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किसी व्यक्ति का मोटर कार ब्रेक डाउन हो जाये

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किसी व्यक्ति का मोटर कार ब्रेक डाउन हो जाये तो कभी कभार उसे धक्के की भी आवश्यकता पड़ जाती है। ऐसे में बहुत से सहृदयी गाड़ी को धक्का भी लगा देते हैं..गाड़ी स्टार्ट हो जाती है। ऐसे में गाड़ी मालिक, एक छोटी मुस्कान और धन्यवाद के साथ गाड़ी गियर में डाल आगे बढ़ जाता है। वैसे मैंने आज तक कभी नहीं देखा कि ऐसे उपकृत पर किसी मोटर मालिक ने उन धक्का देकर गाड़ी को रफ्तार देने वाले को गले लगाया हो। उन लोगों को गाड़ी स्टार्ट होने के एवज में दो-चार किलोमीटर एयरकंडीशन गाड़ी में घुमाने के लिए आग्रह किया गया हो।
अब आइए एक घटना सुनिए-
मेरे एक मित्र को किसी व्यक्ति का गिरा हुआ पर्स मिला। मित्र की नजर जब पर्स पर टिकी तो वो न्यून कोण तक झुककर पर्स पर टूट पड़े। उन्होंने जब पर्स को खोलकर देखा तो पाया कि उसमें हजार पन्द्रह सौ की मामूली रकम के साथ चार एटीएम, पैन, आधार ड्राइविंग लाइसेंस और एक ऐसी पर्ची जिसमें उनके द्वारा दिया गया उधार दर्ज था जो लाखों में था। मित्र ने सोचा हजार, पन्द्रह सौ से क्या होने वाला बेहतर है पर्स लौटाकर ईमानदारी का तमगा और एक बड़े व्यक्ति से सम्बन्ध स्थापित हो। सो चल दिए आधार कार्ड के लिखे पते पर। मित्र किसी तरह पूछ पछोर के घर पहुंचे। कॉलबेल दबाया… ट्रिंग ट्रिंग
एक सज्जन निकले-
“जी बतायें”
मेरे मित्र -” आपका कोई सामान गायब हुआ था??”
सज्जन (चौंककर)- “जी! आज सुबह मेरा बटुआ… रास्ते में कहीं गुम हो गया।”
मित्र, बटुए के भीतर की रकम, पेपर, कार्ड आदि की विस्तृत जांच और मिलान के बाद जब पूरी तरह आश्वस्त हुए तभी उस सज्जन को बटुआ वापस किया। सज्जन ने भी हृदय के भीतरी तल से धन्यवाद ज्ञापित किया। उनकी ईमानदारी को दुर्लभतम उदाहरण के तौर पर रखा और अपने ड्राइंग रूम में लेकर गये। पूरे परिवार से मिलाया। श्रीमती जी ने चाय में खुद अपने हाथ से शक्कर मिलाया। पूरे धन्यवाद एवं कृतज्ञता ज्ञापन की बातचीत में सज्जन की पत्नी ने मेरे मित्र को एक दर्जन बार भाईसाहब के सर्वनाम से सम्बोधित किया। जाते वक्त दोनों (पति-पत्नी) उन्हें बाहर गेट तक छोड़ने आये। जाते जाते जो महत्वपूर्ण सम्बन्ध कारक छूट रहा था वो भी बना। मोबाइल नंबर के आदान प्रदान द्वारा।
भाईसाहब के लिए यह घटना और इस घटना में छुपी किलकारी मारती उनकी महानता हर महफ़िल में एक उदाहरण बनकर शामिल होने लगी।
खैर! इसी तरह आठ- दस महीने बीत गये। एक बार मेरे मित्र कहीं जा रहे थे तभी उनकी नज़र उन दम्पत्ति पर ठहरी जो शहर के एक आइसक्रीम पार्लर के बाहर कोन वाला सॉफ्टी चाट रहे थे। मेरे मित्र उन्हें देखकर अपनी बाइक रोकी, बाइक से उतरे तथा उनका अभिवादन किया। सज्जन ने भी उनके अभिवादन का संक्षिप्त प्रतिउत्तर किया। और पुनः आइसक्रीम पर केन्द्रित हो गये। मेरे मित्र ने विस्मित स्वर में पूछा- “लग रहा है कि आप मुझे पहचान नहीं रहे!!”
सज्जन ने झिझकते हुए नकारात्मक सिर हिलाकर कहा- “माफ़ कीजिए मैं आपको पहचान नहीं पा रहा।”
मित्र- “सर याद है एक बार आपका बटुआ!!
सज्जन- “ओह्ह! सारी सर… दिमाग से स्लिप कर गया बिल्कुल”
पहचानने के बाद सज्जन ने अपना कोन अपने पत्नी की हाथों में सौंपकर मित्र से हाथ मिलाया और उनका हाथ पकड़कर बीस फीट दूर मित्र की बाइक तक ले गये और फिर शुरू हुयी औपचारिकता वाली आदर्श बतकही। कुल तीन मिनट गुजरा न था कि उनकी श्रीमती जी ने आवाज लगाया- “अरे आइएगा! पूरी आइसक्रीम पिघलकर मेरे हाथ पर चू-टपक रही है।
सज्जन ने मेरे मित्र को कहा- “सर दो मिनट रुकिए! अभी आता हूं…” हांलांकि मेरे मित्र अब एक सेकेंड भी रुकने का साहस न रख पाये तथा सज्जन के आइसक्रीम तक पहुंचने के पहले ही वो वहां से हिरन हो गये हांलांकि अभी भी उनको यह विश्वास था कि सज्जन का फोन इनके मोबाइल पर बजेगा लेकिन कुल तीन दिन की अपमानजनक प्रतीक्षा के बाद भी जब फोन नहीं आया तो मेरे मित्र ने उस नम्बर को ही ब्लाक मार दिया। अब जब भी वो मिलते हैं तो अहसान फरामोशी का वो किस्सा उनके जुबान से खुदबखुद आइसक्रीम की तरह चूने, टपकने लगता है।
मित्रों! आम आदमी की यही गति है। होने को तो इससे भी बुरी हो जाती है। हांलांकि कुछ समय के लिए अपने को विशेष समझने… मान लेने का मुगालता आम बात है। लेकिन समय रहते… ठहर जाने, समझदारी बरतने में ही भलाई है।
इसलिए सनद रहे! आपने धक्का लगा कर सरकार की गाड़ी बाहर निकलवा दी। अब सरकार बुलडोजर पर बैठकर फर्राटे काटेगी तथा अब आप, हम, सबको अपने-अपने काम पर लगना है। लेकिन आप इस मुगालते में रहें कि फलाने मंत्री हो गये तो आपके सिलेंडर में रेगुलेटर लगाने आयेंगे तो आपकी दशा वही होगी जो मेरे मित्र की हुयी।
दरअसल हमारी अत्यधिक अपेक्षा ही हमारी उपेक्षा का कारण बनती है।

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