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महात्मा गांधी की दांडी यात्रा

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एक समय महात्मा गांधी ने भी अंगरेजों का कानून तोड़ा था । दांडी यात्रा कर के नमक कानून तोड़ा था , नमक बना कर के । अंगरेजों की लाठियां खा कर । देश भर से हज़ारों लोग ऐलानिया तौर पर पहुंचे थे तब यह नमक कानून तोड़ने । अब कांग्रेस के यह दिन आ गए हैं कि वह नरेंद्र मोदी सरकार का एक कानून तोड़ने के लिए कभी अपने ही चुनाव निशान रहे गाय बछड़ा को सड़क पर काटते हैं , पकाते हैं और खाते हैं । जगह-जगह बीफ़ फेस्ट आयोजित करते हैं । टोकने पर भी आज के कांग्रेसी शर्म नहीं खाते दुनिया भर का कुतर्क रचते हैं , भोजन की पसंद , मौलिक अधिकार आदि की धौंस देते हैं ।
गोडसे , संघी , भाजपाई जैसे छलिया शब्दों की आड़ में कायरों की तरह छुपते फिरते हैं । इस तरह यह कांग्रेसजन गांधी की , गांधी की भावनाओं की , उन की शुद्धतावादी , शुचितावादी राजनीति , राजनीति की नैतिकता की ऐसी-तैसी करते हैं । गांधी की गंगा और गाय की अवधारणा को खंडित करते हैं । सिर्फ़ एक वोट खातिर । बेशर्मी और कुतर्क का समंदर अपनी जुबान में रखते हैं । नार्थ ईस्ट और गोवा का हवाला देते नहीं अघाते हैं । किरन रिजजू का सुभाषित सुनाते हैं । अरे भाजपा जाए भाड़ में , आप खुद क्या कर रहे , इस पर तो सोचिए । गांधी तो आप की थाती हैं । यह तो सोचिए । सोचिए कि गंगा और गाय की अवधारणा वाला , सत्य और अहिंसा का एक पुजारी गांधी भी इस कांग्रेस में था ।
वह गांधी जो एक चौरी चौरा में हिंसा के प्रतिरोध में समूचे देश से अंगरेजों के खिलाफ चल रहा आंदोलन वापस ले लेते थे । और एक यह लोग हैं । प्रसिद्ध गांधीवादी और राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त की मशहूर कविता भारत भारती की कुछ पंक्तियां याद आती है :
हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी ।
भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां ।
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है ।

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