Home विषयसाहित्य लेखज्ञान विज्ञानपुस्तक (कहानी श्रृंखलाबद्ध) नरक चतुर्दशी क्यों मानते है आइये जाने !- पहली कथा

नरक चतुर्दशी क्यों मानते है आइये जाने !- पहली कथा

by Sharad Kumar
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दीपावली के उत्सवों में धनतेरस के बाद नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है इस दिन को लोग छोटी दीपावली के नाम से जानते एवं मानते है इसी को काली चौदस और रूप चौदस भी कहा जाता है इस दिन लोग काली पूजा यम पूजा और कृष्णा पूजा करते है तांत्रिक ( काला जादू ) आज की रात अपनी शक्तियों को जागृत करने के लिए या नयी शक्ति अर्जित करने के लिए मृत शव की भी पूजा करते है दक्षिण भारत में लोग भगवान् कृष्णा के वामन अवतार की पूजा करते है

कृष्णा अपनी आठ पत्नियों के साथ द्वारिका में सुखी जीवन व्यतीत कर रहे थे एक दिन इन्द्र देव कृष्णा के पास जाकर उनसे प्रार्थना करते है कि हे कृष्ण दैत्यराज नरकासुर के अत्याचार से देव बहुत परेशान है उसने वरुण का छत्र, अदिति के कुण्डल और देवताओ कि मणि छीन ली है इतना ही नहीं पृथवीलोक के कई राजाओ किहत्या कर उनकी रानियों का भी हरण कर चुका है नरकासुर त्रिलोक विजयी हो गया है कृपया कर के आप हमारी रक्षा करे कृष्णा ने उनकी विनती स्वीकार कर अपनी पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गरुण पर सवार होकर प्राणज्योतिषपुर पहुंचे वहा पहुंचकर कृष्ण अपनी पत्नी कि सहायता से सबसे पहले मुर दैत्य के 6 पुत्रो ताम्र ,आंतरिक्ष, श्रवण ,विभावसु ,नभश्रान ,और अरुण का संहार किया

उसकी संहार का समाचार सुन नरकासुर अपनी सेना के साथ युद्ध के लिए निकला नरकासुर या भामासुर पर स्त्री के हाथो मरने का श्राप था इसलिए श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा कि सहायता से उसका वध कर डाला और नरकासुर के पुत्र को अभयदान देकर उसको प्राणज्योतिपुर का राजा घोषित कर दिया इस तरह से उन्होंने देवो ही सहायता कि इसके साथ ही बंदी और हरण कि गयी रनिया जो कि लगभग 16 हजार थी को मुक्त करा उनसे विवाह किया तब से आज तक इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है

कथाये आगे जारी रहेगी …

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