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भारत में इतिहास का पुनर्लेखन एक दुःसाध्य कार्य है और ऐसा वामपंथियों के कारण नहीं खुद तथाकथित हिंदुत्ववादियों के कारण है क्योंकि हर किसी को अपनी पसंद का इतिहास चाहिए।
अगर हर किसी को इतिहास में पसंद न आने वाली बातें इसी तरह गप्प कहकर हटाने का मौका मिल जाये तो आखिर में कोरे पन्ने ही बचेंगे।
कोई ब्रह्मा सरस्वती प्रकरण को गप्प मानता है।
कोई मांस और गोमांसभक्षण को गप्प मानता है।
कोई यम-यमी सूक्त को गप मानता है।
कोई श्वेतकेतु की कथा को गप्प मानता है।
कोई ब्रह्मा-सरस्वती प्रकरण को गप्प मानता है।
कोई राम को गप्प मानता है।
कोई सीता त्याग को गप्प मानता है।
कोई द्रौपदी के पांच विवाह को गप्प मानता है।
कोई बुद्ध के विष्णु अवतार को गप्प मानता है।
कोई राजपूतों के उदय को गप्प मानता है।
कोई सारे पुराणों को ही गप्प मानता है।
पहले सब बैठकर तय क्यों न कर लें कि क्या क्या गप्प है?
लेकिन एक पल के लिए ये सोचिये कि ऐसा क्यों है?
ये कथाएं हिंदू धर्म में ही क्यों हैं?
इसका मूल कारण है कि दुनियाँ के सारे धर्म मजहब अभी सिर्फ दो हजार साल के अंदर आये हैं जबकि हिंदू धर्म सभ्यता की शुरूआत से ही #विकसित हुआ जब मिस्र में , मेसोपोटामिया और चीन में सभ्यतागत विकास शुरू हुए थे।
आर्य ऋषियों में ऐसी कोई यौन कुंठा और हीन भावना नहीं थी और न ही वे बदलते सामाजिक व धार्मिक मान्यताओं के प्रति उदासीन थे। इसलिए उन्होंने अतीत की घटनाओं को अलग से पुराणों में बांधा।
हजारों साल की समय यात्रा व नित नए एडिशन के कारण चमत्कार, जातिव्यवस्था के पोषण वाली स्वरचित कहानियां भी डाली गईं।
मजे की बात यह है कि जन्मनाजातिव्यवस्था जो बच्चा भी बता दे कि यह प्रक्षिप्त है उसे कालातीत मानते हैं बस इतिहास पर पिले पड़े रहते हैं।
ये झूठ, ये गप्प, ये कृति, वो लिङ्ग, ये फलाना वो ढिमका…..
ये हिंदुओं का आदिकालीन इतिहास है जो पुराणों में संकलित किया गया। इसे पढ़ने और पचाने के लिए घनघोर निरपेक्ष अध्ययन, लोहे का जिगर और वज्र की सी हिंदुत्वनिष्ठा होनी चाहिए।
इतिहास फूलों व कांटों सहित गुलाब का पूरा पौधा है। न केवल काँटे सत्य हैं और न केवल फूल, सत्य तो जड़, तना, पत्ती, कांटे व फूल सहित पूरा पौधा है।
इतिहास की बात न करो, पौराणिक इतिहास की तो बिल्कुल नहीं।
तुमसे हो न पायेगा!
चलते-चलते: कहते हैं सिखों के खालिस्तानी ग्रुप ने गुरुग्रंथ साहिब में काट छांट करते हुए राम कृष्ण को हटाना चाहा, खाली पन्ने रह गये।
आप भी वही कर रहे हो।

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