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दुश्मने जां

Bhagwan Singh

by Bhagwan Singh
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इसके दो अर्थ हैं, एक ‘ हमारी जान का दुश्मन’ और दूसरा ‘ स्वयं अपनी जान का दुश्मन’। सुनने में यह विचित्र लगेगा कोई अपनी जान का दुश्मन भी हो सकता है, परंतु सच्चाई यह है कि महत्वाकांक्षी लोगों में अधिकांश अपनी जान के दुश्मन होते हैं। इनमें भी दो प्रकार के लोग होते हैं। एक वे जो असाधारण प्रतिभाशाली होते हैं और किसी महान लक्ष्य के प्रति इतने समर्पित हो जाते हैं कि उसके लिए अपनी जान की बाजी लगाना और बार-बार लगाते रहना उनकी आदत बन जाती है, और उसके सामने दुनिया का सारा सुख, जीवन के समस्त प्रलोभन तुच्छ दिखाई देते हैं। दुनिया को ऐसे ही आत्मघातियों ने आगे बढ़ाया और पहले से अधिक सुंदर बनाया है। दूसरे इनके विपरीत, वे होते हैं जो सुख सुविधा और अधिकार पाने के लिए समाज का, देश का और स्वयं अपना अनिष्ट करते जाते हैं परंतु अपने अनुभवों से सीखते तक नहीं, उन गलतियों को उस परिणति तक दुहराते रहते हैं, जिसके बाद वे किसी को नजर नहीं आते। ऐसे ही आत्मघातियों ने दुनिया को पीछे लौटाया है, और आचार, व्यवहार और संस्कार के रूप में दुनिया को कुरूप बनाया है, मर्यादाओं को नष्ट किया है और अपने से संबंधित या अपनी सलाह मानने वालों की दुर्गति की है, उनके विनाश का कारण बने हैं और स्वयं नष्ट हो गए हैं ।
इस दृष्टि से भाजपा का शासन आने के बाद से उपद्रवों के माध्यम से सरकार को गिराने, उसके द्वारा किए जा रहे जनहित के कार्यों को निंदनीय बताने और रोकने और छोटे से छोटे सवाल को बवाल का रूप देने के मूर्खतापूर्ण प्रयोगों से देश की प्रगति में बाधक बनने वालों को जनता ने अपनाया है या ठुकराया है? इनके बहकावे मे आए उपद्रवकारियों का हित किया है या अहित।
इस पृष्ठभूमि में समस्त विपक्षी दल जो कोई भी बहाना लेकर इस आशा में उपद्रव करते रहे हैं, कि उपद्रव बढ़ने के साथ सरकार गिर जाएगी या यदि सरकार ने अपने को बचाने के लिए कोई अतिवादी कदम उठाया तो जनता उसके विरुद्ध हो जाएगी और सरकार गिर जाएगी। अंग्रेजी में इसके लिए फूल्स पैराडाइज मुहावरा चलता है। इस पैराडाइज में सभी आशंकित दल शामिल हो जाएं, और किसी में यह होश तक न हो कि उनकी विघटनकारी गतिविधियों का जनमानस पर क्या असर होता है, और वे अपने काडर को ध्वंसकारी गतिविधियों में लगाते हैं तो क्या वे उनका हित कर रहे हैं।
आज के संदर्भ में कई सवाल उठते हैं:
क्या भारतीय जनमानस उनमें से किसी को, या पूरे जमाकड़े को, जो बहाने तलाश कर प्रगति में बाधा डालते हैं, अपना हितेषी मान सकता है? आज तक माना है या नकारा है ? घटनाओं को सही परिप्रेक्ष्य में रख सके होते तो वे अपने को अपना शत्रु मानते और मानते कि देश की अधोगति में उनकी एक भूमिका है।
जनता को अपने हित अहित की याद दिला कर समझाते कि तुम्हें उत्तेजित करने के कारण हमारा अहित तो हो ही रहा है, हम तुम्हारा भी अहित कर रहे हैं और आज तक करते आए हैं। अब आगे ऐसा न हो इसके लिए हमें अपना तरीका बदलना होगा और अपने को भले बचा न सकें तुम्हें विनाश के रास्ते पर डालने का प्रयत्न न करेंगे।
इसे दूसरे रूप में सोचिए, क्या सरकार ने जो भी बदलाव किए हैं उन पर सही चर्चा हुड़दंग करके की जा सकती है?
क्या हुड़दंग विचार का स्थान ले सकता है? इससे सभी का अहित तो होता है परंतु हित किसी का नहीं होता । इससे सहानुभूति जताने वाली पार्टियां अपनी विश्वसनीयता कम करेंगी. परंतु उपद्रवियों में जिनकी पहचान हो पाएगी वे सेना ही नहीं किसी भी सरकारी या गैर सरकारी संस्थान में नौकरी नहीं पा सकेंगे। अपनी हत्या और अपने उकसावे में आने वालों के भविष्य की हत्या कौन कर रहा है?

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