जन्नतनशीन श्री राजीव गांधी जब आत्मघाती हमलावर के साथ बम धमाके में पुरजे-पुरजे हुए थे, तो मेरी अवस्था 12 वर्षों की थी। हमारे घर के सामने वाले भैया रात के 10.30 बजे कान में रेडियो लगाए हुए आए और घोषणा की- राजीव गांधी नइ रहला चचा, बम मारि देलकै….।
अगले दिन जब अखबार आए तो सारी कहानी थी। उन कहानियों में बस एक स्मृति, एक फोटो दिमाग में चिपकी रह गयी। राजीव (उनके टुकड़े) औंधे पड़े हुए हैं और एक क्षत-विक्षत पैर जूतों सहित दिख रहा है। वो lotto के जूते थे। वह साल 1991 था। भारत दीवालिया होने की कगार पर था। बीच चुनाव चल रहा था और अभी तक नरसिम्हराव भारत के दुर्भाग्य को पोंछने नहीं आए थे।
उस समय नेपाल हमारे यहां से बहुत लोग जाते थे। हमारे यहां बोले तो दरभंगा। शायद मिनर्वा था, उस जगह का नाम, जहां से लोग इलेक्ट्रॉनिक आयटम लाते थे। मैंने याशिका का एक कैमरा मंगवाया था-1100 रुपए में। वह भी छह महीने बाद आया था, क्योंकि पहली ट्रिप में भैया (जो लानेवाले थे) उस रुपए को घप कर गए थे।
उस वक्त LPG (यानी लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन) दूर की कौड़ी थी। कॉमरेड्स का कोक को गरियाते हुए पेप्सी-कोला पीना अभी भविष्य में था। उस वक्त राजीव जी लोटो का जूता पहनकर चुनाव-प्रचार कर रहे थे। 91 में उसकी कीमत क्या रही होगी? किसी मिडल क्लास आदमी के एक महीने की तनख्वाह के बराबर……
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अब उससे इतर एक बात। नीचे की तस्वीर को देखकर कुछ लोग लहालोट हो रहे हैं। उन्हें जानना चाहिए कि QUAD की शुरुआत 2007 में ही हुई थी और हमारे विद्वान अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन जी के समय हुई थी। तो क्या हुआ कि एक साल बाद वह ठप्प पड़ गया।
मोदीजीवा कुच्छो ऑरिजिनल करबे नै करते हैं…सब कांग्रेस का चुराते रहते हैं।