मुझे लगता है, आज गनही महतमा जिंदा होते तो उनका मन, तन और कर्म नीतीश चा जैसा ही होता। वह भी माओवादियों सॉरी मालेवालों, गुंडों और मवालियों को माफ कर अपने सपनों का देश बनाते।
बिहार के बारे में मैंने कई बार कहा है कि वहां सभ्यता खत्म हो चुकी है। एक कारपेट बॉम्बिंग के अलावा कोई चारा नहीं है।
नीतीश कुमार अपने ही 2005 के रूप के इतने भद्दे, कुरूप और डरावने कैरिकेचर हो चुके हैं कि अब उनको देखकर घिन भी नहीं आती, दया आती है, जैसे किसी कुष्ठ-रोगी को देखकर।
इतनी बार थूका-चाटा-फिर थूका का उदाहरण तो असंभव है, मिलना इतिहास में..।
बाकी, बिहार तो अभिशप्त है ही। हो सकता है कि 5-10 साल में जब पूरी तरह सत्यानाश हो जाए (वैसे अब एकाध परसेंट छोड़कर और कुछ भी बचा नहीं है), तो कोई नयी कोंपल फूटे..।
इसी उम्मीद के साथ…
टाटा…बाय-बाय….खतम….।