कितने आश्चर्य की बात है कि सुदूर लंका में बैठा हुआ रावण मध्यएशिया और उनके घोड़ों का महत्व जानता था, लेकिन परवर्ती सम्राटों में ललितादित्य अंतिम हिंदू राजा थे जिन्हें इस बात का ज्ञान था कि मध्यएशिया भारत की पहली सुरक्षा दीवार थी।
सोचिये क्या होता अगर रावण ने लंका से त्रिविष्टप स्वर्ग से होते हुये गन्धर्वदेश अर्थात उत्तरी अफगानिस्तान तक रास्ता बना लिया होता अर्थात स्वर्ग तक सीढ़ी बना ली होती और मध्यएशिया के घोड़े प्राप्त करने में सफल हो जाता तो श्रीराम को उसे परास्त करने में कितनी कठिनाइयां आयी होतीं?
रावण तिब्बत, कश्मीर व कांबोज में यों ही नहीं भटक रहा था और यों ही महारुद्र शिव का भक्त नहीं बन गया था। रावण के उद्देश्य बहुत गहरे थे।
यही कारण है कि बाद में श्रीराम ने बलूचिस्तान के हिंगलाज को आधार बनाकर अफगानिस्तान पर नियंत्रण बनाने के लिए भरत को भेजा और तक्षशिला व पुष्कलावती की सैनिक छावनियों का निर्माण किया।
अफगानिस्तान व मध्येशिया का महत्व आज भी वैसे का वैसा है भले ही घोड़े आज की जरूरत न हों।
‘अनसंग हीरोज:#इंदु_से_सिंधु_तक’ से।