हिंदी में एक कहावत है – करत करत अभ्यास के जड़ मति होहि सुजान. AI अर्थात् आर्टिफ़िशल इंटेलिजेंस वाले सिस्टम का बेस यही होता है.
सामान्य कम्प्यूटर सिस्टम में आप जितनी उसे अक़्ल दे देते हैं वह वैसे ही ज़िंदगी भर चलता रहता है. जैसे रोडवेज़ का टिकट बनाने वाला सिस्टम. साल दर साल सेम टिकट बनाता रहेगा. अगर रेट में वृद्धि होनी है तो सिस्टम में चेंज करना होगा.
पर जो AI बेस्ड सिस्टम होते हैं वह छोटे बच्चे की तरह होते हैं. बेसिक अक़्ल उन्हें उनको बनाने वाले दे देते हैं, शेष वह समय के साथ साथ अनुभव से सीखते रहते हैं और स्वयं सुधार करते रहते हैं.
गूगल ने संस्कृत ट्रांसलेटर बनाया है. कई मित्र उसमें क्लिष्ट वाक्य देकर उसके ट्रैन्स्लेशन की आलोचना कर रहे हैं. हक़ीक़त यह है कि यह AI बेस्ड सिस्टम हैं, बेसिक सिखा दिया गया है, देखिएगा दो वर्षों में बहुत शानदार ट्रैन्स्लेशन करने लग जाएगा. जब हिंदी ट्रैन्स्लेटर आया था तब भी ऐसा ही केस था. अब इतना पर्फ़ेक्ट ट्रैन्स्लेशन होता है पूँछिए मत. अभी भी बीच बीच में इक्का दुक्का गड़बड़ हो जाती है. पर वैसे ही जैसे कोई मनुष्य करता है, गलती हुई सुधार लेता है, अगली बार नहीं करेगा.
गूगल का लाख लाख धन्यवाद कि उसने हमारी भाषा को सहज बनाया. अगर गूगल न होता तो संस्कृत छोड़िए हम हिंदी भी रोमन लिपि में ही टाइप कर रहे होते. अन्यथा पूरे भारत वर्ष में हर भाषा के अपने सरकारी विभाग हैं, NIC है, सरकारों का खरबों का IT का बजट है, लेकिन आज तक एक सर्वमान्य भाषाई टूल न बन पाया जिसे सर्व जनता इश्तेमाल करती हो.
हमें गूगल की हंसी उड़ाने के बजाय दण्डवत प्रणाम करना चाहिए कि एक सात समंदर पार कम्पनी ने हमारी भाषाई संस्कृति को पुनर्जीवित कर दिया.