चर्चा इसपर हो रही है कि अयोध्या के बाद काशी, मथुरा, कुतुबमीनार और अब ताजमहल, आखिर देश में हो क्या रहा है।
जबकि चर्चा इसपर होना चाहिए कि आखिर हर मस्जिद के अंदर से मंदिरों के प्रमाण कैसे निकल रहे है ? चर्चा इसपर होना चाहिए कि मंदिरों पर मस्जिद क्यों बनाई गई ?
चर्चा तो इस पर भी होनी ही चाहिए कि देश की स्वतंत्रता के बाद 60 वर्ष से अधिक एक ही दल ने शासन किया उसकी हिन्दुओं के प्रति नकारात्मक भूमिका क्यों रही । और हिन्दुओं के स्वाभिमान को क्यों कुचला।
चर्चा का विषय ये होना चाहिए कि तथाकथित महान मुगलों ने मंदिर क्यों विध्वंस किये ? और जिस दल द्वारा 60 वर्ष से अधिक देश पर एक छत्र शासन किया उस दौरान हिन्दुओं के हत्यारों और लुटेरों के नाम पर नगरों और मार्गो के नाम क्यो रखे । चर्चा में यह भी सम्मिलित होना चाहिए कि तथाकथित सेक्युलर, प्रगतिशील मुगलों ने हिन्दू आस्थाओं को रौंदकर मंदिरों पर मस्जिद क्यों बनाई ? चर्चा इसपर भी खुलकर होना चाहिए कि क्या हिंदू आर्किटेक्चर को तोड़ना ही मुगल आर्किटेक्चर था, जिसकी प्रशंसा इतिहासकार करते नही थकते थे।
चर्चा तो इतिहासकारों के झूठ की भी होनी चाहिए जिन्होंने इतिहास के ‘सच’ को सलेक्टिव इतिहास की ‘कब्र’ में दफन कर उसके ऊपर झूठे और मिथ्या इतिहास का स्ट्रक्चर खड़ा कर देश को अंधेरे में रखा। और हिन्दुओं के गौरवशाली इतिहास को दबाए रखा।
सच दबाने के लिए चर्चा का विषय मोड़ेंगे लेकिन हमें हर हाल में सेक्युरिज्म की इमारतों में दफन भारतीय इतिहास को कब्र फाड़कर बाहर लाना ही होगा।
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न रहकर उसपर ये उत्तर लिख आया
जिन्होंने यह सब किया,
पूरी बेशर्मी से किया,
कोई चर्चा के चक्कर में नहीं पड़े।
क्योंकि चर्चा करनेवाले
चर्चा ही करते रह जाते हैं।
आज भी सारी चर्चा
सरकार भरोसे ही हो रही है,
अगर दंगे होंगे
और सरकार पैर पीछे खींच ले
तो उसपर भी ये चर्चा करनेवाले
चर्चा ही करेंगे,
या चर्चा से भी डरेंगे।
लेकिन सड़क पर उतर कर
सरकार का समर्थन नहीं करेंगे।
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मेसेज तो आप ने भी कई जगह देखा होगा, चाहे तो प्रतिक्रिया वहाँ दे सकते हैं। वैसे चर्चा शब्द से मुझे एक और शब्द याद आता है – चर्वित चर्वण – जिसका अर्थ है जुगाली।