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स्विगी जोमैटो मैकेनिक इलेक्ट्रिशियन प्लम्बर दुकानदार ठेलेवाले सब्जीवाले अधिकांश कैब आदि इत्यादि में आप चाहेंगे भी तो आपको हिन्दू नहीं मिलेंगे….अपने आसपास ध्यान देकर देखिए।
और तो और पहले कहीं कहीं हलाल मीट के साइनबोर्ड लगे होते थे और बाकी झटका मीट के।अब झटका मीट के दुकान शहरों महानगरों से भी लगभग विलुप्त हैं,क्योंकि सेकुलड़ हिन्दुओं को हलाल मीट से कोई परहेज़ नहीं।
सरकारी नौकरी की लालसा में स्वरोजगार या तथाकथित छोटी नौकरियों को हिन्दू छोड़ते गए या फिर एक पूरी व्यवस्था(इल्लमिक राजनीतिक साँठगाँठ वाली) ने प्रोमोट कर एक समूह का सफाया और दूसरे को बसाया….
आज एक पोस्ट पढ़ी।यहाँ संलग्न कर रही हूँ।आप भी पढ़ें और सोचें कि आज हम कहाँ खड़े हैं।

मुंबई का इस्लामीकरण -चौंका देने वाला-
मुंबई के बारे में जो खबर आई वह बेहद चौंकाने वाली थी।मैं यह पढ़कर चकित रह गया कि कैसे एक राजनीतिक दल की विचारधारा पूरी तरह से बदल जाती है।
यदि आप मुंबई का सर्वेक्षण करें तो आपको मुंबई शहर के सभी समुद्र तटों और सड़कों पर चाय, नाश्ता, आमलेट, पानी आदि मिलेंगे, ये सभी मुस्लिम समुदाय के हैं और या तो अन्य राज्यों या बांग्लादेश या रोहिंग्या के हैं। यहां तक ​​कि सड़क किनारे नारियल के ठेले या सब्जी के ठेले भी धीरे-धीरे मुस्लिम समुदाय के कब्जे में आ गए हैं।
मनीष मार्केट, क्रॉफर्ड मार्केट, ग्रैंड रोड के अधिकांश व्यवसाय कभी मराठी और मारवाड़ी के स्वामित्व में थे।आज आपको इस पूरे इलाके में एक भी हिन्दू व्यापारी नहीं मिलेगा।
जनसंख्या में यह परिवर्तन अचानक नहीं हुआ है।इसके लिए आज़मी और नवाब मलिक जैसे नेताओं ने कड़ी मेहनत की है।एनसीपी और शिवसेना ने उन्हें पूरा समर्थन दिया।
इन लोगों ने एक संगठन बनाया है।उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, बांग्लादेश या किसी भी रोहिंग्या का मुसलमान जब मुंबई आता है तो नजदीकी मस्जिद में जाता है।वहां से उन्हें नवाब मलिक और अबू आजमी के एनजीओ कार्यालय ले जाया गया। उनके लोग पूरी तरह से सर्वेक्षण करते हैं कि पूरे मुंबई और उसके उपनगरों में किस क्षेत्र में किसका व्यवसाय चल रहा है।
फिर उस व्यक्ति को एक ठेला और पूरे उपकरण के साथ एक जगह व्यापार करने के लिए भेजा जाता है। वो शख्स अपने बिजनेस से एनजीओ को पैसा देता रहता है। इस तरह लाखों मुसलमानों को मुंबई शिफ्ट किया जा रहा है।
मुंबई की आबादी तेजी से बदल रही है। मीरा रोड, नालासोपारा, भिवंडी, मुंब्रा, बांद्रा ईस्ट, खार, ग्रांट रोड, बायकुला, अब्दुल रहमान स्ट्रीट, मोहम्मद अली रोड, बॉम्बे सेंट्रल, क्रॉफर्ड मार्केट सांताक्रूज, अंधेरी वेस्ट, जोगेश्वरी, ओशिवारा, राम मंदिर स्टेशन, गोरेगांव पश्चिम, मलाड पश्चिम, मालवानी, चारकोप और कई अन्य क्षेत्र धीरे-धीरे मुस्लिम समुदाय के गढ़ बन गए।
आज मुंबई में ऐसे कई निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां कोई भी हिंदू व्यक्ति चुनाव जीतने की उम्मीद नहीं कर सकता है।
नवाब मलिक और अबू आज़मी ने एनसीपी के नेतृत्व में मुंबई पुलिस में मुसलमानों की भर्ती के लिए एक विशेष अभियान शुरू किया है।लोकेशन कोचिंग सेंटर सतारा कोल्हापुर, सांगली, रायगढ़, अहमदनगर, पुणे, नागपुर, मुंबई में खोले गए हैं ताकि उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के मुसलमान अच्छी तरह से मराठी सीख सकें और मराठी में पुलिस भर्ती पेपर सीख सकें। उन्हें ₹8,000 को छोड़कर सभी शहरों में मुफ्त आवास और कोचिंग की सुविधा प्रदान की जाती है। एक मासिक वजीफा भी दिया गया और पत्र से पता चला कि नवाब मलिक 2023 से पहले महाराष्ट्र पुलिस में 30% से अधिक मुसलमानों को भर्ती करना चाहते थे।
बेचारा मराठी आदमी सड़कों पर चलता है, नारे लगाता है, यह महसूस नहीं करता कि धीरे-धीरे पूरी आबादी कैसे बदल गई है।
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यह स्थिति केवल मुम्बई की ही नहीं,प्रत्येक उस प्रदेश की है जहाँ गैरभाजपाई सत्ता है।चाहे वह दिल्ली हो या अन्य कोई भी प्रदेश।मुझे इल्लामियों के रोजगार में होने में कोई आपत्ति नहीं।जो खून पसीना बहा आजीविका कमा रहा, सबका सम्मान है।किन्तु एक जो अदृश्य जंग छिड़ी हुई है जिसमें भूमि से,रोजगार से धर्म और संस्कृति से हिन्दू कटे सिमटते जा रहें हैं,इससे चिन्ता है।

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