रामनगीना बाबू रेलवई में एक बड़े ऑफिसर के पोस्ट से दो-तीन माह के अंदर रिटायर होने वाले हैं… बाबू जी के स्थान पर नौकरी पाए थे…एमए इकोनोमिक्स से करने के बाद घर में बैठे थे, सरकारी परीक्षा की तैयारी में लगे थे…इसी बीच बाबूजी जो ग्रुप डी कर्मचारी थे,नहीं रहे… वर्षों की तपस्या के बाद पटना, कलकत्ता, दिल्ली में रेल भवन एक कर देने के बाद नौकरी मिली…गांव में भी कुछ अच्छी स्थिति नहीं थी…रामनगीना बाबू के शब्दों में बस किसी तरह घर चल जाता था…बाबूजी की सैलरी भी बहुत कम थी…साथ ही बाबू जी दुर्व्यसनो के शिकार थे…इसलिए घर पर पैसे कम भेजते थे…मां पड़ोसियों से उधार-बाकी लेकर घर चलाती थी…
…पर, रामनगीना बाबू की नौकरी लगते ही,दिन पलटने लगे…बहुत जल्द ही रामनगीना बाबू ने यह गुर सीख लिया कि क्रीम पोस्टींग कैसे ली जाती है… बाद के दिनों में तो वे क्रीम पोस्टींग के बहुत बड़े एक्सपर्ट बन गए… संयोग से एकबार रामनगीना बाबू के बंगले पर जाने का सौभाग्य हुआ…लग ही नहीं रहा था कि वही रामनगीना बाबू हैं जो एमए पास करने के बाद 150 रूपए की मासिक सैलरी पर पाठक मास्टरजी के स्कूल में पढ़ाते थे…
….रामनगीना बाबू ने अपने बंगले के भूगोल का वर्णन करते हुए बताने लगे कि जो बहुत लंबी पहुंच वाले होते हैं… उन्हें ही डीआरएम बंगले के पास वाला बंगला एलाट होता है… ऐसे ही जिज्ञासा वश रामनगीना बाबू से जब पूछा कि आपका बिजली बिल तो बहुत आता होगा…
…यह सुनकर रामनगीना बाबू बहुत जोर से हंसने लगे, फिर बोले कि आप जीवन भर बुद्धु ही रह जायेंगे… बंगले के बरामदे में लगे बिजली मीटर को दिखाते हुए उन्होंने कहा कि इसको हम महीने में 25 दिन बंद रखते हैं,अउर 5 दिन चालू वह भी एकदम से स्लो…100 रू से कम ही बिल आता है…रेलवई समुंदर है,एक लोटा निकाल लेने से कुछो अंतर नहीं पड़ता है…
….जब जाने लगा,रामनगीना बाबू बंगले के गेट तक छोड़ने आए और खैनी ठोकते हुए गा रहे थे…
सब दिन होत न एक समाना
एक दिन राजा हरिश्चन्द्र गृह कंचन भरे खजाना
एक दिन भरे डोम घर पानी
मरघट गहे निशाना
सब दिन होत न एक समाना