बहराइच का सालार मसूद का उर्स और दरगाह के बारे में कई लोग जानते है। महमूद गजनवी के जीजा सालार साहू का लड़का सालार मसूद सोमनाथ आक्रमण के पीछे असल दिमाग़ था। बाद में अपने बाप और मामा के बल पर इसने बहराइच के आसपास इलाक़ों पे हमला किया जहां राजा सुहेलदेव के द्वारा ये ख़ुदा को प्यारा हुआ। ये वाली कहानी तो खूब घूमती है और सत्य भी है। अब इसके अलावा ये कहानी और पढ़िए।
सालार मसूद ने अपना डेरा एक प्राचीन सूर्य मंदिर जो एक ताल के पास था- वहाँ जमाया था। उसके मरने के बाद उसको उसी प्राचीन मंदिर में दफ़ना कर उसे मौजूदा दरगाह की शकल दे दी गयी। सालार मसूद एक सिपहसलार था जिसे लोग सूफ़ी भी मानते थे। एक जुहारा बीवी से मसूद ने निकाह किया लेकिन “पहली रात “ से पहले ही मसूद ख़ुदा को प्यारा हुआ था- चुनांचे निकाह मुकम्मल नहीं हुआ। तो सालार मसूद के उर्स के अलावा जुहारा मेला भी लगता है जिसमें दहेज दिया जाता है। दो लड़कों को मसूद और जुहारा का रूप देके निकाह करवाया जाता है।
उर्स में आटे के घोड़े प्रसाद रूप में बाँटे जाते है। मसूद को हिंदू जनता बारे पीर या हठीले पीर भी कहती है। ये भी माना जाता था कि ये पूरी फ़ौज जो राजा सुहेलदेव ने खतम की थी- वो सब भूत बन कर घूमते है। बिना सर वाले घुड़सवार। इसी मसूद के साथी लाल पीर का उर्स भी कन्नौज में होता है। मसूद के अब्बा को लोग बिरधा बाबा भी कहते है। ये कहानी असल में बहुत लम्बी और दिलचस्प है कि किस तरह से हिंदू पुरखों को मारने वाले सालार मसूद को बहुसंख्यक लोग पूजते है। अंग्रेज लोग भी इसी बात पर बड़ा अचम्भा करते थे।
इसी सालार मसूद के लिए तुलसी बाबा ने भी एक दोहा लिखा है-
लही ऑंखि कब ऑंधरे, बाँझ पूत कब पाय।
कब कोढ़ी काया लही, जग बहराइच जाय।