एक बार बुखार और फोड़ा कहीं रास्ते में मिल गये।
दोनों ने एक-दूसरे का हाल-चाल पूछा तो पता चला कि दोनों परम दुःखी!
बुखार ने फोड़े से पूछा – पहले तू बता कि आखिर बात क्या है? क्यों दुःखी है तू?
फोड़े ने बुखार से कहा – नहीं! पहले तू बता कि आखिर तू क्यों दुःखी है इतना?
तू-तू मैं-मैं हो गयी।
आखिर फोड़े ने ही पहले बताया – यार! मैं एक चरवाहे के पास हूँ! मैं तनिक सा बढ़ता हूँ कि वो भैंस की पीठ पर मुझे रगड़ देता है। साला, बढ़ने, पकने का मौका ही नहीं देता! छिलने से बचूँ तो कुछ असर भी दिखाऊँ!
बुखार ने कहा – और मैं एक बाभन के पास हूँ। जैसे ही मेरा ताप बढ़ता है, सुसरा उसी दिन ही एकादशी मना लेता है और जोर-जोर से गीता या रामायण पढ़ने लगता है। उपवास और मेहनत से निजात मिले तो मेरा कुछ असर भी हो!
दोनों ने आपस में मशवरा करके घर बदल दिया।
अब बाभन फोड़ा सुहराता है और कष्ट भोगता है और चरवाहा बुखार के नाम पर आराम करता है और डॉक्टरों के चक्कर लगाता है।
चाहे जिस वजह से हो, लेकिन,
बाभन का बुखार क्या कर लेगा?
बेड-रेस्ट की ऐसी की तैसी!!!!