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भारत में बजट का लगभग 20% शिक्षा पर खर्च हो

by Umrao Vivek Samajik Yayavar
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जब मैंने कहा कि बजट का लगभग 20% शिक्षा पर खर्च करना चाहिए, तब कुछ मित्रों ने बातचीत के माध्यम से अपनी विद्वता प्रस्तुत करते हुए, मुझे बताया कि ऐसा संभव नहीं है, अपनी जानकारी व समझ के स्तर भर इन लोगों ने तर्क भी दिए। मुझे लगा कि सरल भाषा में बजट-आकड़ों पर कुछ चर्चा करनी चाहिए। आइए देखते हैं, दो देशों के बजट की तुलना करते हैं, कि कौन देश किस मद में बजट का कितना प्रतिशत खर्च करता है।

 

**भारत का बजट**
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27 % इन्फ्रास्ट्रक्चर बजट
16 % केंद्र सरकार के कामगारों के वेतन व पेंशनधारी (सेना सहित)
8.87 % सामाजिक न्याय, कल्याण, सशक्तिकरण व मनरेगा, स्किल, PDS, PMAY
8 % सब्सिडी
6.4 % रक्षा-बजट (वेतन व पेंशन हटाकर)
3.14 % कृषि
3 % शिक्षा-बजट (उच्चशिक्षा व वैज्ञानिक शोध सहित)
2.19 % स्वास्थ्य व परिवार कल्याण बजट
0.44 % विदेश मंत्रालय बजट
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कुल = 75.04 %
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भारत के बजट का लगभग 25% (लगभग एक चौथाई बजट कहां जाता है)।
**ऑस्ट्रेलिया का बजट**
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30 % सामाजिक न्याय, सशक्तिकरण, स्किल डेवेलपमेंट
21.79 % स्वास्थ्य
21.73 % शिक्षा बजट (उच्चशिक्षा व वैज्ञानिक शोध सहित)
10 % इन्फ्रास्ट्रक्चर बजट
8.25 % रक्षा बजट
4 % केंद्र सरकार के कामगारों के वेतन का बजट
2.2 % सब्सिडी
1.09 % विदेश मंत्रालय बजट
0.51 % कृषि
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कुल = 99.57 % (पूरे बजट का हिसाब बिलकुल साफ है, 0.43% का अंतर है)
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भारत में कुल काम करने वाले लोग लगभग 50 करोड़ हैं। केंद्र सरकार के लिए काम करने वाले लोग लगभग 47 लाख हैं, लगभग 69 लाख लोग पेंशनधारी हैं। मतलब भारत के कुल कामगारों में से 1% से भी कम लोग भारत सरकार के लिए काम करते हैं (कुल जनसंख्या का 0.34%)। लेकिन भारत सरकार अपने कुल बजट का लगभग 16% इनको वेतन व पेंशन देने में खर्च करती है। राज्य सरकारों के कामगारों की बात नहीं हो रही है।
ऑस्ट्रेलिया में कुल कामगारों का लगभग 2% लोग केंद्र सरकार के लिए काम करते हैं। इनको वेतन देने में ऑस्ट्रेलिया सरकार बजट का केवल लगभग 4% खर्च करती है। ऑस्ट्रेलिया में पेंशन नहीं होती है। राज्य सरकारों के कामगारों की बात नहीं हो रही है।
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2% लोगों पर केवल 4% बजट खर्च। वेतन के अलावा आवास, बिजली, पानी, टेलीफोन, गाड़ी, नौकर-चाकर इत्यादि कुछ भी नहीं मिलता है, न ही इनके एवज में कोई भत्ता।
ऑस्ट्रेलिया ही नहीं, योरप में भी जो विकसित व लोकतांत्रिक देश हैं। उन सभी में लगभग ऐसा ही है। लोकतंत्र समाजवाद व साम्यवाद का ही परिष्कृत रूप होता है, सामंतवाद का कोई स्थान नहीं होता है। इसलिए देश के लोगों की मेहनत की कमाई को सामंतो की अय्याशी में लुटाना सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता है।
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यही कारण है कि इन देशों में आर्थिक विषमताएं बहुत अधिक नहीं हैं। पैसा नीचे से ऊपर तक घूमता है तो GDP का विकास होता है, सरकारों की आय होती है। सरकारों के पास शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार इत्यादि के लिए खूब पैसा होता है।
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