्थान, सरकार, या देश-विदेश के कॉरपोरेट हाउस में कार्य कर रहे है; लेखक के रूप में प्रसिद्ध है; प्रोफेशनल (डॉक्टर-इंजीनियर) है; जिनसे आशा की जाती है कि वे रिसर्च करके कुछ लिखेंगे; समाचारो या वीडियो क्लिप में अनलिखे या अनदेखे (एडिटेड) भाग को पढ़ने-देखने का प्रयास करेंगे।
उदाहरण के लिए, संविधान की प्रति उपलब्ध है। संसद की कार्यवाई का लिखित रिकॉर्ड उपलब्ध है। प्रधानमंत्री के भाषण उपलब्ध है। देशतोड़क शक्तियों का कहा भी सार्वजानिक है। किसी भी अधिकृत आंकड़ों के लिए संसद के प्रश्नोत्तर, RBI, PIB, SBI के वेब पेज पर जानकारी है। यह सभी स्रोत राष्ट्र के है; किसी विदेशी स्रोत की बात नहीं कर रहा हूँ।
अगर विदेशी अधिकृत स्रोत पर जाना है – जैसे कि विश्व में इन्फ्लेशन, भुखमरी, व्यापर, मुद्रा विनिमय दर, सामूहिक विचारधारा-आधारित आतंकी हमलो में मरने वालो एवं क्षेत्र के आंकड़े उपलब्ध है।
लेकिन फिर भी आपको अफवाहे फैलाना है; अपने ही नेतृत्व पर व्यर्थ का प्रश्नचिन्ह उठाना है, उन लोगो को बल देना है जो चाहते है कि आप – जो राष्टवादी है – प्रधानमंत्री मोदी से विमुख हो जाए। ऐसे प्रश्न उठाना जो संविधान में है ही नहीं या जिनकी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट ने बदल दी है।
कारण यह है कि प्रधानमंत्री मोदी भारत की प्रगति; सनातन संस्कृति के पुनर्जागरण एवं पुनुरुत्थान का संघर्ष के लिए सतत प्रयास कर रहे है।
विपक्ष एवं अर्बन नक्सल भी यह प्रयास कर सकता है; मोदी जी का एजेंडा उनसे छीन सकता है। लेकिन वे वोटबैंक के चक्कर में उलझ चुके है। द्वितीय, उनमे से कुछ समूह मूलतया सनातन संस्कृति से विद्वेष रखते है; भारत की एकता-अखंडता को हानि पहुचाना चाहते है। भारत की निर्धनता, दरिद्रता एवं दुर्बलता में ही उनका एजेंडा फल-फूल सकता है।
अतः कभी आयुष मंत्रालय द्वारा मांसाहारी भोजन का प्रचार करना; कभी झारखण्ड में लिंचिंग के बारे में प्रधानमंत्री जी के मुंह में उस बयान को डालना जो कभी कहा ही नहीं; कभी भाग्यनगर में तृप्तिकरण को लेकर अफवाहे फैलाना, कभी यह लिखना कि दंगे बढ़ते जा रहे है।
कभी भी यह समझने का प्रयास नहीं करना कि कमलेश तिवारी की हत्या कैसे हो गयी; उसमे तिवारी जी की स्वयं की लापरवाही एवं लालसा का क्या रोल था?
लेकिन सत्य यह है कि मोदी सरकार के आने के बाद भारत में दंगो एवं आमजन के विरूद्ध हिंसा में भारी कमी आयी है। कश्मीर घाटी लगभग शांत हो चुकी है।
यह भी सत्य है कि कुछ दंगे उन राज्यों में हो रहे है जो गैर-भाजपा द्वारा शासित है।
यह भी सत्य है कि एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र में एकाध दंगे; नृशंस हत्या; या सार्वजानिक संपत्ति को नुकसान; बाँध एवं रेलवे लाइन की तोड़-फोड़ की जा सकती है चाहे आप किसी को भी सत्ता पर बैठा दे।
यह एक कटु सत्य है जिससे विकसित राष्ट्र भी त्रस्त है। यहाँ तक कि वे राष्ट्र भी जहाँ के शासक राजकीय हिंसा के द्वारा समूह की हिंसा पर कण्ट्रोल करना चाहते थे। उदाहरण के लिए, इथियोपिया, फिलीपीन्स या मेक्सिको, या फिर अमेरिका को ही देख लीजिए।
भारत में भी हिंसा भड़काने के लिए अभिजात वर्ग अलगाववादी तत्वों, कट्टरपंथियों, नक्सलियों, घुसपैठियों और अपराधियों का उपयोग कर रहा है।
लाख बात की एक बात: विश्वास की कोई काट नहीं है। इसी विश्वास के कारण रामपुर एवं आजमगढ़ से भी भाजपा जीत गयी है।
यही विश्वास देशतोड़क शक्तियों को हताश कर देगा कि चाहे वे कुछ भी कर ले, आपका विश्वास अडिग है।