इन चुनावों में भाजपा के लिए एक चीज़ जो निगेटिव जा रही है वह है इसके मिड टियर कार्यकर्ताओं का उत्साह. बूथ स्तर तक का कार्यकर्ता तो बहुत शक्रिय है, पर इससे ऊपर वो जोश नहीं दिख रहा है जो 2017 में सत्ता न रहते हुवे था. हक़ीक़त में सपा कार्यकर्ता जोश में दिख रहे हैं और भाजपा के ये कार्यकर्ता उदासीन दिख रहे हैं.
क्लोज़ कॉंटेक्स्ट में ऐसे कार्यकर्ताओं की बहुत ज़्यादा वैल्यू होती है. यह वह होते हैं जो हर गाँव देहात के फ़ेन्स सिटिंग वोटर को मिल कर समझाते थे कि तुम्हारे विधायक हम हैं, कोई समस्या हो हमसे मिलना. यह वो हैं जो अपने पक्ष के किसी को दल बदल होते देख शक्रिय हो जाते थे और उस पर साम दाम दंड भेद से प्रेसर डालते थे ये वो हैं जो अपनी जान पहचान के विपक्षी ख़ेमे में जा रहे लोगों को विधायक प्रत्याशी से फ़ोन पर बात करवा खेमा बदलवा देते थे.
सरकार के पाँच वर्षों में इन कार्यकर्ताओं की बिल्कुल नहीं चली विशेष कर पुलिस प्रशाशन में तो इस बार यह वर्ग प्रचार में निकल तो रहा है पर खुद आगे बढ़ ज़िम्मेदारी नहीं ले रहा है. यह बिल्कुल जैसा ऊपर से आदेश आता है शक्ति केंद्र में बैठक ले लो तो वहाँ पहुँच भाषण दे आता है. 2017 में यह वहाँ पहुँच व्यक्तिगत स्तर पर दस नाराज़ लोगों को, विरोधियों को मनाता था और अपने पक्ष वालों में जोश भरता था. यह वह वाला वर्ग है जो डिसीजन मेकर है ग्राउंड लेवेल पर. बूथ कार्यकर्ता जब इसे फ़ोन करता है कि सपा वाले पैसा बाँट रहे हैं तो पहले यह खुद आ जाता था पुलिस लेकर. अब बोलता है कि पार्टी गाइड लाइन में जितना काम बोला गया है, उतना करो.
वहीं सपा के यह मिड टियर कार्यकर्ता पिछली बार उदासीन थे घर के झगड़े की वजह से, पर इस बार बहुत उत्साह में हैं.
इसका क्या फ़ायदा नुक़सान होगा ये तो नतीजे ही बताएँगे पर क्लोज़ कॉंटेक्स्ट वाली सीटों पर फ़िलहाल तो इससे नुक़सान होता दिख रहा है. जनता भाजपा के साथ है, बूथ लेवेल वाले कार्यकर्ता भाजपा के साथ हैं, वह बना बिगड़ा करते हैं, नए आ जाते हैं. पर मिड टियर कार्यकर्ताओं की उदासीनता क्या डैमेज करेगी या कुछ डैमेज नहीं करेगी, नतीजे बताएँगे.