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ऑक्सिजन मनुष्य को ज़िंदगी देती है

by Nitin Tripathi
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ऑक्सिजन मनुष्य को ज़िंदगी देती है. ज़िंदा रहने के लिए सबसे ज़रूरी है ऑक्सिजन में साँस लेना. पर हर मनुष्य की मौत भी ऑक्सिजन से ही होती है॥ शरीर में जाने वाली एक्स्ट्रा ऑक्सिजन से आक्सिड़ाइज़ेशन प्रक्रिया में शरीर की कोशिकाओं में धीमे धीमे एक तरह का जंग लगता रहता है और इसी वजह से इंसान बूढ़ा होकर मर जाता है. आयुर्वेद / योगा इसी प्राण वायु को ठीक से लेना सिखाते हैं जिससे शरीर की आयु बढ़ती है.हर चीज़ की अति बुरी होती है.
कल अमेरिका में टेकसास में एक अठारह साल का लड़का बंदूक़ लेकर निकला अपनी दादी को मारने, एक प्राइमरी स्कूल में घुस उनीस छोटे बच्चों को गोली मार दी और फ़िर दादी को गोली मारी.
अमेरिका में ऐसे क़िस्से बहुत कॉमन हैं. भारत में रहते हमें लगता है कि वह बंदूक़ पर बैन क्यों नहीं लगाते? अमेरिका में मेरे दोस्त रहते हैं उनके पास इतनी बंदूक़ें है स्टेन गन आदि तो कुछ भी नहीं देखने में लगता है मिशायल लाँचर तक रखे हुवे हैं. सब रखना क़ानूनी है. अमेरिकन अपनी धरती को land of brave बोलते हैं, वीरों की धरती. तो ज़ाहिर सी बात है वीर हैं तो शस्त्र होने ही चाहिए. चुनाव में बड़ा मुद्दा होता है, बड़ी जनसंख्या समर्थन में है कि अमेरिका वीरों की धरती में बंदूक़ रखना जन्म सिद्ध अधिकार है तो इस लिए बंदूक़ पर लाइसेंसिंग तक नहीं है. सेमी औटोमटिक गन ख़रीदना दारू ख़रीदने से ज़्यादा आसान है.
दूसरा यह कि यह देश एक्स्ट्रीम में है ऑटमेशन के. इधर यदि आप न चाहें तो महीनों बीत जाएँगे आपको किसी और से बात नहीं करनी. अमेरिका की उत्पत्ति पर्सनल फ़्रीडम के सिद्धांत पर हुई. मूल अधिकार है कि कोई किसी को डिस्टरब न करे. अच्छी बात है. पर किसी का दिमाग़ ख़राब है तब भी उसके माता पिता समाज न चेता. इधर बीबी से झगड़ा हो जाए पड़ोसी समझाने आ जाता है. पान की दुकान वाला समझाने लगता है बाबू जी झगड़े होते रहते हैं. क्रोध में आ सब छोड़ भागने लगिए तो अनजान रिक्शे वाला भी पूँछ लेता है साहब लगता है घर में झगड़ा हुआ है. आप झुंझला कर थक हार कर वापस सही करने को मजबूर होते हैं. अमेरिका में पर्सनल फ़्रीडम इतनी कि अठारह साल के इस कातिल का दिमाग़ इतने समय से ख़राब था पर किसी ने टोंका नहीं. जोकर से प्रभावित था तो वह अपनी गर्दन तक काट लेता, भारत होता तो परपंच में पूरा शहर पहले से जान रहा होता कि पागल है – इंसेंसिटिव है यह कहना, पर बहुत मॉडर्न सॉसाययटी हो गई तो वहाँ की यह समस्या कि कोई टोंकता ही नहीं.
मुझे व्यक्तिगत सदैव यह लगता है कि भारतीय समाज सत्तर प्रतिशत अमेरिका जैसा बन जाए या अमेरिका तीस प्रतिशत भारतीय समाज जैसा हो जाए तो यह पर्फ़ेक्ट होगा.
पर पुनः मनुष्य का स्वभाव है वह जिस एक दिशा में जाता है उस दिशा में तब तक चलता रहता है जब तक सब सत्यानाश नहीं कर देता.

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