लखनऊ में बड़ा इमाम बाड़ा जाना हुआ चूँकि लखनऊ का रहने वाला हूँ तो प्रायः बाहर से जो भी मित्र, नाते रिश्तेदार आते हैं वह सब भूल भूलैय्या देखने की ज़िद करते हैं तो अक्सर जाना रहता है. समय के साथ साथ इमाम बाड़े के स्वरूप में वही परिवर्तन हुवे जो ऐसी हर इस्लामिक इमारत में होते हैं.
समय के साथ इमाम बाड़ा अब भूल भूलैय्या के लिए मशहूर नहीं रहा. बाहर से ही ज़ोर शोर से माइक पर अनाउन्स मेंट चल रहा था यह इबादत खाना है. जहां पहले थोड़ा सा टूरिस्टी माहौल होता था, अब चौतरफ़ा एक ही मक़सद मज़हब मज़हब और सिर्फ़ मज़हब. सर ढक कर जाएँ, जो पैसे यहाँ देंगे सब ज़कात में जाएँगे, मुहर्रम में इश्तेमाल होंगे वग़ैरह वग़ैरह. गाइड की फ़ीस लिखी तो हुई है, पर अधिकारिक रूप से आपसे फ़ीस लेकर बता दिया जाता है यह फ़ीस मज़हबी कार्यों में लगेगी. गाइड को अलग से टिप देना अनिवार्य है. गाइड मज़हबी बंदा है तो नमाज़ के समय से पहले वापसी अनिवार्य है. मुझे आश्चर्य न होगा यदि भविष्य में इमाम बाड़ा में एंट्री के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया जाए.
हमारे गाइड थे छोटे मियाँ. जिन्हें हम पहले भी इश्तेमाल कर चुके हैं. वक्त के साथ छोटे मियाँ के गाल पोपले हो गए, दाँत पीले हो गए, यद्यपि वह हैं गाइड पर अब उनका मक़सद हो गया है टूरिस्ट को इस्लाम की महानता समझाना. अब भूल भूलैय्या का आर्किटेक्चर नहीं समझाते वह, बल्कि बताते हैं कि उनका मज़हब ही जन्नत का रास्ता है. भूल भुलैय्या में चौतरफ़ा फैली पान की पीक के बीच छोटे मियाँ बताते हैं कि यहाँ चप्पल पहन आना मना है. इमाम बाड़ा के बाहर एक गंदे से पोस्टर पर कुछ मौलाना की फ़ोटो लगी है. छोटे मियाँ इमाम बाड़ा के आर्किटेक्चर की जगह ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के उन मौलानाओं के क़िस्से सुनाना ज़्यादा पसंद करते हैं.