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सन 2002 में वैज्ञानिकों ने पुरातात्विक अंशों व समकालीन साहित्य के आधार पर जीसस क्राइस्ट की शक्ल को कम्प्यूटर पर बनाने का प्रयास किया।
शोधकर्ताओं की एक टीम ने पहली शताब्दी में एक इजरायली खोपड़ी के साथ शुरुआत की। फिर उन्होंने चेहरे के आकार और आंखों और त्वचा के रंग को निर्धारित करने के लिए कंप्यूटर प्रोग्राम, मिट्टी, नकली त्वचा और उस समय के यहूदी लोगों के बारे में अपने ज्ञान का इस्तेमाल किया।
बड़े सुनहरे केश, करुणामय नीली आँखों और इकहरे लंबे शरीर के भव्य व्यक्तित्व के स्थान पर एक ऐसा चेहरा बना जिसके विरुद्ध उपहास व रोष की भावनाएं पूरे ईसाई जगत में व्याप्त हो गईं।
हालांकि वैज्ञानिकों व इतिहासकारों की टीम ने ऐसा कोई दावा नहीं किया कि यही जीसस का चेहरा है लेकिन ऐसा या इसके आसपास ही होगा, ऐसा उनका मानना था।
इस विरोध का कारण क्या था?
मन में बसी छवि का पूर्वाग्रह।
उदाहरण के तौर पर मजेदार किस्सा-
पोप जॉन पॉल मरकर जन्नत के दरवाजे पर पहुंचे और गैब्रीअल को आवाज लगाई कि अब तो परमेश्वर और उसके बेटे के दीदार करवा दो।
“तुम्हें दो चीजों के लिए तैयार होना पड़ेगा।” गैब्रीअल ने कहा।
“मंजूर है।” पोप झटपट बोले।
“पहले सुन तो लो।” गैब्रीअल ने इत्मीनान से कहा।
“जी बोलें।” पोप ने उत्सुकता से वचन दे दिया।
“पहली बात ये है कि परमात्मा पुरुष नहीं है, वह एक स्त्री है।”
पोप पछाड़ खा कर गिर पड़े।
“यह नहीं हो सकता। परमात्मा को पुरुष ही होना चाहिए।” पोप बड़बड़ाये
“सोच लो।” गैब्रीअल आराम से अंगूठे से अपनी उंगलियों के नाखून पैने करता हुआ बोला।
अछता पछता कर आखिरकार पोप ने मान लिया, “और दूसरी बात?”
“परमात्मा एक स्त्री है और व एक नीग्रो स्त्री है।”गैब्रीअल ने कहा।
“भाड़ में जाये जन्नत और भाड़ में जाये परमेश्वर।” पोप चीखे।
ईसाई जगत का यह व्यंग्य यहीं खत्म हो जाता है लेकिन मेरे हिसाब से कहानी बाकी है।
दरअसल पोप कुछ समय बाद ल्यूसीफर के कदम चूमते पाये गये जिसके लबादे को पकड़े पहले के सारे पोप मौजूद थे।
यही समस्या हमारे साथ है।
“अवतार के दाढ़ी-मूँछ नहीं हो सकती।”
क्यों भाई क्या वे पुरुष शरीर में नहीं हैं?
“अवतार नित्यक्रिया को नहीं जाते।”
क्यों भाई क्या वे खाना नहीं खाते या दुर्लभ सिंड्रोम से ग्रसित हैं। फिर रामायण, भागवत, हरिवंश में उनके नित्यकर्म के जाने का विवरण क्यों है?
“अवतार सैक्स नहीं कर सकते।”
क्यों भाई फिर उनके बच्चे और उनके बच्चे और फिर उनके बच्चे कैसे पैदा हुए?
इन सब मूर्खतापूर्ण मान्यताओं के मूल कारण के विषय में उपनिषद में बताया गया जिससे श्वेतकेतु ग्रसित हो गया था और उसे हर वस्तु सहित अपना मानव शरीर गंदगी का पिटारा दिखने लगा।
कालांतर में बुद्ध के चेलों ने बुद्ध से आगे निकलने की इच्छा में मानव शरीर विशेषतः स्त्री शरीर व सैक्स को घृणित सिद्ध कर ऋषियों द्वारा बनाये संतुलन को भंग कर दिया जिसके कारण ब्रह्मचर्य को श्रेष्ठता की कसौटी बना दिया।
फिर अवतारों देवताओं का क्या करें जिनकी पत्नियां हैं, प्रेयसियां हैं जिनसे संतान भी हो रही हैं।
तो एक नया सिद्धान्त निकाला गया, ‘अमैथुनी सृष्टि’ का।
ये सारे सिद्धांत अंग्रेजों मुगलों ने नहीं बल्कि हमारे ही पाखंडियों ने घुसेड़े हैं और इसी ब्रह्मचर्य की कसौटी के कारण राम-रहीमों, आसारामों की पंक्तियाँ लंबे समय से लगी हुई हैं।
संसार के श्रेष्ठतम धर्म को इन पाखंडियों ने हास्यास्पद किस्सों से भर दिया।
हमारे विशुद्ध इतिहास को चमत्कारिक मिथक कथाओं का संग्रह बना डाला।
तो ये जो पूर्वाग्रह हैं वही आपको हमको कुछ भी इधर उधर सोचने से रोकते हैं।
पिछले दिनों डॉ राजीव मिश्रा जी ने इतना भर लिख दिया कि उन्हें रामायण व महाभारत सिनेमाई दृष्टि से अच्छे नहीं लगे तो भाई लोग उनपर ऐसे टूट पड़े गोया उन्होंने रामायण व श्रीराम को ही इनकार कर दिया हो औऱ राम जी की निंदा कर डाली हो।
ये हम जा कहाँ रहे हैं?
आलोचना में कोई बुराई नहीं परंतु आलोचना तथ्यपूर्ण और पूर्वाग्रह रहित होनी चाहिए।
मुझे भी प्रभास राम के रोल में नहीं जंचे लेकिन उसका आधार उनका कवच या मूंछें या चमड़े की पोशाक नहीं है।
रावण के संदर्भ में ऐतिहासिक तर्क देते हैं लेकिन राम के संदर्भ में, शिव के संदर्भ में इतिहास की एसेतैसी कर डालते हो।
मतलब, चित भी मेरी, पट भी मेरी और अंटा मेरे बाप का।
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ऊपर चित्र में जीसस क्राइस्ट का कम्प्यूटर द्वारा बनाया गया चित्र।

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