2019 के चुनावों के समय हम लोग एक प्रचार गाड़ी लेकर जमशेदपुर में हर चौक चौराहे पर चुनावी सभाएं करते थे.
जब हम मानगो चौक पर पहुंचे तो हमारे साथ भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के एक पदाधिकारी आए और उन्होंने एक देशभक्ति भरा जोशीला भाषण दिया. सज्जन पहले कांग्रेस और फिर सपा के पदाधिकारी रह चुके थे और चुनावी मौसम में भाजपा में आए थे (सपा के तो प्रदेश अध्यक्ष या उपाध्यक्ष भी रहे थे, हालांकि सपा को झारखंड में कोई यूं भी कोई नहीं पूछता).
मानगो की सभा खत्म होने के बाद उन्होंने बहुत आग्रह से प्रचार गाड़ी अंदर आजाद बस्ती के भीतर मुड़वा ली. हमें तो चुनाव की दृष्टि से यह समय की बरबादी ही लगा लेकिन वे अड़ कर गाड़ी अंदर ले गए और मस्जिद के ठीक सामने सभा लगा दी. इधर सभा शुरू हुई, उधर सभा को डिस्टर्ब करने के लिए फुल वॉल्यूम पर मस्जिद का लाउडस्पीकर बजने लगा. कोई सभा में उन्हें सुनने भी नहीं आया. तब उन्होंने सुर बदला…
… कुछ लोग मुझे कौम का गद्दार कहते हैं. अरे सुन लो…मैं कौम का गद्दार नहीं हूं. मैं भी कौम का सिपाही हूं. यहां भी हूं तो मैं कौम का काम ही कर रहा हूं, बस तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा…
उस एक भाषण ने मुझे भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के थॉट प्रॉसेस की पूरी क्लैरिटी दे दी. वे भाजपा में रहकर भी कौम का काम ही कर रहे हैं.
जमशेदपुर में ही मेरे साथ एक डॉक्टर था. वह भाजपा के लिए चुनाव प्रचार करता था. उसने बताया, पहली बार उसके मोहल्ले में भाजपा का चुनाव कार्यालय खुला, जिसके उद्घाटन के लिए स्वयं अर्जुन मुंडा जी आए थे जो तत्कालीन मुख्यमंत्री थे. उसने बताया … मैं अपने मोहल्ले में सबको कहता हूं…भाजपा ज्वाइन करो. उसके अंदर घुसो…उसी में तुम्हारा फायदा है, सबका फायदा है. तुम जितना भाजपा के अंदर घुस के मुस्लिम्स के काम आ सकते हो उतना बाहर से नहीं.
याद रहे, 1946 में कॉन्ग्रेस के प्रेसिडेंट अबुल कलाम आजाद थे. उनके कॉन्ग्रेस प्रेसिडेंट होने ने एक भी मुस्लिम को भारत के विभाजन के विरुद्ध कन्विंस नहीं किया. लेकिन वे पाकिस्तान नहीं गए…वे भारत में ही रहकर भारत के मुसलमानों के इंटरेस्ट को प्रोटेक्ट करते रहे. कांग्रेस के अंदर रहकर शिक्षा मंत्री बने और शिक्षा के इस्लामीकरण में लगे रहे.
जो मुसलमान जहां कहीं भी है, है वह कौम का सिपाही. भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा में रहकर ना तो उसका चरित्र बदलता है ना ही उसकी नीयत. भाजपा को सोचना है कि वह अल्पसंख्यक मोर्चा का गठन करती ही क्यों है?