Home विषयपरम्पराए राष्ट्र बनाम देश
कल से इस चित्र का बहुत मजाक उड़ाया जा रहा है और एक जगह मुझे टैग भी किया गया। मैं उत्तर देता लेकिन इस चित्र और इस तालिबानी लड़ाके की मुखमुद्रा को देखकर गंभीर होकर रुक गया।
अफगानिस्तान और पाकिस्तान,
दो ऐसे देश हैं जो भारत से अलग हुए भूमि के टुकड़े से बने हैं।
इनके साथ नियति ने जो क्रूर मजाक किया , वह है इनके राष्ट्र के आधार का नष्ट होना।
ये दोंनों भूखंड व वहां की जनसंख्या ‘देश’ तो बन गयी परंतु ‘राष्ट्र’ नहीं क्योंकि उनके राष्ट्र का आधार ‘इस्लाम’ है ही नहीं, हो भी नहीं सकता क्योंकि एक तो ‘उम्मा’ की अवधारणा में ‘राष्ट्र’ का स्थान है ही नहीं और दूसरा उनके राष्ट्र का आधार एक ऐसी संस्कृति है जिससे इनका वर्तमान मजहब बेइंतिहा डरता है और वह है, ‘हिंदुत्व’– ‘हिंदू संस्कृति’।
यह संस्कृति उनकी जड़ों में इतने गहरे से घुसी है कि वहाँ के मुल्ला और मौलवी, जिनकी रोटी और अय्याशियां इस्लाम के नाम पर चलती है, उन्हें इसके विरुद्ध निरंतर अभियान चलाना पड़ता है- कभी बामियाँ में खड़े बुद्ध को उड़ाकर तो कभी सिखों व हिंदुओं के होलोकॉस्ट का फतवा देकर।
आप जानते हैं, मुल्ला-मौलवी, सबसे ज्यादा किससे डरते हैं?
किताबों से, ज्ञान से।
इसीलिये दूसरे खलीफा उमर बिन खताब ने अलेग्जेंड्रिया की मशहूर लाइब्रेरी को जलवा दिया क्योंकि उसे और उसके जाहिल मुल्लों को ‘ज्ञान व तर्क’ से डर लगता था।
किताबें, जो इन अंधे हो चुके पठान लड़ाकों को उनके सुनहरे हिंदू अतीत की झलक दिखा सकती हैं जब उन्होंने ऋग्वेद, व्याकरण, अद्भुत मूर्तियाँ, भव्य मंदिर रचे और सिल्क रूट के माध्यम से दुनियाँ के 80% व्यापार को नियंत्रित किया।
कभी हिंदू अफगानिस्तान की कापिशेयी वाइन एक वैश्विक ब्रांड था, आज मुस्लिम अफगानिस्तान की पहचान अफीम है।
कभी हिंदू अफगानिस्तान के कम्बोजी अश्व दुनियाँ भर में प्रसिद्ध थे, आज इस्लामी तालिबानी लड़ाके अपनी बर्बरता के लिए।
कभी हिंदू अफगानिस्तान के पठान अपने स्वाभिमान के लिए प्रसिद्ध थे जिन्होंने सायरस और सिकंदर जैसे अजेय योद्धाओं के मुँह मोड़ दिये थे आज मुस्लिम पठान अपनी बेटियों को खुले बाजार में बेचते हैं।
ये सब जानकारियां उन तक कैसे पहुंचेंगी?
किताबों के जरिये ही न?
आप बंदूक से किसी देश की जमीन को जीत सकते हैं, राष्ट्र निर्माण खून के साथ स्याही की तासीर से होता है।
इस चित्र में बंदूक को नहीं, इस लड़ाके के चेहरे पर छाई उत्सुकता व गंभीरता को देखिये।
यही उत्सुकता उन्हें उनके सुनहरे हिंदू अतीत का स्मरण करवाएगी कि वे वास्तव में हैं कौन!
इनका मजाक मत उड़ाइये बल्कि प्रार्थना कीजिये कि ये और पढ़ें।
ये किताबें ही हमारी सबसे घातक अस्त्र हैं।
ये किताबें ही हमारी आखिरी उम्मीद हैं।
ये किताबें ही अखंड भारत की बुनियाद बनेंगी।

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