किताबें …….

Ajit Singh

by Ajit Singh
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उस ज़माने में जब घुमक्कड़ी रेल से हुआ करती थी , तो हम घुमक्कड़ों के लिये Trains at a Glance बोले तो रेलवे टाइम टेबल ही हमारी life line हुआ करता था ।
बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहता था नये टाइमटेबल का ।
पुराने जमाने मे साल में दो टाइम टेबल आया करते थे ।
एक April में और दूसरा October में।
फिर July में आने लगा । TAG में एक दिक्कत ये होती थी कि इसमें सिर्फ मेल एक्सप्रेस गाड़ियां ही दर्ज होती थीं ।
घुमक्कड़ी की दुनिया मे Passenger ट्रेनों का अलग महत्व होता था ।
मेल Express Superfast ट्रेन से बड़े स्टेशन पे उतर के फिर आगे पीछे या Side में जाना हो तो कौन सी गाड़ी मिलेगी , ये सब जानकारी TAG में नही मिलती थी ।
उसके लिये Zonal रेलवे के अलग Time Table आया करते थे ।
Northern रेलवे का अलग , तो NER का अलग …… राजस्थान घूमना है तो Western रेलवे का टाइम टेबल चईये ।
अब दिक्कत ये होती थी कि किसी अन्य Zone का टाईमटेबल Northern रेलवे में आसानी से न मिलता था ।
अलबत्ता दिल्ली के Book Stalls पे तीन चार zones के मिल जाते थे ।
एक बात और , नया Time Table लागू होता था एक July से , पर किताब छप के सभी स्टेशनों पे आते आते अगस्त सितंबर हो जाता था । अलबत्ता नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की Booking window में 15 july को मिलने लगता था ।
Book Stalls पे आते आते तो July बीत जाती थी ।
नया टाईमटेबल भी हम बड़े कौतूहल बड़ी उत्सुकता से पढ़ते ।
कौन सी नई गाड़ी चली ?
पुरानी गाड़ियों में क्या बदलाव आया ?
रेलवे Time Table पे तो मेरी ऐसी महारथ थी कि कई बार दोस्त मित्र रिश्तेदार फोन करके पूछते कि इस समय भोपाल से दिल्ली आने को कौन कौन सी गाड़ी मिलेगी , बताना जरा ?
इसके अलावा रेल गाड़ियों में सीट उपलब्धता की जानकारी भी गजब होती थी ।
मसलन …… तिनसुकिया में S 4 में चार सीट इलाहाबाद तक खाली जाती हैं , इलाहाबाद का कोटा है उसमें …….
रेलवे टाईमटेबल के अलावा एक अन्य किताब जो मेरे लिये गीता रामायण जैसी थी , वो थी ” भ्रमण संगी ”
ये कलकत्ते से छपने वाली Encyclopedia नुमा एक मोटी सी किताब थी , कोई 1000 पेज की …… इसमे देश का एक एक बड़ा छोटा पर्यटक स्थल दर्ज था ……. सिर्फ स्थान नही बल्कि उस पर्यटक स्थल का एक एक होटल , होस्टल , धर्मशाला , सस्ते से सस्ता जुगाड़ बोले तो शिमला की कालीबाड़ी में 50 रु में Bed मिलता है बंगालियों को और 20 रु में पेट भर माछ भात , ये तक दर्ज था ……हरेक होटल ढाबे का पता address , फोन नंबर सब जानकारी ।
किस बड़े पर्यटन स्थल के अगल बगल और क्या क्या Places of Interest हैं , सब संकलित था ।
उसी ” भ्रमण संगी ” से पढ़ के हम दोनों जुगल जोड़ी एक बार तत्कालीन बिहार के Ghost Town सिमुलतला चले गये थे ।
वहां जा के देखा कि इतना खूबसूरत इलाका , पर उजाड़ बियाबान …….
पर अब इस नये ज़माने में किताबों से नाता टूट गया है ।
अब तो सब कुछ एक Click पे उपलब्ध है , फोन में ।
आज 2 October को रेलवे का नया टाईमटेबल जारी हुआ है । फोन पे सर्च किया तो उसकी Digital Copy दिखी ।
पर Digital Copy में वो बात कहाँ जो किताब में होती थी ।
***
किताबें झांकती हैं बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से तकती हैं
महीनों अब मुलाक़ातें नहीं होतीं
जो शामें उन की सोहबत में कटा करती थीं, अब अक्सर
गुज़र जाती हैं कम्पयूटर के पर्दों पर
बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें
उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है
बड़ी हसरत से तकती हैं
जो क़द्रें वो सुनाती थीं
कि जिन के सेल कभी मरते नहीं थे
वो क़द्रें अब नज़र आती नहीं घर में
जो रिश्ते वो सुनाती थीं
वो सारे उधड़े उधड़े हैं
कोई सफ़्हा पलटता हूं तो इक सिसकी निकलती है
कई लफ़्ज़ों के मानी गिर पड़े हैं
बिना पत्तों के सूखे तुंड लगते हैं वो सब अल्फ़ाज़
जिन पर अब कोई मानी नहीं उगते
बहुत सी इस्तेलाहें हैं
जो मिट्टी के सकोरों की तरह बिखरी पड़ी हैं
गिलासों ने उन्हें मतरूक कर डाला
ज़बां पर ज़ाइक़ा आता था जो सफ़्हे पलटने का
अब उंगली क्लिक करने से बस इक
झपकी गुज़रती है
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है पर्दे पर
किताबों से जो ज़ाती राब्ता था कट गया है
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे
कभी घुटनों को अपने रेहल की सूरत बना कर
नीम सज्दे में पढ़ा करते थे छूते थे जबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी
मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल और
महके हुए रुक्के
किताबें माँगने गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उन का क्या होगा
वो शायद अब नहीं होंगे!

गुलज़ार साहब

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