वाजिद अली शाह लखनऊ और अवध के नवाब रहे। ये अमजद अली शाह के पुत्र थे। इनके बेटे बिरजिस क़द्र अवध के अंतिम नवाब थे। संगीत की दुनिया में नवाब वाजिद अली शाह का नाम अविस्मरणीय है। ये ‘ठुमरी’ इस संगीत विधा के जन्मदाता के रूप में जाने जाते हैं। इनके दरबार में हर दिन संगीत का जलसा हुआ करता था। इनके समय में ठुमरी को कत्थक नृत्य के साथ गाया जाता था।
नवाब वाजिद अली शाह के हरम में एक से एक बढ़ कर बेगम थी लेकिन नवाब साहब नदीदे परदे दर्जे के। अपनी अम्मी आलिया बेगम की एक कनीज पर दिल आ गया। अब दिल तो आया किंतु अम्मी कनीज को उनकी ख़िदमत में ना भेजे। नवाब अम्मी के पास जाके रोये- अपने परीखाने में उस कनीज को भेजने की गुहार लगायी।
आलिया बेगम भी खुट स्यानी बुढ़िया- अपनी कनीज ना जाने देने को तैयार। बहाना लगाया- इस कनीज के शरीर पे साँप का निशान है जो नवाब के लिए हानिकारक है। नवाब की तबियत उस समय नासाज़ चल रही थी- तो नवाब कनीज को तो भूल गए किंतु नयी सनक नवाब के दिमाग़ में घुस गई। सोचा ना जाने किस पुरानी बेगम के शरीर पर साँप का निशान हो जिसके कारण तबियत नासाज़ रहती है। बस अपने हेड खोजा को सब बेगमों के शरीर की तलाशी लेने का हुक्म सुनाया।
खोजा की निकल पड़ी- सब बेगमों से रिश्वत मिली ताकि वो ग़लत रपट ना दें। आठ बेगमों ने रिश्वत ना दी क्यूँकि उन्हें भरोसा था ख़ुद पर। लेकिन नवाब ने इन आठ बेगमों को तलाक़ दे दिया और शाही महल से बाहर रहने का प्रबंध किया। हालाँकि बाद में इन बेगमों ने पंडितों से सर्प शुद्धि का उपाय करवाया तो नवाब ने तलाक़ ख़ारिज कर इन्हें वापस हरम में दाखिल करवाया। इन आठ में एक बेगम हज़रत महल भी थी।
नवाबी शौक़ और नवाबी सनक – जो ना करवाये कम है। ऊपर से लखनऊवी नवाब- डबल छौका!