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जुर्म की दुनिया का कुख्यात अपराधी विकास दुबे का अंत भाग 2

हत्या और जुर्म अध्याय 17

by Sharad Kumar
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भाग का शेष…

पूरे देश को विकास के कानपुर पहुंचने का इन्तज़ार था. 10 जुलाई को सुबह 6 बजकर 10 मिनट के करीब जब विकास को लेकर टीम कानपुर में दाखिल हुई. कानपुर से पहले पड़ने वाले बारा टोल नाके पर मीडिया और बाकी गाड़ियों के रोक चेकिंग और सुरक्षा की नजर से रोक दिया गया. इसके करीब 20 मिनट बाद खबर आई कि विकास के एनकाउंटर की खबर आई. कानपुर के भौंती गांव में पुलिस ने विकास को मार गिराया, जिस माटी से खूनी पटकथा शुरू हुई कई राज्यों का सफर तय करते हुए वहीं आकर खत्म हो गई. पुलिस ने बताया कि विकास को लेकर जा रही गाड़ियों काफिले के सामने अचानक गाय-भैसों का झुंड आ गया. इससे बचने के लिए गाड़ी असंतुलित होकर पलट गई, विकास ने परिस्थिति का फायदा उठाकर एक पुलिस वाले की पिस्टल छीनकर भागने की कोशिश की. भागते हुए विकास ने पुलिस वालों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं.

 

विकास की ओर हो रही फायरिंग के जवाब और आत्मरक्षा में पुलिस ने उसे ढेर कर दिया. इस तरह आठ पुलिस वालों को शहीद करने वाले विकास को पुलिस ने उसके अंजाम कर पहुंचा दिया. पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मौत से पहले विकास ने एसटीएफ को पूरे घटनाक्रम को विस्तार से बताया था. पुलिस – शहीद सीओ से क्या रंजिश थी? विकास – सीओ मुझे मारना चाहते थे. इसके लिए मेरे विरोधी उन्हें पूरी मदद कर रहे थे. मुझे एक मामले में इन्हीं लोगों के कहने पर 120-बी (अपराध की साजिश में शामिल होना) में फंसाया गया. फिर मुझे राहुल तिवारी की हत्या के प्रयास में नाप दिया. थाने के लोगों ने मुझे बताया था कि मेरा एनकाउंटर करने की सुपारी ली थी सीओ ने.

 

पुलिस – घटना वाले दिन क्या हुआ था? मेरे भतीजे हीरू दुबे के पास रात आठ बजे मेरे खास सिपाही राजीव चौधरी ने फ़ोन किया था. उसने बताया कि आज दबिश की प्लानिंग है. काफी फोर्स आएगा. मेरे एनकाउंटर की पूरी तैयारी है. धीरू ने मुझे बताया तो मैंने एसओ विनय तिवारी को पलटकर फ़ोन किया था. एसो को धमकाया भी था और कहा था कि आ गए तो अंजाम अच्छा नहीं होगा. एसओ ने कहा था कि सबकुछ सीओ स्तर से हो रहा है, उसका रोल नहीं है. पुलिस – आठ पुलिसकर्मियों को क्यों मारा? मेरा प्लान ये था कि कुछ सिपाहियों को घायल कर देंगे तो पुलिस भाग जाएगी और दहशत कायम हो जाएगी.

 

मगर मेरे प्लान के हिसाब से चीजें नहीं हुईं. अमर और अतुल ने काफी शराब पी रखी थी. अतिउत्साह में उन्होंने और गैंग के नए लड़कों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी. मेरे घर पर बाहर के आधा दर्जन अपराधी रुके थे. उन्हें लगा कि कहीं पुलिस उन्हें न धर ले, इसलिए उन्होंने भी अंधाधुंध फायरिंग कर दी. पुलिस – कौन से असलहों से फायरिंग की? विकास – मेरे भांजे शिवम तिवारी के नाम मैंने विनचिस्टर कम्पनी की सेमी ऑटोमैटिक रायफल ले रखी थी. अमर इसी से फायरिंग कर रहा था. अतुल और दूसरे साथी भी रायफल और देशी तमंचों से गोलियां चला रहे थे. ये लोग मेरे मामा प्रेम प्रकाश की छत पर मौजूद थे और मैं अपनी छत पर रिपीटर बंदूक से गोलियां चला रहा था.

 

मेरा अहम मकसद दहशत फैलाने का था. मगर जब पुलिसवाले भागने लगे तब मैंने नीचे उतरकर देखा तो आठ पुलिसवाले मरे पड़े थे. ये मेरी उम्मीद से कही ज्यादा था. सीओ को मैंने नीचे आकर रायफल एक गोली पैर में मारी थी, क्योंकि वो कहते थे कि विकास एक पैर से लंगड़ा है. मैं दोनों से कर दूंगा. शवों को डीजल से जलाने की तैयारी थी लेकिन वक्त न होने के चलते हम सभी भाग गए. पुलिस – इसके बाद कहाँ भागे? विकास – मैं समझ गया था कि इस खूनखराबे के बाद पुलिस मुझे कुत्ते की तरह तलाश करेगी. मैंने गिरोह के लोगों को अलग अलग भागने को कहा और मैं खुद अतुल और अमर को लेकर पैदल शिवली पहुंचा, जहां एक करीबी के घर दो दिन तक रुका. मुझे पता चला कि पुलिस शनिवार की देर रात पुलिस ने मेरे बहनोई को उठा लिया है तो मैं यहां से तड़के चार बजे निकला

 

नगर पालिका के एक पदाधिकारी और मेरे करीबी ने अपनी सिल्वर कलर हुंडई कार को ड्राइवर के साथ मुझे, अमर और अतुल को फरार करवाया. तड़के चार बजे हम लोग शिवली से निकल गए. पुलिस – उसके बाद कहाँ गए? विकास – यहां से सीधे नोएडा होते हुए दिल्ली गए, जहां कुछ वकीलों से मुलाकात हुई. उनसे सरेंडर की बात हुई. पचास हजार रुपये एडवांस दिलवाने की उन्होंने बोला था. यह भी तय हुआ था कि उज्जैन में सरेंडर करेंगे. इस पर मैंने गाड़ी वापस शिवली भेज दी और बस से फरीदाबाद गया, जहां अभय मिश्र के दूर के रिश्तेदार का मकान है. एक दिन रुकने के बाद मैं दोबारा फरीदाबाद से वकीलों के पास दिल्ली पहुंचा. वापस फरीदाबाद जाना था लेकिन तब तक पता चला कि अभय गिरफ्तार हो गया है. ऐसे में मैंने संदीप पाल के नाम से पहले दिल्ली से जयपुर के टिकट कराया.

फिर जयपुर से झालावाड़ गया और वहां से उज्जैन आया. वकील से यह बात भी हुई थी कि सरेंडर होते ही एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई जाएगी, जिससे पुलिस मेरा एनकाउंटर न कर पाए. मुझे अमर और अतुल की मौत से सबसे ज्यादा दुख पहुंचा. इस तरह खुद विकास ने अपने कारनामे की काली कहानी पुलिस वालों को सुनाई. विकास दुबे के मरने के बाद भी उसके गांव में दहशत का माहौल है. गांव वालों में विश्वास कायम करने के लिए पुलिस लगातार गांव में गश्त कर रही है और गांव वालों के साथ बैठकें भी कर रही है.

वहीं दूसरी तरफ विकास दुबे का आपराधिक साम्राज्य खत्म करने के बाद अब उसके आर्थिक अपराधों की भी जांच की जा रही है. प्रवर्तन निदेशालय ने विकास देशी और विदेशी संपतियों की जांच शुरू कर दी है. विकास के एनकाउंटर को लेकर कुछ सवाल भी खड़े हो रहे हैं लेकिन एक दूसरा पहलू यह भी है कि एनकाउंटर करने वाली टीम का लोगों ने फूलमाला पहना कर और लड्डू खिलाकर स्वागत किया. विकास के अलावा उसके पांच और साथी पुलिस के हाथों परलोक सिधार गए हैं. लोगों के मन में यह भाव है कि आखिरकार यूपी पुलिस ने अपने आठ साथियों की शहादत का बदला ले लिया.

 

“यह सभी अपराध वास्तव में घटित हो चुके है और इनका विवरण विकिपीडिया और अन्य श्रोतो से लिया गया है इन अपराध को करने वाले अपराधियों को सजा दी जा चुकी है और कुछ मामलो में अभी फैसला आना बाकी है और मामला न्यायालय में है आप सब से निवेदन है की इनकी कहानियो को पढ़ कर इनकी प्रेरणा न ले”

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