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देश का सच : संभल जाइये गेहू का उत्पादन कम हो रहा है

Author - Vivek Umrao

by Umrao Vivek Samajik Yayavar
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जब मैंने गेहूं उत्पादन पर लेख लिखे, बताना चाहा कि उत्पादन कम है। देश को भूखा रखकर निर्यात नहीं किया जाना चाहिए। तब बहुत लोग या तो मजाक उड़ाते थे, या ऋणात्मक ढंग से बात करते थे या पता नहीं कहां कहां से लिंक चिपकाते हुए बताते थे कि देखिए कितना अधिक उत्पादन हो रहा है, जब मैं कहता था कि यह सब प्रोपागंडा है तो मेरी बात का बुरा मानते थे। बहुत लोग तो यह तर्क देते थे कि देश मुफ्त राशन दे रहा है, तब जब मैं कहता था कि जरूरत हो 100 किलो की और दिया जाए एक पाव तब भी हुआ तो मुफ्त राशन ही, तो मुफ्त राशन देने का मतलब यह नहीं कि उत्पादन भरपूर है, सबका पेट भरने के बाद जो अतिरिक्त है वह निर्यात किया जाना है।
खुद भूखे रहकर भी खाने का सामान बेचा जा सकता है। कुछ लोग तो यह बताते थे कि उनके इलाके में लोग गेहूं खाते ही नहीं हैं (इनको यह लगता था कि चूंकि इनके इलाके में लोग गेहूं नहीं खाते हैं तो देश में गेहूं इफरात है)। ऐसा ही बहुत कुछ।
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अब सुनने में आ रहा है कि गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। ऐसा इस बार ही नहीं, बहुत बार होता आया है कि जब मैं कुछ कहता हूं तो मेरा मजाक उड़ाया जाता है, मेरी खिल्ली उड़ाई जाती है, उटपटांग के तर्क/वितर्क/कुतर्क दिए जाते हैं। लेकिन जब समय के साथ मेरी बात सही निकलती है तो एक बंदा यह कहने नहीं आता है कि भई हम गलत थे, आपकी बात सही है।
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मैं फिर से कहता हूं कि सामाजिक मुद्दों, सामाजिक नीति मामलों व अंतर्राष्ट्रीय मामलों इत्यादि के विश्लेषणों में आप मेरा हाथ नहीं पकड़ सकते हैं। मुझे जब तक मुद्दे की समझ नहीं होती है तब तक मैं बात कहता ही नहीं हूं। मैं बहुत अधिक अध्ययन करता रहता हूं, खंगालता रहता हूं, शोध करता रहता हूं तब बात रखता हूं।
यदि उत्पादन अधिक है, यदि देश के लोगों का पेट भरा है, सबको जरूरत से अधिक उपलब्ध है तो अधिक कीमतों के होने पर तो और अधिक निर्यात करना चाहिए, जमकर माल कमाना चाहिए। बैन करने की कोई जरूरत है ही नहीं। बैन इसलिए है क्योंकि हम खुद भूखे हैं, हमारे पास जरूरत भर का भी उपलब्ध नहीं है।
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गेहूं का उत्पादन कम है इसका दोष देश के प्रधानमंत्री का नहीं है, प्रधानमंत्री थोड़ी न खेत में गेहूं उगाता है। कमियां नीतियों की है, उत्पादन के तरीके की है, व्यवस्था की है, वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमी की है।
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जब मैं किसी मुद्दे पर बात रखता हूं तो इसका मतलब यह नहीं है कि दोष प्रधानमंत्री का है मुख्यमंत्री का है। मुद्दे को आप समझ पाएं, उसके अंदरूनी नुक्ते समझ पाएं, इसलिए लिखता हूं। इसलिए अपने राजनैतिक आग्रह के आधार पर देखने की बजाय, कैसे बेहतर किया जाए की मानसिकता से देखा पढ़ा कीजिए। धन्यवाद।
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