Home अमित सिंघल हम भारतीय विश्व में प्यार जतलाने और प्रणय निवेदन के महारथी है।

हम भारतीय विश्व में प्यार जतलाने और प्रणय निवेदन के महारथी है।

by अमित सिंघल
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यह एक तथ्य है कि अग्नि को साक्षी मानकर, सात फेरे लेकर, प्रणय बंधन की पवित्र रस्म की उत्पत्ति ऋग्वेद से हुई है और सहस्त्रो वर्ष से निरंतर जारी है। विश्व के किसी भी अन्य समुदाय के वैवाहिक रस्मो की तुलना में सनातनी रस्म सदियों पुरानी है।
अगर हमारे विवाह की रस्म इतनी पुरानी है, तो कामदेव के तीर चलने-चलाने में हम भारतीय किसी से पीछे कैसे रह सकते है?
जब धर्मेंद्र ‘नया जमाना’ मूवी में हेमा मालिनी की कार के पहिये से हवा निकाल देता है, तो वह उनके बीच में प्रेम की शुरुवात का साधन बनता है। ‘शोले’ में अमिताभ बच्चन गोधूलि वेला में माउथ ऑर्गन बजाते हुए जया भादुड़ी के द्वारा लालटेन जलाते देखकर एक दूसरे को दिल दे बैठते है। ‘1942-एक प्रेम कथा’ में अनिल कपूर स्वतंत्रता संग्राम के समय लाठी चार्ज के दौरान पत्थर से बस के टूटे शीशे से झांकती मनीषा कोइराला को देखकर उनके दीवाने हो जाते है।
लेकिन इस क्षेत्र में हमारी प्रतिभा की पराकाष्ठा ‘हम दिल दे चुके सनम’ में दिखाई देती है जब एक सुनसान छत पे सलमान खान की – माफ़ कीजियेगा – पादने की आवाज सुनकर ऐश्वर्या राय हंस देती है जो उन दोनों के मध्य प्यार की पहली सीढ़ी बनती है।
इसके अलावा, घर के बड़े-बुजुर्ग कहते है कि किसी पुरुष के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है। अतः कई बार लड़किया बढ़िया पकवान बनाना सीखती है और उसके द्वारा हीरो के दिल में प्रवेश कर जाती है। राजश्री प्रोडक्शंस की अनगिनत पिक्चर बड़े-बुजुर्गो की व्यवहार-कुशलता और सदियों से निचोड़ी गयी बुद्धिमता की गवाह है।
लेकिन अब समय बदल रहा है, भारत भी बदल रहा है। लड़किया भी कार्य कर रही है और उन्हें खाना बनाना नहीं आता। तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि हमारी लव स्टोरी पे फुल स्टॉप लग जाएगा।
नहीं. उदहारण के लिए कई कुंवारे मित्र स्वयं पकाए विभिन्न प्रकार के व्यंजनों की फोटो फेसबुक पे डालकर कई महिलाओ के दिल को रिझाने का प्रयास कर रहे है। यह संभव है कि वे भोजन अपने पेट की तृप्ति के लिए पका रहे है, ना कि प्रेम की पींगे बढ़ाने के लिए। यह अलग बात है कि भोजन वह स्वयं खा रहे है, ना कि वे जिनके लिए वे खाना पकाते है। हालाँकि उनके कई पुरुष मित्र भी उनके व्यंजनों की प्रशंसा कर बैठते है। पता नहीं, क्यों?
वह तो यही बात हो गयी कि भोजन पुरुष पकाये या उनकी कोई महिला मित्र पकाये, खाना पुरुष को ही है। बिल्कुल खरबूजे और चाकू जैसा सम्बन्ध।
एक तरह से बड़े-बुजुर्गो की बात में अभी भी दम है। एक पुरुष के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है; भले ही वह पुरुष स्वयं भोजन बनाये, खाये और तृप्त रहे। इस पूरी प्रक्रिया में यह यह तय है कि प्यार की पहली सीढ़ी बहुत दूर नहीं है।
हाँ एक प्रिय सेठ जी है। उनकी हताशा सोन पापड़ी पर ही निकलती रहती है। उसके बाद फटी शायरी करते है। पता नहीं क्यों?

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